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संयतोमां-जीव सिद्धोमांत्रण भांगा जाणवा. सकपायोमां-कषायवाळाओमां जीवादिकत्रण भांगा जाणवा. अने सकषाय एकेन्द्रियोनां व्याख्या
अभंगक-त्रण भांगा नथी पण एक भांगो छे, क्रोध कपायिओमां जीव अने एकेन्द्रिय वर्जी त्रण भांगा जाणवा. देवोमा छ प्रज्ञप्तिः
M६शतके भांगा, मानकषायवाळमां, मायाकपायवाळामा जीप अने एकेन्द्रिय वर्जीने त्रण भांगा जाणवा, नैरयिक अने देवोमा छ भांगा ॥४४॥
उद्देशा४ | जाणवा. लोभकषायवाळाओमा जीव अने एकेन्द्रिय वर्जीने त्रण भांगा जाणवा. नैरयिकोमा छ भांगा जाणवा. अकषायिमां जीव,
॥४४॥ मनुज अने सिद्धोमा त्रण मांगा जाणवा. ओधिक ज्ञानमां, आभिनिबोधिक-ज्ञानमां, श्रुतज्ञानमां, जीवादिक त्रण भांगा जाणवा.
| विकलेंन्द्रियोमा छ भांगा जाणवा. अवधिज्ञानमां, मनःपर्यवज्ञानमां अने केवलज्ञानमां जीवादिक त्रण भांगा जाणवा. औधिक Gअज्ञानमां, मतिअज्ञानमा अने श्रुतअज्ञानमां एकेन्द्रिय वर्जीने त्रण भांगा जाणवा. विभंगज्ञानमा जीवादिक त्रण भांगा जाणवा,
जेम औधिक कह्यो तेम संयोगी जाणवो. मनयोगी, वचनयोगी अने काययोगिमा जीवादिक त्रण भांगा जाणवा. विशेष ए के, एकेन्द्रिय जीवो काययोगवाला छे अने तेओमां अभंगक जाजा भांगा नथी पण एक मांगो छे. जेम अलेश्यो कह्या तेम अयोगिजीवो जाणवा. साकार उपयोगवाळामां अने अनाकार उपयोगवाळामां जीव तथा एकेन्द्रिय वर्जीने त्रण भांगा जाणवा. जेम सकपायी-कपायवाला कह्या तेम सवेदक-वेदवाळा जीवो जाणवा स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक अने नपुंसकवेदकोमा जीनादिक त्रण भांगा जाणवा, विशेप ए के, नपुसक वेदमां एकेन्द्रियो माटे अभंगक जाजा भांगा नथी पण एक भांगो छे. जेम अकषायी कपायरहित जीवो कह्या तेम अवेदक-वेदविनाना जीवो जाणवा जेम औधिक-सामान्य जीव कह्या तेम सशरीरी-शरीरवाला जीवो जाणवा. औदारिक अने वैक्रिय शरीरवाळा मारे जीव तथा एकेन्द्रिय वर्जीने त्रण मांगा जाणवा. आहारक शरीरमां जीव अने मनुष्यमा छ
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