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व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥४३६॥
६ शतके उदेशः३ ॥४३६॥
सम्यग्मिथ्यादृष्टि ( तो सम्यग्मिथ्यादृष्टिनी दशामां ) न बांचे. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म शुं संज्ञी जीव बांधे ? असंज्ञी | जीव बांधे ? के नोसंज्ञी अने नोअसंज्ञी बांधे ? [उ.] हे गौतम ! संज्ञी कदाच बांधे अने कदाच न बांधे, असंज्ञी बांधे अने नोसं|ज्ञीनोअसंज्ञी जीव न बांधे. ए प्रमाणे वेदनीय अने आयुष्य वर्जीने छ कर्मप्रकृतिओ माटे जाणवू. अने वेदनीयने नीचेना वे संज्ञी
अने असंज्ञी बांधे अने उपरनो नोसंज्ञीनोअसंज्ञी भजनावडे कदाच बांधे अने कदाच न बांधे अने आयुष्यने नीचेना वे भजनाए |बांधे अने उपरनो न बांधे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं भवसिद्धिक ज्ञानावरणीय कर्म बांधे ?, अभवसिद्धिक ज्ञानावरणीय कर्म बांधे ?, | के नोभवसिद्धिक अने नोअभवसिद्धिक ज्ञानावरण कर्म बांधे ! [उ०] हे गौतम ! भवसिद्धिक भजनाए बांधे एटले कदाच बांधे
अने कदाच न बांधे, अभवसिद्धिक ज्ञानावरण कर्म बांधे अने नोभवसिद्धिक अने नोअभवसिद्धिक न बांधे, ए प्रमाणे आयु| प्य सिवायनी साते कर्मप्रकृतिओ माटे जाणवू, आयुष्य कर्मने नीचेना वे भवसिद्धिक-भव्य अने अभवसिद्धिक अभव्य, ते भजनाए बांधे कदाच बांधे अने न पण बांधे अने उपरनो नोभवसिद्धिक अने नोअभवसिद्धिक एटले भव्य नहि तेम अभव्य नहि अर्थात् सिद्ध, ते न बांधे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुर्दर्शनी, अवधिदर्शनी अने केवलदर्शनी ज्ञानावरण कर्म बांधे ? [उ०] हे गौतम ! हेठळना त्रण चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुर्दर्शनी अने अवधिदर्शनी एत्रण भजनाए बांधे एटले कदाच बांधे अने कदाच न बांधे, | तथा उपरनो-केवलदर्शनी ते न बांधे, ए प्रमाणे वेदनीय सिवायनी साते कर्मप्रकृतिओ माटे जाणवू, वेदनीयकर्मने नीचेना त्रण बांधे छे अने केवलदर्शनी कदाच बांधे अने कदाच न बांधे.
णाणावरणिज कम्मं किं पजत्तओ बंधइ अपजत्तओ बंधइ नोपज्जत्तएनोअपज्जत्तए बंधइ?, गोयमा! पजत्तए
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