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अस्थिसंहारः ....
... अस्थिसंहारः
नव्यमंत
-: हानिकर्ता-उष्ण प्रकृति को । दर्पघ्न--घृत । , में उन पौधे के वर्णन देने का कारण यह है कि
प्रतिनिधि जोंक की पित्ती । । ट्रिप्लिकेनमें एक श्रादमी जोकि चिरकारी एवं हठीले प्रधान कम-सबल भग्नास्थिसन्धानक । (Obstina te) अजीण से चिरकाल से पीड़ित मात्रा-२ मा० ।।
था ४० दिवस तक उक मुरब्बाके सेवन के पश्चात् गुण, कर्म, प्रयोग-प्राचीन यूनानी ग्रंथों में | वह बिलकुल रोग मुक्र होगया । ( मे० मे० हड़जोड़का उल्लेख नहीं पाया जाता । अर्वाचीन लेखकों ने अपने ग्रंथों में जो इसके संक्षेप वर्णन ... डोमक-इसके ताजे पत्र एवं काण्ड का दिए हैं वे केवल आयुर्वेदीय वन की प्रति कभी कभी शाक रूप से व्यवहार होता है । पुरा. ‘लिपि मात्र हैं। वनस्पति विषयक कतिपय उदू तन होने पर ये चरपरे हो जाते हैं तब इनमें - ग्रंथों में लिखा है कि "प्रायः गुणों में यह गुडूची, औषधीय-गुण धर्म होने का निश्चय किया जाता
के समान है। परन्तु यह परीक्षणीय है । इससे है, फा० इ. १ मा० .. पारद की भस्म बनती है। बु० मु० । म० मु०। ऐन्सला लिखते हैं कि तामूल चिकित्सक
अग्निमांद्य जन्य कतिपय प्रान्त्र रोगों में इसके . मोहीदीन शरीफ़--इन्द्रिय व्यापारिक कार्य
शुपक कारद्ध के चूर्ण का व्यवहार करते हैं। ये
सशक परिवर्तक माने जाते हैं और लगभग प्रामाशय बलप्रद (पाचक ) तथा परिवर्तक ( रसायन ) । उपयोग-अजीण में इसका
२स्क्रप्ल २॥ मा०)की मात्रामें इसका चूर्ण किञ्चित् लाभदायक प्रयोग होता है ।
तण्डुलोदक के साथ दो बार दैनिक व्यवहार में
... आ सकता है। औषध-निर्माण-मुरब्बा-नवीन तथा कोमल कांड के छोटे छोटे टुकड़े करें और प्रत्येक टुकड़े
फोसकहल ( Forskahl) वणन करते को कीचनी से कांच डाले' (जिस प्रकार श्रामला
हैं कि मेरुदंड विकार से पीड़ित अरब लोग इसके
कांड की शय्या बनाते हैं। का मुरब्बा बनाते समय आमलोंको एक विशेषयंत्र द्वारा कोंचते अर्थात् उसकी चारों ओर गम्भीर
___ कत्राव (पति कण) में इसके कांड छिद्र कर डालते हैं ) । पुनः उन टुकड़ों को जल में स्वरस द्वारा कर्ण पूरण करते हैं तथा नासार्श वा कोमल होने तक कथित करें' । इसके बाद पानी
नासारखाव में इसे नासिकामें टपकाते हैं। अनियको फेक दें और टुकड़ों को हल के हाथों से
मित ऋतुदोष तथा स्कर्वी के लिए भी यह प्रख्यात निचोड़ ले। फिर उनको चूणों दक वा १ ड्राम
है। प्रथन रोग में २ तो. स्वरस (पौधे को उष्ण (३॥ मा० ) से ४ पास पर्यन्त कार्बोनेट प्रॉफ करके निकाला हुआ), २ तो. घृत और १-१ 'सोडा विलीन किए हुए जल में कथित करें और तो. गोपीचन्दन ( श्वेत मृत्तिका विशेष) तथा पूर्ववत् तरल को फेंक दें। इस क्रम को दो तीन शर्करा में मिलाकर दैनिक उपयोग में आता है। बार और काम में लाए अथवा इस . क्रम., को फा० इ० १ भा० । मे० मे० प्रॉफ ई. तब तक दोहराते रहें जब तक कि वे किसी भार० एन० खोरी। ... प्रकारकी चरपराहटसे शून्य एवं कोमल न होजाएँ। बैल्फर ( Balfour ) राजयक्ष्मा में इसके
तदनन्तर उनको स्वच्छ उष्ण जल से धोकर और कांड का कल्क व्यवहृत होता है । कपड़े से पोंछ कर शर्करा के साधारण शर्बत में
आर. एन खं रो-अस्थिसंहार रसायन डाल कर सुरक्षित रखें। सप्ताह पश्चात् यह प्रयोग |'
तथा उत्तेजक है । यह अजीर्ण, अग्निमांद्य एवं में लाने योग्य हो जाएगा।
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स्कर्वी रोग में व्यवहृत होता है । पार्द्र अस्थि. मात्रा-२ से ४ डाम तक २४ घंटे में २ या संहार को पीसकर अस्थि विश्लेष, अस्थिभग्न ३ बार । डॉक्टर महोदय लिखते हैं कि इस ग्रंथ किम्वा क्षत पर प्रलेप करते हैं। ( Materia
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