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अश्वत्थ
अश्वत्थ
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पीपल के पत्ते ५, नीबू के पत्ते ५ और निगु. क्षत के धावनार्थ एवं लालास्राव में कवलार्थ ण्डी पत्र ७ इन तीनों में १॥ सेर पानी डाल- व्यवहार में आता है। कर खूब क्वथित करें | थोड़ा जल शेष रहने पर (मेटिरिया मेडिको श्रॉफ इण्डिया-आर. इसको उतार कर मोटे कपड़े से छानलें और एन० खोरी २ य खण्ड, ५५६ पृ०) · इससे (क्वाथ से ) दूना तिल तैल मिलाकर अश्वत्थ त्वक् का क्वाथ तथा फांट पिलाना तैलावशेष रहने तक पकाएँ।
.. पूय मेह, मूत्रकृच्छ एवं श्राद्र कण्दू में हितकारक गण व प्रयोग-यह तैल कर्णशूल, कण क्षत एवं वधिरता के लिए हितकर है.। कान
अश्वत्थ चूर्ण को अंकुरोत्पादन हेतु विकृत से पूयस्त्राव होताहो तो प्रथम उसको निम्ब क्वाथ | .: क्षती पर छिड़कते हैं । छाल. चमड़ा सिझाने के से प्रक्षालित कर फिर इस तैल के ४ - ५. ● द |
- ... काम में आती है । ( ई० मे० मे.) . रूई के फाया पर डाल कर इसको कान में |
.... - इसकी छाल संग्राही है और विकृत क्षतों रखें। इससे लाभ होगा।
एवं कतिपय चर्म रोगों में इसका उपयोग होता अश्वत्थ त्वक् .. अश्वत्थ त्वक संग्राही है और पूयमेह में
अश्वत्थ की शुष्क छाल के चूर्ण को अतसी इसका उपयोग होता है। इसमें पोषक गुण भी तेल के साथ प्रयुक करने से यह व्रणपूरक है। है ( ऐन्सली तथा वाइट)। श्राद्र कण्डू में | .
इसकी छाल को पानी में डालकर उस पानी
के पीने से हृल्लास एवं तृषा तत्काल प्रशमित इसकी छाल के फांट का अन्तः प्रयोग होता है ।
होती है। इसकी छाल (वा मूल स्वक् ) का ___प्रादाहिक शोथों में इसके विचूर्णित त्वक का
प्रलेप नाडीव्रण ( नासूर ) के लिए हितकर और कल्क पाचोषक ( Absorbent) रूप से
शोथ लयकर्ता है। व्यवहार में आता है। ( इमर्सन )
- इसकी छाल को पानी में पीस कर लिंगेन्द्रिय - इसकी छाल को जलाकर उसे गरम गरम पर प्रलेप करें। सूख जाने पर उष्ण जल से जल में डाल दें। कहा जाता है कि यह पानी धोकर स्त्री-संग में प्रवृत्त होने से यह आश्चर्यहठीले कास में लाभदायक है । (डॉ० थ्रॉण्टन) जनक वीर्य स्तम्भन करता है। और मनुष्य को इसकी शुष्क छाल का चूर्ण भगंदर में प्रयुक्त
बेवश बना देता है। होता है । मैंने एक हकीम को इसका लोभपूर्ण
पीपल वृक्ष की छाल को जल में घिस कर उपयोग करते हुए पाया । प्रयोग-विधि निम्न है- यदि प्रारम्भ में ही फुसियों पर प्रलेप करें तो . एक धातु ( वा किसी अन्य पदार्थ) की नली
ग्रह उनको जला देता है और बढ़ने नहीं देता। . में किञ्चित् अश्वत्थ चूर्ण को रख कर भगन्दर
किसी किसी समय वृद्धि की दशा में लगाने से के क्षत के भीतर फूंक द्वारा प्रविष्ट करदें।
फोड़े को अपनी जगह बिठा देता है। .,
नाड़ी-प्रण के क्षत के लिए इसकी छाल को . बालक के श्रोष्ठ, जिह्वा, तालु किम्वा मुख के
घृतकुमारी के पीले रस में घिसकर वर्तिप्लुत भीतर दधि विन्दुवत शुभ्र क्षत होने पर वा
कर न सूर में रखने और उसके चारों ओर प्रलेप ..'साधारण मुख क्षत में मधु के साथ अश्वत्थ चूर्ण
करने से थोड़े ही दिवस में नासूर को अच्छा कर का प्रलेप करें। श्वास रोग में अश्वत्थं चर्ण
.. देता है। मधु के साथ सेवनीय है। अश्वत्थ स्वक साधित
पीपल वृक्ष की छाल को जौकुट करके एक घड़े तैल- श्वेतप्रदर तथा श्रामरक्रातीसार में अनुवा- - में भरदें और मुख बन्द करके इसको एक गढ़े में सन वरित रूप से और इसका क्वाथ विकृत . रक्खें । इस गढ़े के भीतर एक और छोटा सा
(वैट)
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