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अश्वत्थ
अश्वत्थ शर्बत अर्क गुलाब में पीने से हौलदिल में लाभ ६ मासा, इन तीनों ओषधियों को कूट छानकर होता है।
चने के बराबर गोलियाँ बाँधकर रख छोड़े। पोपल के पत्तो को सुहागे में शुष्क करके,
आवश्यकता होने पर १ गोली गर्म पानी या समग़ अरबी ( वर निर्यास), सत मुलहठी
सौंफ के अर्क के साथ सेवन करने से यह मूत्रल है और मिश्री इनको कूट छान इसका चने के
और वृक्क शूल के लिए हितकर है तथा कोष्ठबद्धता बराबर गोलियाँ बनाएँ। इसको मुख में रखकर
एवं बादी को बहुत कुछ लाभ प्रदान करता है। चूसने से खांसी, गजे की सूजन प्रभृति को लाभ
पीपल के पत्तों को काली मरिच के साथ पीस होता है।
कर मरिच प्रमाण वटिकाएँ प्रस्तुत कर सेवन
करने से भी उपयुक्र लाभ होता है। पीपल के ताजे पत्ते २ तो०, कालोमरिच ११
__पादशोथ में इसके पत्तों की लुपड़ी बाँधना अदद, दोनों को पाव भर पानी में रगड़ और छान
हितकर है। कर प्रातः सायंकाल पिलानेसे कुष्ठ रोग नष्ट
२॥ अदद पीपल के पत्तों को खूब घोटकर होता है।
छोटी इलायची और बतासा डालकर पाव भर पीपल के पत्र एवं पत्र स्वरस का येनकेन प्रका
पानी में मिलाकर प्रातः सायं पान करने से मृत्ररेण व्यवहार अतिशय लाभप्रद है।
दाह दूर होता है। पीपल के पत्र का रस १ छ०, तिल तैल प्राध छटाँक इसको तैलाशेष रहने तक पकाएँ ।
पीपल के नव पल्लव को लेकर बारीक बारीक फिर छान कर रखें। इसके लगाने से कंठमाला
चीरलें। फिर इनको उबाल लें। उबालने से जो
पानी निकले उसमें शकर डालकर चाशनी बनाएँ दूर होता है।
और चाशनी में उबाली हुई कोपलें डालकर पीपल के कोमल पत्तों को जल से धोकर इसे घी में भूनकर और आवश्यकतानुसार काली
मुरब्बा तैयार करलें । गुण-यह अत्यंत वल्य मरिच और नमक का चूर्ण मिला सुबह शाम
एवं वृहण है। सेवन करने से बन्ध्यस्व दूर होता है । लगभग पीपल के पत्तों का रस सन्निपात की औषधी एक मास पर्यंत सेवन काफ्नो है। अपथ्य-६ मास का एक अनुपान है। पर्यंत पुरुष समागम और रजोधर्म काल में हलदी पीपल के पत्तों के क्वाथ में सिद्ध किया का सेवन ।
हुआ कड़ा तैल हर प्रकार के कर्णशूल के पीपल के पीले पत्तों का, सत्व-निर्माण विधि लिए लाभप्रद है। उत्कट ज्वर के उतरने के द्वारा सत्व प्रस्तुत कर २-२ रत्ती की मात्रा में पश्चात् की रूक्षता जन्य वधिरतामें यह तैल और इसको जल वा गोदुग्ध के साथ सेवन करने से
भी लाभदायक है कंठमाला को लाभ होता है। नोट-खरल करते छाया में शुष्क किए हुए पीपल के पत्तो को समय चिकना करने के लिए इसमें किञ्चित् गोघृत कुट छान कर गुड़ के साथ इसकी चने प्रमाण मिला लेना चाहिये।
गोलिया बनाकर सेवन करने से निम्न रोगों में पीपल के पत्तों को खूब घोटकर वर्तिका बना लाभ होता है, यथा-उदरीय कृमि, उदरशूल रजोकाल में इसके योनि में रखने से प्रार्तव प्रामशूल, प्लीहा, शोथ, अजीर्ण और कोष्ठबद्धता प्रवर्तन होता है।
इत्यादि । इन रोगों के होने पर १-१ गोली अश्वत्थ पत्र का अर्क दो तो० की मात्रा में
प्रातः सायं अर्क सौंफ के साथ सेवन करें। पीना हौलदिल के लिए लाभदायक है।
इसके हरे पत्तो के गरमागरम क्वाथ द्वारा छाया में शुष्क किए हुए पीपल के पत्ते ६ सेक करने और पत्तो को रोग स्थल पर बाँधने मासा, पहाड़ी पोदीना ६ मा०, मस्तगी रूमी | ... से ख नाक में लाभ होता है।
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