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अवसेचनम्
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चनम् avasechanam-सं० क्लो० : अनुसार छः प्रकार की अवस्थाएँ -जन्म, स्थिति, अवसेचन avasechana-हिं० संज्ञा पु. वर्धन, विपरिणमन, अपक्षय और नाश ।
(१) जलसेचन । सींचना । पानी देना । सु० । (२) । (१) सांख्य के अनुसार पदार्थों की तीन पसीजना । पसीना निकलना । (३) वह क्रिया अवस्थाएँ है-अनागतावस्था, व्यकाभिव्यकाजिसके द्वारा रोगी के शरीर से पसीना निकाला वस्था और तिरोभाव । जाए । (४) जोंक, सींगी, तूंबी या फस्द देकर
अवस्थांतर avasthāntara-हिं० संज्ञा पु. रक्त निकालना ।
[सं०] ( Change of state) अवस्कन्दः avaskandan-6०० अवगाहन एक अवस्था से दूसरी अवस्था को पहुँ.
स्नान, मज्जनपूर्वक स्नान करना, डुबकी लगाना । चना । हालत का बदलना | दशापरिवर्तन । ( Bathing, A blution.)
अवस्थान avasthāna-हि. संज्ञा पुं० [सं०] अवस्कयनी avaskayani-सं० स्त्री० बहु
(१) स्थिति | सत्ता । (२) स्थान | जगह । दिनानन्तर प्रसूता गाय, अधिक समय में वा वास। बड़ी उम्र की ब्याई गाय ।
अवस्थापन avasthāpana-हिं० संज्ञा पु. अवस्करः avaskarah-सं० पु
[सं०] निवेशन । रखना । स्थापन करना । अवस्कर avaskara-हिं० संज्ञा प० अ वस्थात्रय avasthātrya-हिं. प. वेदांत
(१) विष्ठा, मल, विट् ( Eecrement, दर्शनके अनुसार जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति ये तीन Feces.)। (२) गुह्य देश । ( Privy- अवस्थाएँ हैं । parts, Pudendum. ) मे० रचतुष्क । अवस्था विचार vasthā-vichāra-सं० (३) सम्माजनादि-निक्षिप्त धूल्यादि, पावर्जना, पु. दशा विचार, अवस्था का निश्चय करना ।
झाड़ना पूँकना । (४) मलमूत्र ।। अवस्यंदन avasyandana-हिं० संज्ञा पु. अवस्करकः avaskula kah-सं० पु० सम्मा- सं०] टपकना । चूना । गिरना। जनी, म.जनी, झाड़।
अवह avahaa-हि. संज्ञा पु० [सं०] (१) श्रवस्कवavaskavam-सं०कती त्वचाके भीतर वह वायु जो अाकाश के तृतीय स्कंध पर है ।
घुस जाने वाले दन्द्र श्रादि के कीड़े । अथर्व। ईथर (AEther) । (२) वह दिशा जिसमें सू० ३१ । ५ । का०२।
नदी नाले न हों। अवस्था avastha-हिं. संज्ञा स्त्री० [सं०1/ अवहस्तः a vahastah-सं० प.
अवहस्त avahasta-हिं० संज्ञा पु. (१) दशा । हालत । (state, con. dition.) । (२) समय । काल ।
हस्त पृष्ठ, हाथ या गदेली का पिछला(पृष्ठ)भाग,
उलटा हाथ ( Back of hand. ) ।हे. (३) प्रायु ! उम्र । (४) स्थिति । (५) वेदांत दर्शन के अनुसार मनुष्य की चार श्रवस्थाएँ होती हैं - जागृत, स्वप्न, सुषप्ति और
अवहारः,- ava hairah, ka.h-सं० पु. ।
अवहार, कः avahāra, kah--हिं०संज्ञा पु.) तुरीय । ( ६ ) स्मृति के अनुसार मनुष्य जीवन की अाठ अवस्थाएँ हैं-कौमार, पौगंड, कैशोर,
(१) ग्राहाख्य जल तन्तु, मगर । (Alligaयौवन, बाल, तरुण, वृद्ध और वर्षीयान् । (७)
_tor ) मे० रचतुष्क । (२ ) जलहस्ति । कामशास्त्रानुसार १० अवस्थाएं हैं-अभिलाषा,
। स। चिन्ता, स्मृति, गुणकथन, उद्वेग, संलाप ,उन्माद,
| अवहालिका avahālika--सं० स्त्रो० प्राचीर,
बाहरका कोट, प्राकार, चार दीवारी । (A wall, व्याधि, जड़ता और मरण । (८) निरुक्त के
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