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अर्जुन ...."व्यङ्गेषु चार्जुन त्वग्वा" ( उ० ३२ १०) । त्वक्-मूत्ररोध जन्य उदावत में अर्जुन की ...(२)अजुन और सिरिसकी छालके क्वाथमें रूई, छाल का काथ पान कराएँ । यथाकी बत्ती भिगोकर योनि में रखने से मूढगर्भ ... "मत्रोव अनित * कषायंककुभस्य च।" के निकलने के पश्चात् को व्यथा दूर होती है। (म० ख० तृ० भा०)
चक्रदत्तरतातिलार में अर्जुन त्वक् । हागत-पूयमे : में प्रज्जुन स्वक्-प्यअजन की छाल को बकरी के दूध पीसकर सेमी को व तथा को छाल का काथ पान बकरी का दूध तथा मधु मिला कर पीने से रक्का
कराएँ । यथा- पूय मेहे कपायश्च धवाजुतिसार निवृत्त होता है। यथा
नस्य ।” (चि० २८ अ०) fx अजुन त्वचः । पोताः कोरेण
वङ्गसेन -ग्रहणो में अर्जुन ज्ञार-केशराज मध्वादयाः पृथक् शोणित नाशनाः।"
एवं अर्जुन की छाल के अन्तधूम दग्ध क्षारको (अतिसार चि०).
प्रातः काल तक ( मस्तु) के साथ पान करें। यह (२) रोग में अर्जुन स्वक्-कुट्टित अर्जुन
वेदना बहुल श्रामग्रहणी के लिए हितकर है। छाल २तो०, गव्य दुग्ध श्राध पाव, जल डेढ़ पाव, यथाइनको दुग्धावशेष रहने तक क्वथित करें। यह
केशराजोऽज्जुनक्षारं प्रातः पोतश्चमस्तुना । क्वाथ हृद्रोग में सेवनीय है । यथा
निहन्ति साममत्यर्थमचिराद् ग्रहणोरुजभू ॥ - "अर्जुनस्य त्वचा सिद्ध क्षोरं याज्यं ।
(ग्रहगयधिकार) हदामये।" (हृद्रोग चि०) ..
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वक्तव्य ( ३ ) वलसञ्जननार्थ अर्जुन त्वक्- चरक के उदई रामनवर्ग में अज्जुन का अर्जुन की छाल को दुग्ध.. में पीसकर दूध के ... उल्लेख है (सू० ५ ० ) तथा वित्तमेह साथ पीने से बल की वृद्धि होती है, अर्थात् यह ... "निम्बार्जु नाम्रात निशोत पलानां," : "शिरीष परं वल्य व रसायन है । रथा--...
सर्जाजन केशराना" व कफमेह "विडङ्ग पाठार्जुन "ककुभस्य च वल्कलम् ।
धन्वनारच" एवं कफ वाताज मेह "बचापटोला रसायनं परं-वल्यं ।' (हृद्रोग चि०) जुन” विषयक पाओं के अन्तर्गत द्रव्यान्तर से (४) अस्थि मग्न में अर्जुन त्वक- प्रमेह रोगों में अर्जुन का व्यवहार दृष्टिगोचर सन्धियुक्त अस्थि भग्न में दुग्ध तथा घृत के साथ
न
होता है। चकदत्त की हृद्रोग चिकित्सा के
हा अर्जुन स्वक् चूर्ण को पान कराएँ । यथा- अन्तर्गत इसका पाठ है और उन्होंने हृद्रोगहर "... "सतेन * अज्जनम् । सन्धियतोऽस्थि द्रव्यों में इसे श्रेष्ठ माना है। किन्तु चरक
भग्ने च पिवेत् क्षीरेण मानवः।" ( भग्न सुशुतोक हृद्रोग चिकित्सामें इसका नामोल्लेख भी चिर)
-- नहीं हुआ है। ........ भावप्रकाश-क्षयकास में प्रज्जुन स्वक्
चरक-सुश्रुतोक क्षयकास चिकित्सान्तर्गत ..अजुन की छाल को चूर्ण कर अड़सा पत्र स्वरस । अर्जुन का प्रयोग दिखाई नहीं देता। चक्रदत्तोक
की सात भावना देकर मिश्री, मध तथा गोघृत के ... ... रक्रातिसारान्तर्गत. अर्जुन का प्रयोग, सुश्रुतोकि साथ चाटें । यह सरक क्षयकास हर है | यथा- की अविकल प्रतिलिपि है । ( सु० उ० ४० 1 : "चूर्ण काकुभमिष्टं वासक रस भावित बहुवारान । मेंधु घृत सितोपलाभिर्लेग क्षय ___उपयुक वर्णन से यह ज्ञात होता है कि कासरतहरम् ।" (म० ख० द्वि भा०) . संस्कृत ग्रन्थकार अर्जुन को अति प्राचीन काल से
(३) 'मुत्ररोधज उदावर्त में अर्जुन हृदय बलदायक औषध मानते आए हैं। सर्व
वत'
श्र.)
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