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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्जुन ...."व्यङ्गेषु चार्जुन त्वग्वा" ( उ० ३२ १०) । त्वक्-मूत्ररोध जन्य उदावत में अर्जुन की ...(२)अजुन और सिरिसकी छालके क्वाथमें रूई, छाल का काथ पान कराएँ । यथाकी बत्ती भिगोकर योनि में रखने से मूढगर्भ ... "मत्रोव अनित * कषायंककुभस्य च।" के निकलने के पश्चात् को व्यथा दूर होती है। (म० ख० तृ० भा०) चक्रदत्तरतातिलार में अर्जुन त्वक् । हागत-पूयमे : में प्रज्जुन स्वक्-प्यअजन की छाल को बकरी के दूध पीसकर सेमी को व तथा को छाल का काथ पान बकरी का दूध तथा मधु मिला कर पीने से रक्का कराएँ । यथा- पूय मेहे कपायश्च धवाजुतिसार निवृत्त होता है। यथा नस्य ।” (चि० २८ अ०) fx अजुन त्वचः । पोताः कोरेण वङ्गसेन -ग्रहणो में अर्जुन ज्ञार-केशराज मध्वादयाः पृथक् शोणित नाशनाः।" एवं अर्जुन की छाल के अन्तधूम दग्ध क्षारको (अतिसार चि०). प्रातः काल तक ( मस्तु) के साथ पान करें। यह (२) रोग में अर्जुन स्वक्-कुट्टित अर्जुन वेदना बहुल श्रामग्रहणी के लिए हितकर है। छाल २तो०, गव्य दुग्ध श्राध पाव, जल डेढ़ पाव, यथाइनको दुग्धावशेष रहने तक क्वथित करें। यह केशराजोऽज्जुनक्षारं प्रातः पोतश्चमस्तुना । क्वाथ हृद्रोग में सेवनीय है । यथा निहन्ति साममत्यर्थमचिराद् ग्रहणोरुजभू ॥ - "अर्जुनस्य त्वचा सिद्ध क्षोरं याज्यं । (ग्रहगयधिकार) हदामये।" (हृद्रोग चि०) .. .. वक्तव्य ( ३ ) वलसञ्जननार्थ अर्जुन त्वक्- चरक के उदई रामनवर्ग में अज्जुन का अर्जुन की छाल को दुग्ध.. में पीसकर दूध के ... उल्लेख है (सू० ५ ० ) तथा वित्तमेह साथ पीने से बल की वृद्धि होती है, अर्थात् यह ... "निम्बार्जु नाम्रात निशोत पलानां," : "शिरीष परं वल्य व रसायन है । रथा--... सर्जाजन केशराना" व कफमेह "विडङ्ग पाठार्जुन "ककुभस्य च वल्कलम् । धन्वनारच" एवं कफ वाताज मेह "बचापटोला रसायनं परं-वल्यं ।' (हृद्रोग चि०) जुन” विषयक पाओं के अन्तर्गत द्रव्यान्तर से (४) अस्थि मग्न में अर्जुन त्वक- प्रमेह रोगों में अर्जुन का व्यवहार दृष्टिगोचर सन्धियुक्त अस्थि भग्न में दुग्ध तथा घृत के साथ न होता है। चकदत्त की हृद्रोग चिकित्सा के हा अर्जुन स्वक् चूर्ण को पान कराएँ । यथा- अन्तर्गत इसका पाठ है और उन्होंने हृद्रोगहर "... "सतेन * अज्जनम् । सन्धियतोऽस्थि द्रव्यों में इसे श्रेष्ठ माना है। किन्तु चरक भग्ने च पिवेत् क्षीरेण मानवः।" ( भग्न सुशुतोक हृद्रोग चिकित्सामें इसका नामोल्लेख भी चिर) -- नहीं हुआ है। ........ भावप्रकाश-क्षयकास में प्रज्जुन स्वक् चरक-सुश्रुतोक क्षयकास चिकित्सान्तर्गत ..अजुन की छाल को चूर्ण कर अड़सा पत्र स्वरस । अर्जुन का प्रयोग दिखाई नहीं देता। चक्रदत्तोक की सात भावना देकर मिश्री, मध तथा गोघृत के ... ... रक्रातिसारान्तर्गत. अर्जुन का प्रयोग, सुश्रुतोकि साथ चाटें । यह सरक क्षयकास हर है | यथा- की अविकल प्रतिलिपि है । ( सु० उ० ४० 1 : "चूर्ण काकुभमिष्टं वासक रस भावित बहुवारान । मेंधु घृत सितोपलाभिर्लेग क्षय ___उपयुक वर्णन से यह ज्ञात होता है कि कासरतहरम् ।" (म० ख० द्वि भा०) . संस्कृत ग्रन्थकार अर्जुन को अति प्राचीन काल से (३) 'मुत्ररोधज उदावर्त में अर्जुन हृदय बलदायक औषध मानते आए हैं। सर्व वत' श्र.) For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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