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अरण्यवाताद
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अरण्य वास्तुका
के काम आता है। यह रसोई बनाने के भी काम दो किनारे होते हैं, यह दो इक्ष लम्बा और पकने प्राता है तथा वाताद तैलवत् स्नेहकारक व सुस्वादु पर मन्द बैंगनी रंग का होता है। मजा चमकीले
और अशुद्धस्रावों तथा पूयमेह प्रादिमें लाभदायक बैंगनी रंग की होती है । गुटली खुरदरी, कठिन ख्याल किया जाता है । उक्र वृक्ष की त्वचा से और मोटी होती है। गिरी बादाम के अर्द्ध अधिकता के साथ स्वच्छ तैल प्राप्त होता है जो श्राकारकी और करीब करीब बेलनाकार होती और नवनीतीय कपूरवत् समूहों में जम जाता है। बङ्ग देशीय युरूप निवासियों में "लीफ नट" नाम इं० मे० मे।
से सामान्यतया व्यवहार में पाती है। (५) जंगली बादाम, हिन्दी बादाम-हिं०, द०, गसासनक संगठन-त्रैण्ट (Brant) बम्ब०। इङ्गुदी फलम्, देश-बादामित्ते-सं० । के मतानुसार इसमें २८ प्रतिशत तैल होता है बादामे हिन्दी-फ़ा० । इण्डियन प्रामण्ड जो स्वाद एवं मृदुता में वाताद तैल से बढ़कर ( Indian Almond, nut of-), होता है। यह पीताभायुक्र एवं बिलकुल गंध श्रामण्ड ट्री ( Almond tree )-इं०। रहित होता है । इसमें मुख्यतः स्टियरीन टर्मिनेलिया कैटेप्पा ( Terminalia cata. (Stearin ) तथा श्रॉलीईन (Olein) ppa, Linn.)-ले०। बडामीर डी मलाबार विद्यमान होते हैं । इस वृक्ष में बैमोरा ( Bass( Badamier d' mala bar )-फ्रां० । (ora) की तरह का एक निर्याम होता है । पत्र अखटेर कट्टा-पेन बॉम (Achter Cattap. और त्वचा में कषायीन होता है । स्वचा में एक en baum)-जर० । बंगला बदाम, बदाम प्रकार का काला रंग होता है जिसमें कोई कोई -बं० । नाटु-बादम्-मौट्ट, नाट-वादम्, श्रामण्डी दॉत रंगने का काम लेते हैं। बमम्म, पोटाम मरम्-ता० । इंगुदी, तपम नम्वु, नाटटु-वादमु, नया कपायीन होने हैं। नाटु-बादम-वित्तुलु, वा (वे) दम-ते. । ना? प्रभाव तथा उपयोग-इसकी त्वचा संकोचक बादम, कोट-कुरु, श्रादम-मर्रम, कटप्पा-मल० । (मंग्राही) है । अस्तु, पूयमेह तथा श्वेतप्रदर में क्वाथ नाट-बादामि, तरू, बादमीर-कना० । नाट रूपम इसके अन्तः प्रयोगकी प्रशंसा की जाती है। बादाम, देसी-बदाम, हात बदाम, बेंगाली
इसके कोमल--पत्र-स्वरस द्वारा एक प्रकार का बदाम, जंगली-बादाम-मह०, बम्ब०। कोटम्ब
प्रलेप निर्मित किया जाता है जो कराड, कुष्ठ तथा -सिं० । नाट-नि-बदाम-ग।
अन्य प्रकार के त्वग्रोगों और शिरोऽति तथा हिमज वर्ग
उदरशूल में अन्तः रूप से लाभदायक ख्याल (V.O. Combrelucce.)
किया जाता है। उत्पत्ति-स्थान-मलाया ( अब सम्पूर्ण हसका फल प्रभाव में बादाम के समान भारतवर्ष में लगाया गया है)।
होता है। . नर-जी. डी. बस तथा मोहीदीन शरीफ अरण्य वायसः aranya-vayasa सं श्रादि लेखकों ने इसका संस्कृत व तेलगु नाम अरण्य काक, बन कौश्रा, डोम कौआ, काला इंगुदी लिखा है। परन्तु श्रायुर्वेदाच-ग्रंथ-लसकों कौत्रा-हिं० । डोम काक-बं० । डोम कावला का इंगुदी , हिंगोट वा हिंगुश्रा ( jalanites ___-मह । रेवेन ( Ravell)-३० । रा०नि० Roxburghii, Planch.) इससे भिन्न ही व०१६ । वस्तु है।
अरण्य वासिनो aranya-vasini-सं० स्त्री० वानस्पतिक-विवरण-यह एक वृक्ष है ।इसका अत्यम्लपर्णी लता, अमरबेल, अमलोलवा । फल अण्डाकार, पिच्चित (भिचा हुश्रा, संकुचित), रा०नि०व०३। (Vitis Trifolia.) चिकना, गउलीयुक्र, जिसके उभर हुए नाली युक्र । अरण्य वास्तूक: aranya-Vastukah-स०
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