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अरण्य मदनमस्त पुष्प
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মন মদি।
अरण्य मदनमस्त पुष्प aranya-madan. पाए जाते जो इसके प्रसिद्ध मदकारी प्रभाव के .masta-pushpa-हिं० पु. सिकास सर्सि- हेतु सिद्ध हों। इससे कतीरा के समान एक नेलिस (Cycas Circinalis, Linn. निर्यास तथा एक प्रकार का सागू या प्रकांड Syn. C. Iner mes.) । जंगली मदनमस्त तथा अस्थि द्वारा निर्मित वाटा जिसको मलाबार का फूल । बजर बह-बम्ब० । पहाड़ी मदन- में "इन्दुम पोदी" कहते हैं, पाए जाते हैं। मस्त का फल-द० । अाम्देसामोटपन-गो०।
प्रभाव तथा उपयोग-नर पौष्पिकपत्र(कोष) मदन कामेशुरप्पू, मदन-कामम्पू, कामप्पू, चनंग दक्षिण भारतवर्ष में मादक रूप से उपयोग में काय-ता० । मदन मस्तु, रान गुवा, मदन- श्राते हैं। इनमें उनपर रहने वाले कीटाण, ओं कामाक्षी-ते०। मालाबारी-सपारी-मह। रिन को मदान्वित करने का गुण है। ये उत्तेजक बदम, टोड्डुपन, एन्थकाय-मलब। मुदंग-बर।। तथा कामोद्दीपक भी हैं। इसका श्रौषधीय गुण मदू-गस्स-सिं०।
पाटला (पाढ़ल ) पुष्प के समान ख़याल किया (N. O. Cycadirceoe.)
जाता है। इसी कारण इन दोनों ओषधियों को उत्पत्ति-स्थान-मालाबार तट, पश्चिम मद- तामिल भाषा में मदन-काम-पु अर्थात् कामपुष्प रास की शुष्क पहाड़ियाँ।
शब्द से अभिहित करते हैं। अरण्य-मदन-मस्त प्रयोगांश-पौष्पिक पत्र (बैक्ट्स ), गुठली
पुष्प के पौष्पिकपत्र (बैक्ट्स) को अन्य द्रव्यों के तथा काण्ड।
साथ चूर्णित कर इससे कामोद्दीपक मोदक प्रस्तुत वानस्पतिक-विवरण-बाजार में बिकने किए जाते हैं । इस वृक्ष के कांड तथा गुठली द्वारा वाले पौपिकात्र भाला के शिर के शकल के, दो श्राटा प्रस्तुत किया जाता है। मालाबार में इस इञ्च लम्वे तथा प्राध इञ्च चौड़े और पृष्ट की ओर की गुठलियों को एकत्रित कर मास पर्यंत धूप में धूसरपीत वर्ण के कोमल सूक्ष्म रोमोंसे आच्छा
सुखाते हैं; तदनन्तर इसे खल में कूटकर भाटा दित होते हैं। प्रत्येक छिलके के वाह्य ऊर्ध्वकोण बनाते हैं जिसको "इंदुम पोदी" कहते हैं। यह से एक सूआकार अन्तः वक्र विन्दु निकलता है। (Calyota.) के प्राटे से श्रेष्ठ, किन्तु चावल जब कि कोण प्रथम प्रथम प्रगट होता है तो वे से निम्नकोटि का होता है और इसे पहाड़ी जा. अनन्नास के अङ्कर के समान बहुत निकट निकट तियाँ तथा निर्धन लोग खाते हैं, विशेषकर जुलाई चापित रहते हैं. परन्तु ज्यों ज्यों उनकी अवस्था
से सितम्बर मास तक जब कि चावल कम होता अधिक होती है त्यों त्यों वे एक दूसरे से भिन्न
है और उनके नाश होने का भय रहता है । प्रायः होते जाते हैं । इनमें कोई तन्तु नहीं होता; छिलके सागू में इसका मिश्रण किया जाता है। रहीडी
(Rheede) के वर्णनानुसार फलान्वित कोण का अन्तस्तल पराग-कोष (ऐन्थर) द्वारा पूर्ण रूप से पाच्छादित होता है; पराग-कोष (ऐन्थर) एक
(Cone) की पुल्टिस कटि पर लगाने से
वृक्कशोथ विषयक शूल दूर होता है । फा०ई०३ सेलीय द्विकपाट युक्त, शिखरके इर्द गिर्द खुला हुश्रा होता है. जिससे पराग विसर्जित हुया करता है।
भा० । ई० मे० मे। मजा में पाए जाने वाले श्वेतसार की अगा. नोट-"मदनमस्त"(Artabotrys odवीक्षण द्वारा परीक्षा करने पर यह सागू के समान oratissiima, R. BP.) तथा "मदनमस्त होता है।
का झाड़" नाम की दो और वनस्पतियाँ हैं जो रासायनिक-संगठन(या संयोगी अवयव)- पूर्व कथित वनस्पतियों से नाम सादृश्यता रखने पौष्पिकपत्र तथा त्वचा में अधिक परिमाण में पर भी दो सर्वथा भिन्न भिन्न ओषधि हैं। स० अल्ब्युमेनीय वा लबाबदार पदार्थ, जो जल में फा० इं० । इनके लिए यथास्थान देखो। लयशील होते हैं, शुष्क रूप में पाए जाते हैं। | अरण्य मक्षिका aranya-makshika-सं० परन्तु, इसमें कोई क्षारीय वा अन्य ऐसे सत्व नहीं स्त्री. वन मक्षिका, डंस, मच्छड़-हिं० । डॉश,
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