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प्रयापान
प्रयापान
मिलती है.-'यह दक्षिणी अमरीकाका एक पौधा है जो अब भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों तथा जावा लंका प्रभृति द्वीपों में उत्पन्न होता है और साधारणतः अपने ब्राज़ील संज्ञा अयापान नाम से विख्यात है। सम्पूर्ण पौधा सुगंधित किञ्चित् कटु वा कषाय स्वादयुक्त होता है। यह एक उत्तम उत्तेजक, बल्य तथा स्वेदक है । बॉटन (Bouton) के कथनानुसार मॉरीशियस (Mauritius) के औषधीय पौधों में यह सर्व श्रेष्ट प्रतीत होता है। अजीर्ण तथा ग्रान्त्र वा फुप्फुस के अन्य विकारों में शीतकषाय रूप से यह वहाँ दैनिक उपयोग की वस्तु है। उक्र द्वीप की सन् १८२४ -५६ की विशूचिका महामारी में शरीर के वाह्य भाग की उप्मा के पुनरावर्तन तथा रक्संभ्रमण शैथिल्य को दूर करने के लिए इसका अधिकता के साथ उपयोग किया गया है। सर्पदंश के प्रतिविष स्वरूप इसका अन्तः वा वहिः प्रयोग सफलता के साथ किया जा चुका है । यद्यपि सामान्य रूप से यह अज्ञात है, तथापि बोगों (बम्बई ) में प्रायः होता है और जो इसे जानते हैं वे इसकी बड़ी प्रशंसा करते हैं। डाइमॉक
वानस्पतिक विवरण-एक लघु भूलुण्ठित सुपवत् पौधा, १ से ६ फीट ऊँचा, शाखाएँ सरल रनाभ (सुखी मायल), कतिपय साधारण बिखरे हुए (विरल ) लोमों से व्याप्त, नूतन अंकुर एक प्रकारके श्वेत वान्समीय नाव के सूचम प्रणाओंकी उपस्थिति के कारण कुछ कुछ भुर भुरे स्वरूप के होते हैं। पत्र सम्मुखवर्ती, युग्म जिनके प्राधार प्रकांड के चारों ओर संलग्न होते हैं तथा ४.५ इंच लम्बे और इंच चौड़े, मजापूर्ण, ऊर्ध्व पृष्ठ विषम (खुरदरा, अधः पृष्ठ लोमश तथा रालीय विन्दु युक्र (पी०वी० एम०), चिकने ( सम तल), भालाकार (शंकाकार क्वचित् ), प्रारीवत्, प्राधारपर पतले शिराग्याप्त होते हैं, माध्यमिक नस (शिरा) मोटी, सुती मायल, इसके मलने से अच्छी गंध पाती है। पुष्प ग्राउण्डसेलवत्, बैंगनी; गंध निर्वल तथा सुगंधिमय कुछ कुछ, इश्क्रपेचा ( Ivy ) के समान, किन्तु अधिक प्राय; स्वाद सुगंधित, कटु तथा कषाय (विशेष
प्रकार का) होता है । डाइमांक । पी०वी० एम०।
रासायनिक संगठन-(या संयोगी अवयव) डा० डाइमॉक महोदय के विश्लेषणानुसार इसमें दो सत्व पाए गए । इनमें से (१) एक वर्णरहित उड़नशील तैल जो ताजे पौधा को जल के साथ परिश्रुत करनेसे प्राप्त हुश्रा और (२) एक स्फटिकवत् (रवादार ) न्युट्रल ( उदासीन) सत्व जिसका नाम उन्होंने अयपानीन या प्रयापनीन (Ayapanin) रक्खा । जल में यह प्रविलेय तथा ईथर वा मधसार में विलेय होता है। इसके सूचीवत् दीर्घ रवे (स्फटिक) होते हैं। यह १५६° १६०° के उत्ताप पर सरलतापूर्वक उर्ध्वपातित हो जाता है। .
प्रयोगांश-सम्पूर्ण पौधा (शुष्क पत्र, पुष्पान्वित शाखाएँ तथा कलिकाएँ वा कोंपल) औषध कार्य में प्राता है।
औषध-निर्माण-पत्र-स्वरस, मात्रा-1 से १ तो। शुष्करुप-२० से ६० ग्रेन (१०-३० रत्तो) तरल सत्व-१ से २ फ्लु. डा० । घन सत्व-१० से २५ ग्रेन (५-१२॥ रत्ती ) शीत कषाय-(२० में १)-1 से २ फ्लु. पाउंस ( प्रभावावश्यकतानुसार)।
युपेटोरीन (घन )-१ से ३ प्रेन ( से १॥ रत्ती)।
इन्फ्युजम युपेटोरियाई ( Infusum Eupatorii)-ले०। इन्फ्यु जन अॉफ बोनसेट ( Infusion of Boneset. )-ई० । आयपान शीत कषाय-हिं० । ख्रिसाँदा प्रयापना -फा०, १०।
निर्माण-विधि-एक भाग यूपेटोरियम् को १. भाग उष्ण जल में ३० मिनट तक भिगोकर छान लें। मात्रा-आधा से १ फ़्लु. पाउंस।
(२) फ्लुइड एक्सट्रैक्टम् युपेटोरियम् (Fluid Extractum Eupatorium )-ले० । फ्लुइड एक्सट्रैक्ट प्रॉफ युपेटोरियम् ( Fluid Extract of Eupatorium )-50 । अयपान तरल सत्व-हिं० ।
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