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वेद
सारक हैं । यक़ीन स्याह dice ) तथा जलोदर के परन्तु आमाशय तथा शिर (auto)
धोद्घाटक तथा उदरीय कृमिघ्न व कृमिनिः ( Black jaunलिए गुणदायक हैं; के लिए हानिकर हैं ।
रोध उद्घाटक, मूत्रल, कृमिघ्न और बल्य है । ( Diosc. iii., 115, Pliny, 21, 60, 84)
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अरब निवासी इसको ज्वर-विकारों में प्रयुक्त करते हैं | २|| तो० उक्त श्रोषधि को रात्रिभर डे जल में भिगोकर प्रातः काल उसको छानकर सेवन करते हैं । बाल ज्वर में उन श्रोषधि की शरीर में धूनी देते हैं । फा० ई० ३ भा० । स्वाद - तिल | गंध-- तीव्र |
हानिकर्त्ता - शिरः शूलोत्पादक तथा श्रामाशय हानिकर है । दर्पन - हमामा श्रावश्यकतानुसार और सर्द तर वस्तु । किसी किसी के मत से करनीज़ ( धान्यक ) । प्रतिनिधि-- पार्वती पुदीना, शेह, अनार मूलत्वक् और तज । शर्बत की मात्रा - ४ मा० से १०॥ मा० तक |
प्रधानगुण -- बुद्धि वर्द्धक, रोधोद्घाटक और मूत्र एवं श्रार्त्तवप्रवर्त्तक ।
गुण, कर्म, प्रयोग—इसमें रेचन तथा तिर्यात की शक्ति है । यह सम्पूर्ण अवयव के रोध का उद्घाटक, अखुलात ( दोषों) को द्रवीभूत- कर्त्ता और मूत्र तथा आर्त्तव का प्रवर्त्तक है । इसका क्वाथ बुद्धिको तीव्र करता है और विस्मृति को दूर करता है तथा इस्तिस्क्वाश्रू बारिद ( शीत जलोदर ), यक़ीन स्याह ( Black Jaundice. ) एवं श्लेष्मा व वातजन्य ज्वरों को लाभप्रद है । उदरस्थ कृमि निःसारक वायुलयकर्त्ता, मूत्ररोध तथा संधिशूल को लाभप्रद एवं गर्भाशयशोधक और प्लीहा के शोथ का लय कर्त्ता है | इसका अवचूर्णन व्रणपूरक है | नवीन पत्तों का प्रलेप व्रण को स्वच्छकर्त्ता एवं पूरणकर्त्ता है । इसकी धूनी विषैले जानवरों को भगाती है। मधु के साथ इसका अंजन करने से दृष्टि तीव्र होती है । म० अ० । तुहफा ।
श्रम्बल
यह रक्र शोधक और बिच्छू के विष को दूर करने वाला है । म० मु० । अम्बरबेल ambarbel - पं० श्रर्कपुष्पी, बनबेरी - हिं० | सिंगरोटा-पं०, बम्ब० । ( Pentatropis spiralis. ) मेमा० । अम्बर माइ āambar-maiā-फा० अम्बर साइल āambar sail अ०
शिलारसः, सिह्नक:- सं० । मित्रहे साइलहू - फ़ा० | Liquidamber ( Styrax preparatus. )
अम्बर सुगन्धः ambar-sugandhah - सं० पुं० मश्क अम्बर, अम्बर । (Amber Grsea.)
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श्रम्बरहा ambarhá मात्र वन्ती । लु० क० । श्रम्बरा ambará - सं० स्त्री० कपास, कार्पास |
( Gossypium Indicum.)
अम्बरा ambará-सं० स्त्री० श्रम । ( Mango.)
श्रम्बराक्षी-चो ambarákshi,-chi-सं॰ स्त्री॰
अज्ञात ।
अम्बरातकः, -रीयः ambarátakah, -1iyah - सं०पु० अमड़ा, श्राम्र तक (Spondias Mangifera ) जटा० । अम्बरि,-रीषः ambri, rishah-सं०पु०ली० अम्बरीष ambarisha - हिं० संज्ञा पुं
( १ ) अमड़ा, श्रनातक (Spondias Mangifera.) । ( २ ) भर्जन पात्र । वह मिट्टी का वर्त्तन जिसमें भड़भूजा गरम बालू डालकर दाना भूनते हैं । श्रम० । ( ३ ) भाड़ । ( ४ ) सूर्य का नाम । ( ५ ) किशोर अर्थात् ग्यारह वर्ष से छोटा बालक । ( ६ ) अनुताप | पश्चात्ताप |
अम्बरी ambari - गारो० श्रामला । ( Phylla - nthus Emblica.) अम्बरीसक ambarisak - हिं० संज्ञा पुं० [सं० अम्बरीष ] भाड़ | भरसायँ । - ई० । श्रम्बल ambal - हिं० स्त्री० ( १ ) मादक वस्तु ( Intoxication.) । ( २ ) खट्टा रस ।
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