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अकतनः
१४
अकलबेर
karna.)। (३) साँप, सर्प (Snake,
A serpent )! अकर्तनः akartanah-सं० त्रि० ( Dwarf
ish ) वामन । वै० श०सं० । वाँश्रोन-बं०।। अकर्षण akarshana- हिं० संज्ञा पु० दे०
आकषण । अकलकरः akalkarah-सं० पु० उकरा, :
पोकरमूल (Spilanthus Oleracere)
इं० मे० मे० [फा० इं०। अकलकरा akalkara) -फा० अकरकरा अकलकोरा aqalqori ) (Pyrethrum
Radix) स० फ० इं०।। अकल akala-हि. वि. [ सं० ]
(१) अवयव रहित । जिसके अवयव न हों। (२) जिसके खंड न हों। अखंड । सर्वाङ्गपूर्ण । (Not in parts, without parts. ) (३) [सं० अ-नहीं+हि. कल-चैन ]
विकल । व्याकुल । बेचैन। अकलवर akala bar-हिं० संज्ञा पु० दे०
अकलवोर। श्रकल बोर a.kalabira-हिं० संज्ञा पुं० [सं०]
करवीर भांग की तरह का एक पौधा जो हिमालय पर काश्मीर से लेकर नेपाल तक होता है । इसकी जड़ रेशम पर पीला रंग चढ़ाने के काम में आती है। ( Datisca cannabina, Linn.)
देखो-अकलवार अकलबर्की akalbarki-द० सर्वजया, कामा
क्षो-सं० । सवजया-हिं० । देवकली-मह० । कृष्णताम्र-०। कण्डामण्ड-ता०, (Canna,
Indica, C. orientalis.) इं०मे० मे। अकलवार akalabar-हिं० (१) सबजया-बं०।।
सर्वजया, कामाक्षो-सं० । तेहर्ज-काश। ( Common Indian Shot.) इं० हैं।
गा। ई० मे० मे० | फॉ० इ०३ भा०।। अकलबार akalbir ) -हिं० पैर-बञ्ज, अकलबेर akab.l' ) भगजल(फॉ० इ०)
-बत्र वंग ( ई० मे० मे० )-पं० ।। वगतोल-तेहज-काश० । इंटिस्का केलाबीना ! (Datisca Cannabina, Linn.)-mol
अकलबार जाति (.. (). Datiscea.) उत्पत्ति-स्थान -हिमालय (काश्मीर से नेपाल पर्यन्त ) और सिन्ध ।
वानस्पतिक विवरण-कागड-२-६ फो०, कोर, शाखी: निम्नपत्र-१ फु०, पताकार । लघुपत्र (पत्रक )-७-११ संख्या में, ६ इं० लम्बा १॥ ई० चौड़ा, पत्रमूल (डंठल )-युक्त, ऊर्ध्व (पत्र) अत्यन्त सूदन तथा कम कटे हुए पुष्पपत्र (पंग्वडी) सामान्य (अनिश्रित) ३ इं० लम्बा तथा । इ० चौड़ा, पुष्पडण्डी में प्रायः पतली बंधनियां होती हैं। पगग-कोष-लम्बा अधिक बड़ा, तन्तु बहुत सूक्ष्म । नारितन्तु-चौथाई इं०, डोडा (छीमी) चौथाई इञ्च लन्या तथा इससे का चौड़ा,एक कोषीय. सिरे परखुला हश्रा: बोज वहसंख्यक धारीदार होते हैं तथा अाधार पर एक जालीनुना आच्छादन लगा रहता है। फ्लो० वि० इं० ।
प्रयोगांश-त्रुप, मूल, और त्वचा । रसायनिक संगठन ( या संयोगी तत्व )--
पत्र तथा मूल में एक प्रकार का ग्लूकोसाइड अकलबारीन (Datisein) क२१ उद२२ ऊ२, एक राल (Rasin) तथा एक भांति
का कटु सत्व पाया जाता है। अकलबारीन ( Datisciin ) वर्णहीन रेशमवत् सूची अथवा छिलके रूप में पाया जाता है। यह शीतल जल में कम तथा उष्ण जल एवं ईथर में अंशतः विलेय होता है। रवे (Neutral) और स्वाद में कटु होते हैं । थे १८०० शतांश के ताप पर पिघल जाते हैं।
औषध-निर्माण-पौधे का शीतकषाय (१० भाग में १ भाग ); मात्रा-प्राधे से १ अाउंस ( ता० से २॥ तो०), चूर्ण-मात्रा ५ से १५ ग्रेन (२॥ रत्ती से ७॥ रत्ती)।
प्रभाव व उपयोग-अकलबार कटु तथा सारक है और कभी कभी ज्वर, गण्डमाला तथा श्रामाशयिक रोगों में उपयोग किया जाता है। खगान (Khagan ) में इसकी जड़ को
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