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अमोनिया
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अमोनिया
उत्तेजित करने के कारण अमोनिया परावर्तित रूप से रुधिराभिसरण को उत्तेजना प्रदान करता
और नाड़ी की गति को तीन करता है। यदि ." अमोनिया को देर तक सूघा जाए अथवा वाष्प
अधिक तीव्र हों तो नासिका एवं वायु प्रणालियों में क्षोभ उत्पन्न हो जाता है। परावर्तित क्रिया
द्वारा यह सार्वांगिक रक्तभार की वृद्धि करता और ... आघात जन्य मूर्छा के लिए हितकारक है ।
आन्तरिक प्रभाव आमाशय-श्रामाशयमें पहुँच कर अमोनिया तत्क्षण परावर्तित रूप से रक्राभिसरण तथा हृदय को उत्तेजित करता है अर्थात् शोणित- सञ्चालन और हृदय की गति को चपल करता है । क्योंकि उनको तीव्र करने वाले सौषुम्न वातकेन्द्रों पर इसका प्रभाव पड़ता है। रक में अभिशोषित होने के पश्चात् इसका यह प्रभाद जारी रहता है, और श्वासोच्छ वास भी तीव्र हो जाता है।
अन्य क्षारीय औषधों के समान यदि श्राहार से पूर्व अमोनिया का प्रयोग किया जाए तो यह श्रामाशयिक रस के स्राव की वृद्धि करता है। और यदि पाहार पश्चात् दिया जाए तो यह । प्रामाशयिक रस की अम्लता को उदासीन कर देता है । अर्थात् उसके प्रभाव को नष्ट कर देता है। यह प्रांत्रस्थ कृमिवत् प्राकुञ्चन को भी तीव्र करता है और इससे प्रामाशय में उष्मा का बोध होता है। अतएव अमोनिया पित्तघ्न ( ऐण्टेसिड), प्रामाशयोजक और वायु निस्सारक (प्राध्मानहर) है। अधिक मात्रा में देने से यह श्रामाशयांत्र क्षोभक है।
शोणित-अमोनिया रकवारि (प्लाज़्मा ) के क्षारत्व को किसी प्रकार अधिक करता है। अनुमान किया जाता है कि थॉम्बोसिस (रक्रवाहिनियों में रक्त का थका बन जाना) रोग में यह रक के थक्का बनाने की शक्ति को हीन करता है और जो क्रॉट (खून का थक्का) पूर्व से बन चुका है उसको विलीन कर देता है।
हृदय-अमोनिया के प्रभाव से हृदय एवं . नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है और रक्तभार
बढ़ जाता है। कदाचित् यह प्रभाव हृदय पर कुछ तो परावर्तित रूप से होता है; परन्तु अधिकतर इस हेतु कि अमोनिया रक में अभिशोषित होने के पश्चात् हृदय की गति को तीव्र करनेवाले सौषुम्न-वातकेन्द्रों को उत्त जना प्रदान करता है।
फुप्फुस-रक्त में अभिशोषित होने के पश्चात् श्वासोच्छ वासकेन्द्र पर अमोनिया का सरलोत्त जक प्रभाव पड़ने से श्वासोच्छवास की गति तीव्र हो जाती है। अमोनिया किसी प्रकार वायु प्रणालीस्थ ग्रंथियों के मार्ग शरीर से विस• र्जित होता है । अस्तु, इसके उपयोग से उन ग्रन्थियों का स्राव अधिक हो जाता है। अतः रॉसबैक ( Ross bach) ने कतिपय सजीव प्राणियों की वायुप्राणालीय श्लैष्मिक कलापर अमोनिया का मन्द विलयन लगाकर इस बात की परीक्षा की है कि इसके लगाने से वहाँ पर रक्त घनीभूत होकर रक्तस्राव बढ़ जाता है।
वात-मंडल-अमोनिया साांगोत्तेजक है। क्योंकि यह श्वासोच्छवासकेन्द्र और हृदयाशुकारी सौषुम्न-वातकेन्द्रों को उत्तेजित करता है। परन्तु, मस्तिष्क पर इसका कुछ प्रभाव नहीं होता और न वात तन्तओं पर कोई असर पड़ता है। जब इसको स्थानिक रूप से लगाते हैं, तब उस स्थल पर मुनझुनाहट और दाह प्रतीत होता है।
जीवधारियों को जब विषैली अर्थात् अधिक मात्रा में अमोनिया दिया जाता है, तब प्रायः प्राक्षेप ( Convulsion ) होने लगता है। इसका कारण यह है कि अमोनिया सुषुम्ना की गत्युत्पादक सेलों पर उत्तेजक प्रभाव करता है।
वृक्त-अमोनिया और इसके लवण शोणित तथा शारीरिक धातुओं ( तन्तुओं ) में प्रविष्ट होकर वियुक्र व पाचित होजाते ( सड़जाते ) हैं। कदाचित् यकृत् में इससे भी अधिकतर परिवर्तन उपस्थित होते हैं, जिनका अवश्यमभावी परिणाम यह होता है कि मूत्र ( कारोरा ) में यूरिया, युरिकाम्ल और शोरकाम्ल की मात्रा बढ़ जाती है। अस्तु, इस बात को भली भाँति स्मरण
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