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अमरत
श्रमत
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और मूळ को नष्ट करता तथा भारी है। अभि० नि० १ भा० ।
जी मत सेप्रकृति-प्रथम कता में शीतल और दूसरी कक्षा में रूत है। किसी किसी के मत से १ कक्षा में सई व तर तथा मधुर उष्ण प्रकृति युक्त ।
हानिकर्ता-आध्मान कारक, शीत प्रकृति । तथा प्रामाशय नैर्बल्य को ।
दर्पघ्न-सोंठ का मुरब्बा और सौंफ (- मिर्च स्याह तथा लवण )।
प्रतिनिधि-सेब, बिही या नाशपाती श्रावश्यकतानुसार।
मुख्य कार्य-हृद्य, हृदयबलदायक तथा श्रामाशय व पाचन शक्रि को बल देने वाला है। मात्रा-मध्यम परिमाण में शकृत्यानुसार २.४ ।
शर्बत की मात्रा-२ से ४ तो० तक व न्यूनाधिक।
गुण, कर्म, प्रयोग-अपने कषायपन तथा क़ब्ज (संकोच ) के कारण संग्राही है। मवादका अवरोधक और अपनी शीतलता तथा अम्लता के कारण तृषा तथा पित्त को प्रशांत करता है। श्र. पने संग्रहण वा संकोच (कब्ज़ ) तथा कषायपन अम्लत्व और सुगंध के कारण आमाशय को बल प्रदान करता तथा उसके परदों को स्थूल एवं सशक बना देता है । (नफो०)। __यह श्राह्लादकर्ता और शक्रि प्रदान करता है। संग्राही तथा कोष्ठमृदुकर होने पर भी जिला करता है । हृदय प्रामाशय और पाचन शकि को बलवान करता, प्रकृति को मृदु कर्ता और मूर्छा | को दूर करता है । क्षुधा को बढ़ाता और मस्तिष्क को शीतल रखता है। इसका गण्डष हृद्य तथा वल्य और रक्तपित्तघ्न है। इसके पत्र अतिसार तथा व्रण के लिए अत्यन्त लाभप्रद है। फिटकिरी के साथ इसका क्वाथ दाँतों को लाभप्रद
औट इसके जले हुए पत्र तूतियाकी प्रतिनिधि है। (निर्विषैल)। म मु.।
इसके पुष्प हृद्य, हृदय बलदायक, रक्रनिष्ठीवन तथा अतिसार को नष्ट करने वाले है।।
इसका लेप चन् शोथ लयकर्ता है। इसके बीज प्रामाशयस्थ कृमिघ्न हैं। इसके पत्र अतिसार के बद्धक और शुष्क पत्र को बारीक पीसकर छिड़कने से व्रण शोधक एवं पूरक हैं । इसका निर्यास दोष लयकर्ता और बलवान मुजिज ( मल पककर्ता) है। इसकी लकड़ी और जले हए पत्र तूतिया की प्रतिनिधि हैं । अवचूर्णन करने से ये क्षतों को शुष्क करते हैं । लेखक के अनुभव में मधुर श्रमरूद पेचिश (प्रवाहिका ) को नष्ट करता है । बु• मु०।
नव्यमत इसके फल अर्थात् अमरूद देशी लोगों को बहुत प्रिय है । वे इसकी सुगंधि को बहुत पसंद करते हैं। यह संग्राही है और मलावरोध जनन की प्रवृत्ति रखता है। युरोप निवासी इसको जेखी रूप में अथवा पकाकर खाना अधिक उत्तम ख्याल करते हैं। गोत्रा के पुर्तगाली इससे एक प्रकार की पनीर प्रस्तुत करते हैं। इसकी छाल संग्राही है और बालकों के पुरातन अतिसार की औषध रूप से यह फार्माकोपिया प्रॉफ इण्डिया में प्रशंसित है। डॉक्टर वैट्ज़ (Dr. Waitz) अद्ध अाउंस मूलत्वक् को छः आउंस जल में ३ पाउंस रहने तक क्वथित कर उपयोग में लाने का श्रादेश करते हैं। इसकी मात्रा-१ वा अधिक चाय की चम्मच भर दिन में ३.या चार बार दें। वे इसको बच्चों के गदग्रंश रोग में वाद्य संकोचक रूप से उपयोग करने की शिफारिश करते हैं। अतिसार में इसके पत्रका भी सफलतापूर्वक उपयोग किया जा चुका है।
डिसकोर्टिल्ज ( Discourtilz) सुगंध्यक्षेपहारक श्रीषधों में इस पौधे का वणन करते हैं। इसके कोमल पत्र एवं पल्लव का काथ वेस्ट इन्डीज़ में ज्वरघ्न तथा श्राक्षेपहर स्नानों में प्रयुक्त होता है तथा पत्र का फांट मस्तिष्क विकारों, वृक्क प्रदाह और प्रकृति दोष ( cachexia) में। श्रामवात में इसके पीसे हुए पत्र का स्थानिक उपयोग होता है। इसका सत्व अपस्मार तथा कम्पवात में प्रयुक्र होता है। बालको' के भाक्षेप
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