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अकरकरा
अकरकरा
ifre ( Pyrothrum Radix ) -ले। पेलिटरी श्राफ स्पेन और पेलिटरी रूट, ( Pellitory of Spain or Pellitory root)-०।सैलिवरी डी एस्पैग्नी (Salivaire tl.' Espagne )-फ्रां० । अक्किरकारम्ता। अकिकरुका, अकिलाकारम्-मल० । अक्कारकारम् , अाकलकर, मराटी-तीगे,मराटी मोग्गा-ते। अकला करे-कना। अक्कलकरा-मह०। प्रकरकरा-गु० । कुकजना या कुकया-बर०। पोकरमूल, पाककरहा-पं०। अकर्का-बरब० ।
मिश्रवर्ग (N. 0. Composite ) उत्पत्ति स्थान-भारतीय उद्यान, बङ्गदेश, अरब, उत्तरी अफरीका, अल्जीरिया और लीवाण्ट ।
नोट-अकरकरा के उपयुक्र समस्त पर्याय अकरकरा वृक्ष(Anacyclus Pyrethrum, D. C.) की जड़ के हैं जो वास्तव में बाबूना का एक भेद है, जिसे स्पेनीय बाबूना (Spa. vish Chamomile or Anthemis
Pyrethrum) कहते हैं। बाबूना नाम की far ( Compositeæ order ) की निम्न चार श्रोषधियाँ जिनका तिब्बी ग्रंथों में वर्णन पाया है परस्पर वहुत कुछ समानता रखती हैं, इसी कारण इनके ठीक निश्चीकरण में बहुधा भ्रम हो जाया करता है। वे निम्न हैं, यथा-(१) बाबूनज रूमी या तुफाही (Anthemis Nobilis ), (२) बाबूनह बदबू (Anthemis Cotula), (३) बाबूना गावचश्म या उकह वान (Matricaria Parthenium) और (४) स्पेनीय बाबूना या पाकरकरहा (Anthemis Pyrethrum)। इन सब के लिए एन्धेमिस अथवा कैमोमाइल अर्थात् बाबना शब्द का ही प्रयोग होता है (देखो-बाबूना अथवा उसके अन्य भेद)। इनके अतिरिक्र अकरकरा नाम की इसी वर्ग की दो और ओषधियाँ हैं, अर्थात् (१) बोज़ीदान या मधुर अकरकरा और( २) अकलकर (Spilanthus Oleracem) या
पिपुलक--मह०, बनमुगली-कना। अकरकरा से बहुत कुछ समानता रखती हुई भी ये बिलकुल भिन्न श्रोषधि हैं। प्रस्तु, इनका वर्णन यथास्थान सविस्तर किया जाएगा। यहाँ पर बाबूना के भेदों में से एक भेद केवल अकरकरा का ही वर्णन होगा।
नाम विवरण–पाइरीथम पाइरास(IPyros) से जिसका अर्थ अग्नि है, व्युत्पन्न यूनानी शब्द है। चूं कि: अकरकरा प्रदाहकारक होता है। इस कारण इसका उक्र नाम पड़ा। आकरकरे अकर और तकरीह (क्षत कारक ) से व्युत्पन्न अरबी शब्द है और यूँ कि यह गुण इसमें विद्यमान है अस्तु इसको उक नामसे अभिधानित कियागया है। इसके ऊडुल्कह नाम पड़ने काभी यही उपयुक कारण है। अन्य भाषाओं में भी इसी बात को ध्यान में रख कर नामों की कल्पना हुई है। इतिहास-अकरकराका वर्णन किसी भी प्राचीन श्रायुर्वेदीय ग्रन्थ, यथा-चरक, सुश्रुत, वाग्भट, धन्वन्तरीय व राजनिघंटु और राजवल्लभ प्रभृति में नहीं मिलता। हाँ! पश्चात कालीन लेखकों यथा भावप्रकाश और शाङ्गधर प्रभृति ने अपनी पुस्तकों में इसका वर्णन किया है । ( देखो शाहू. अकारादि चूर्ण ६ अ०; भा०, म०, १ भ० ज्वरघ्नी वटी और वै० निघ०)। इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि भारतीयों को इसका ज्ञान इस्लामी हकीमों से हुआ; जिन्होंने स्वयं अपना ज्ञान यूनान वालों से प्राप्त किया। यूनानी हकीम दीसकरोदूस (Dioscoriles)ने पायरीथीन नाम से, जिससे पाइरीथम शब्द व्युत्पन्न है (और जिसको मुहीत अज़ममें फ़रियून लिखा है ), उक श्रीषधि का वर्णन किया है। किन्तु, मजनुल अद्वियह के लेखक हकीम मुहम्मद हुसेन के कथनानुसार इसको अरबी में ऊदुलकह जब्ली कहते हैं और यह सीरिया में बहुतायत से पैदा होता है तथा अकरकरा के बहुशः गुग धर्म रखता है । प्रमाणार्थ वे हकीम अन्ताकी का वचन उद्धृत कर कहते हैं कि-अकरकरा दो प्रकार का होता है, प्रथम सीरियन (शामी)
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