________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अप्रत्यक्ष
४१२
अप्रेतरातसी
अप्रत्यक्ष apratyaksha-हिं०वि० [सं०] (१) अप्राकृतिक संयोग aprakritika.sanyoga
अलक्षित, अदृष्ट, जो देखा न जाए। ( Invis-I -हि. प. अस्वाभाविक मैथुन, गुद मैथुन,
ible, Absent )। (२) छिपा। गुप्त । । पशु मैथुन श्रादि । अप्रति साराख्य अञ्जनम् apna tisārākhya- | अप्राजिता aprajitā-बं०, हिं० अपराजिता, anjanam-सं० क्लो० कालीमिर्च १० अदद,
विष्णकान्ता, काटी। (Clitorea ternस्वण माक्षिक श्राधा पिचु, नीलाथोथा अाधा पल, ate, Lirn.) स० फा० इं०। मुलहठी एक पिचु इन सबको दूध में भिगोकर | अप्राजितार बीज aprajitara-bija-बं० । अग्नि में भस्म करलें । गुण- यह तिमिर रोग की अप्राजितेके वीज aprajite-ke-binja-हिं०पु.) परमोत्तम औषध है। वा० उ० अ०१३। ।
___ अपराजिताका बीज । Clitored ternatea, पप्रधान apradhāna-हिं० वि० [सं०] (१) Linn. ( Seeds of-)40 फा० इं०।। कनिष्ठ, शुद्र, मुख्यनहीं, जघन्य ( Subordi
अप्राजितारनूल aprajitāra-māla-बं० अपnate, secondary)। (२) जो प्रधान वा |
राजिता की जड़ । The root of Clitoमुख्य न हो । गौण | साधारण । सामान्य ।
rea ternatea, Linn. प्रप्रभा 6prabha-हिं० स्त्री० प्रभाहीन, प्रकाश शून्य । ( Want of splendour).
प्रमाण aprāna-सं० त्रि० विना प्राण का । अप्रमेय aprameya-हिं० वि० [सं०] जो | निर्जीव । मृत । अथव० । सू० ६ । ।
नापा न जा सके । अपरिमित । अपार । अनंत ।। का ८। अप्रयुक्त aprayukta-हिं० वि० [सं०] अमाप्तक apraptaka-सं० एक प्रकारका सोना । जिसका प्रयोग न हुआ हो । जो काम में न
उत्तम जाति के सुवणों में से जो सोना कुछ पीला लाया गया हो । अव्यवहृत ।
सा अर्थात् भुरभुरा और सक्नेद रह गया हो वह अपरोहता aprarohata-हिं०
अवाप्तक कहलाता (याने संशोधन प्रादि के अप्रसन्न aprasanna-हिं० वि० असंतुष्ट,
समय यह ठीक ठीक शुद्ध नहीं होता) है। इसके दुखित, नाराज, अनन्छ, मैला । ( Disple
शोधन की विधि भी कौटिल्य ने दी है। विस्तार ased).
भय से उसे यहाँ नहीं दिया गया । कौटि. अप्रसवधर्मी aprasava-dhammi--सं०
अर्थ०। त्रि. अप्रसव धर्मवाला पुरुष, क्योंकि प्रात्मा में | अप्रिय apriya-(सं०) हिं० वि० [सं०] [स्त्री० से कुछ उत्पन्न नहीं होता इससे यह प्रसवधर्मी अप्रिया ] अहित, ( Disagreeable, un. नहीं है। अवीजधर्मी । मध्यस्थधर्मी । सु० शा० । triendlv ) अप्यारा, अनचाहा । जो प्रिय न
हो । अरुचिकर | जो न रुचे | जो पसंद न हो। 8 : aprahatah-do tao
अपिया apriya-सं. स्त्री० (१) शृङ्गी मत्स्य, अपहत aprahata-हिं० वि.
सिङ्गी मछली ( Singi fish)। (२) (1) मालक्षेत्र, केदार भूमि। मालभूमि-म०। वोदालि मत्स्य । (२) जो भूमि जोती न गई हो । खिल (अपहृत)
त) अप्रीति apriti-हिं० संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) भूमि | रा०नि०व०२।
भरुचि । ( Indifference; dislike). अप्राकृत aprakarita-हिं० वि० [सं०]|
(२) अप्रेम । (३) वैर । विरोध । जो प्राकृत न हो । पास्वाभाविक । असामान्य । असाधारण ।
अधीतिकर apritikar-हिं० . अरुचिकर । भप्राकृतिक aprakritika-हिं० वि० [सं० । निपुर, कडोर ।
अस्वाभाविक, प्रकृति विरुद्ध । (Unnatural). अप्रेतराक्षसी apreta-rakshasoi-सं: लो
For Private and Personal Use Only