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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुश्रा । अपनपात् ४११ अप्रतिम अपांनपात् apan-napā ta--सं० पु. विद्युत् अम० । -हि० वि० कांड (तना) रहित (Steसम्बन्धी अग्नि । अथर्व। mless ). अपः (स) apah,-s-सं० क्ली० (१) जल, पानी | अप्रकाश aprakasha-हि० संज्ञा पुं० [सं०] (water.)। (२) जल धारा । अथ० | सू० [वि. अप्रकाशित, अप्रकाश्य ]. प्रकाश का प्र. २३ । २। का०६। भाव । अंधकार । अप् ap-सं० स्त्री० जल,पानी । (Waअप् ap-हिं० संज्ञा पु० jter)। (उप०) निम्न, अप्रकृत aprakrita-हिं० वि० [सं०] (१) अस्वाभाविक । (२) बनावटी । कृत्रिम | गढ़ा अधः, नीच,बुरा, विकृत, त्याग, हर्ष । इसके वि. रुद्ध अर्थ में "अधि" प्रयुक्त होता है। अनम् (स्) apna m,-as-सं० को जल । अप्रकृष्ट: aprakrishtah सं० प० काक। Water ( Aqua). ( A crow)। श. र०। -त्रि० अधम ( Inferior, vile)। अप्पकोवय,-कलुङ्ग appakovay,-kalung -ता० कुकुम-दुण्ड ते० । रिहन्कोकार्पा फीटीडा अप्रखर aprakhara-हिं० वि० [सं०] मृदु । (Rhynchocarpa Fetida, Sch. कोमल | rad.), ट्रिकोसैन्थीस नलिफोलिया (Trichoअप्रचङ्कषा aprachankasha-सं० प्र० santhes nervifolia, Linn.), दि. लँगड़ा लला और आँखों से लाचार । अथर्व । डायोइका ( T. Dioica, Rosb.), बायो- सू०६।१६ । का निया पिल्सा ( Bryonia pilsa, Rord.) अप्रच्छन्न aprachchhanna-हिं०वि० [सं०] .. -ले०। (१) जो प्रछन्न न हो । खुला हुअा । अनावृत । कुष्माण्ड वर्ग (२) स्पष्ट । प्रगट । - (N.O. Cucurbitacee.) अप्रजाता aprajāta-हिं०वि० स्त्री० (Nulliउत्पत्ति-स्थान-गुजरात, दकन प्रायद्वीप, para) जिस स्त्री के कभी सन्तान न हुई हो और मालाबार की पहाड़ियाँ । अथवा जिसने गर्भ धारण न किया हो। उपयोग-ऐन्सली का वर्णन है कि इसकी प्रजास्त्वम् apra. जड़ का माजून में अर्श की दशा में अन्तः प्रयोग न होना । अथर्व० सू०६ । २६ का०६। होता है और दोषिक श्वास में स्नेहजनक रूप अप्रतिकार apratikāra-हिं० संज्ञा पु० [सं०] से इसका चूर्ण व्यवहार में श्राता है। [वि० अप्रतिकारी ] उपाय का अभाव । तदबीर . इसकी जड़ लगभग मनुष्य की अँगुली के न होना । -वि० जिसका उपाय या तदबीर ..बराबर होती है तथा हलकी धूसर वर्ण की और न हो सके । लाइलाज। ., स्वाद में मधुर एवं लुभाबी होती है। अप्रतीकार apratikāra-हिं० संज्ञा पु'• देखोअप्पेल appel-मल. अरणी । ( Premna. अप्रतिकार। Integrifolia). ई० मे० मे०। अपतिकारी apratikari-हिं० वि० [सं०] अप्पो appo-बन्ब, अफोम । ( Opium ) ___अप्रतिकारिन् ] [अप्रतिकारिणी ] उपाय वा 'फॉ०ई०१ भा०। तदबीर न करने वाला। अप्यय apyaya-हिं० संज्ञा पु० [सं०](1) अप्रतिकार्य: apratikāryyah-सं० त्रि० अपगमन | (२) लय | नाश | __ दुश्चिकित्स्य । ( Incurable). अप्रकाण्डः aprakandah-सं०५० (१) कांड- अप्रतिम apratibha-हिं० वि० [सं०] (1) रहित वृक्ष,(प्रकांड)धड़ रहित वृक्ष,तनारहित वृक्ष । प्रतिभा शून्य । चेष्टाहीन । उदास । (२) स्फूर्ति'. (Stemless tree)। (२) झिण्टिका प्रादि। शून्य । मन्द । सुस्त । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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