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अपामागे
अपामार्ग
शीशी में डाल कर उसमें इतना पाक का दूध डाले कि वह डब जाए । तदनन्तर २१ रोज तक भूमि के भीतर गाड़ रक्खें। फिर एक बड़ी लोहे की कड़ाही में एक सेर अपामार्ग की भस्म विछा कर हाथ से दबा दें। उसके बीच में संखिया को रखकर ऊपर से एक सेर उक्त भस्म और विछाकर चारों ओर से भली प्रकार दबा दें। फिर उसपर ४ सेर रेत (बालू ) डाकर चूल्हा पर रखकर नीचे भाग जला दें और रेत के ऊपर मकाई के कुछ दाने रख दे । ४ पहर अग्नि देने पर मकाई के दाने खिल जाएगे। बस अग्नि देना बन्द कर दें। दूसरे दिन जब वह अच्छी तरह शीतल हो जाए तब उसको धीरे-धीरे निकाल ले । श्वेत रंग की संखिया की भस्म प्रस्तुत होगी । मात्रा१ चावल का चतुर्थ भाग । गुण-श्वास के लिए अपूर्व औषध है। इसके अतिरिक्त बहुशः अन्य रोगों में भी उपयोगी है।
कफ निर्गत होता है। यह दंतशूल की शर्तिया दवा है। दाँतों के हिलने और मसूढ़ों के कमजोर होने को दूर करता है । विशेषकर मुखदुगंधि के लिए अत्यंत लाभदायक है।
इसकी जड़ पीसकर लगाने से स्तंभन होता है। इसके बीजों की खीर पका कर खाने से कई दिन तक आधा नहीं लगती और शक्ति भी यथावत बनी रहती है।
इसकी जड़ पीस कर स्तन पर प्रलेप करने से दूध बहुत उतरता है हस्तपाद पर मल नेसे क्षय रोग को लाभ होता है।
इसकी जड़ की भरम लगाने और खाने से कण्ठमाला को आराम होता है ।
इसके पत्तों का रस नासूर ( नाडीव्रण ) को भरता है।
इसके पुरातन वृक्ष की ग्रंथि में एक कीट निकलता है। इसको घिसकर पिलाने से बच्चों का डब्बा रोग दूर होता है।
भस्मक रोग में जिसमें तीषणाग्नि के कारण अत्यधिक सुधा लगती है उसमें अपामार्ग तण्डुल चूर्ण तो० फाँक लेने से वह जाती रहती है।
चिचड़ी की जड़ ६ मा०, कुकरौंधा के पत्र ६ मा० इनको सफ़ेद जीरा के साथ पीसकर उसमें १मा० काले नमक का चूर्ण मिलाकर सेवन कर ने से उदरशूल, उदर जन्य वायु के लिए अत्यंत लाभप्रद और परीक्षित है।। अपामार्गके विभिन्न अंगों द्वारा कतिपय धातुओं की भस्मों के निर्माण-क्रम
(१) अकीक भस्म-अपामार्ग के एक पाव करक में एक तोला अक़ीक़ रखकर कपड़मिट्टी कर सूखने पर निर्वात स्थान में ७-८ सेर श्ररने उपलों की अग्नि दें। शीतल होने पर निकाले। बस अपूर्व भस्म तैयार मिलेगी। मात्रा-२ रत्ती । सेवन-विधि-गाय के मक्खन ( गो नवनीत ) के साथ सेवन करें। गुण-हृदय की निर्बलता में उपयोगी है।
(२) सोमल भस्म-२ तो० संखिया को |
(३)संखिया भस्म की सरल विधिएक मिट्टी क बर्तन में १० तोला अपामार्ग की भस्म बिछाकर उसपर एक तोले समूचे संखिया की डली जो २१ दिन तक मदार के दूध में तर करके रक्खी हो, रख दें। ऊपर से १० तोले
और उन भस्म को डालकर हाथ से भली प्रकार दबा दें और बर्तन का मुंह बन्द करके ऊपर से तीन कपरौटी करके सुखाएँ। सूख जाने पर उस को १० सेर घरेल उपलों में रखकर श्राग दें। शीतल होने पर धीरे से खोल कर निकाल लें। गुण-कफज रोगोंके लिए अत्यन्त लाभप्रद है।
(४) हिंगुल को भत्म-शिंगरफ़ रूमी २ तो० खरल में डालकर २० तो० पाक के दूध के साथ खरल करें । जब सम्पूर्ण दुग्ध समाप्त हो जाए तब टिकिया बनाकर छाया में शुष्क करें। फिर मिट्टी के शराव में १० तो० चिरचिटा की राख बिछाकर उसपर हिंगल की टिकिया रखकर ऊपर से १० तो० उक्त राख डाल कर हाथ से दबा दें। फिर ढक्कन देकर तीनवार कपड़ मिट्टी करने के पश्चात् शुष्क करें और १० सेर घरेलू उपलों में रखकर भाग दें। शीतल
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