SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपामार्ग ४०५ अपामार्ग डॉक्टर बीडी ( Bidie) कहते हैं--“कतिपय प्रांग्ल चिकित्सक गण क्वाथ रूप से इसके व्यक्त्र मूत्रल गुण को स्वीकार करते हैं।" डॉक्टर कॉर्निश (DI. Cornish) ने जलोदर में इसका उपयोग किया और इसे उप- | योगी पाया। सिंध के जंगली दिहाती लोग बबूर-कण्टक जन्य क्षतों में इसका उपयोग करते हैं । मुरे। बिहार में जब किसी व्यक्रि को कुकर काट लेता है तब उसको अपामार्ग की पुष्पमान मज. रियों में किञ्चित् शर्करा मिलाकर बनाई हुई गोलियों का मुख्य रक्षक अौषध रूप से व्यवहार करते हैं । (बैलफोर) यह चरपरा एवं मृदुरेचक है तथा जलोदर, अर्श, विस्फोट और त्वग्रोगों में उपयोगी ह्याल किया जाता है । इसके बीज और पत्र वामक ख़्याल किए जाते हैं तथा जलनास और सर्प देश में उपयोगी हैं। टी० एन० मुकर्जी । डॉ० नदकारणी-अपामार्ग का क्वाथ (अपामार्ग २ अाउंस=१ छ० तथा जल १॥ पाइंट ) उत्तम मूत्रल है और वृक्कीय जलोदर में लाभदायक पाया गया है। उदरशूल तथा आंत्र विकारों में इसके पत्ते का रस भी उपयोगी है। अधिक मात्रा में गर्भपात वा प्रसववेदना उत्पन्न करता है। इसके ताजे पत्तों को पीसकर गुड़ के साथ कल्क प्रस्तुत करें अथवा काली मरिच एवं लहसुन (रसोन) के साथ मिश्रित कर वटिकाएँ बनाएँ । इसके सेवन से विषम ज्वरों विशेष कर चातुर्थक ज्वरों में लाभ होता है। इसके पत्तों का ताजा रस सूर्यताप द्वारा शुल्क कर इसका गाढ़ा सत्व प्रस्तुत करके इसमें थोड़ा अफ़ीम मिलाकर सेवन कराएँ । प्रारम्भिक प्रौपदंशीय क्षतों के लिए यह उत्तम अनुलेपन है । बीजों के सहित इसकी मंजरियाँ प्रायः श्लेष्मानिस्सारक रूप से व्यवहार की जाती है । इसके बीज और दुग्ध द्वारा प्रस्तुत क्षीर (खीर) | मस्तिष्क रोगों के लिए उत्तम औषध है। स्नान करने के बाद रविवार के दिन एवं पुष्य नक्षत्र में लाई हुई और कोने में लटका कर रखी हुई इसकी जड़, उत्तेजना सहित प्रसव वेदना में तथा शीघ्र प्रसव कराने के लिए उपयोग की जाती है । वेदनाकाल में इसको स्त्री के केशों वा उसकी कटि में बाँधते हैं । प्रसव होजाने के पश्चात् इसे तुरंत निकाल कर धारा प्रवाह जल में फेंक देते हैं । (इं० मे० मे० पृ० १६-२०) अपामार्ग की पुष्पमान मञ्जरियों वा बीज को जल के साथ पीस एवं कल्क प्रस्तुत कर विषधर . सर्प एवं सरिसृप दंश में इसका बहिर प्रयोग किया गया है। चण किए हुए पत्र का क्वाथ मधु वा मिश्री के साथ सेवन करना अतिसार तथा प्रवाहिका की प्रथमावस्था में उपयोगी है । (इं० डू० इं० पृ० ५६२-भार० एन० चोपरा) __ अपमार्ग की जड़को पानी से खूब बारीक पीस कर पेड़ के नीचे रान तथा गुह्यो द्रिय पर प्रलेप कर दें तो शीघ्र बच्चा पैदा हो जाता है । इसको स्त्री के पाँव पर प्रलेप करने से भी यह वातहोती है। चिचडीके पत्र तथा बीज, प्रत्येक १.१ तो. को सुखा कर तमाक की तर हुक्का पर पीने से श्वास व पुरातन कास को बहुत लाभ होता है। चिचड़ी का बीज ३ माशा कूट कर समान भाग शर्करा मिलाकर जज के साथ सेवन करने से रजःस्राव का अवरोध होता है। इसकी जड़, बीज एवं पत्र को कूट कर चूर्ण बना और समान भाग शर्करा मिलाकर इसमें से ६ माशा की मात्रा में जल के साथ सेवन कराने से रक्ताश नष्ट होता है । इसके ताजे पत्ते एवं जड़ को तिल तेल में मिलाकर व्यवहार करना कण्ड रोगी को अत्यंत लाभदायक है । उभय प्रकार की पुरानी से पुरानी खुजली को प्राराम हो जाता है। ६ माशा इसकी ताजी जड़ पानी में घोंट कर पिलाने से वृक्काश्मरी को लाभ होता है। वस्ति से पथरी को टुकड़े टुकड़े कर निकाल देता है । वृक्तशूल की यह अव्यर्थ महौषध है। __ इसकी ताजी जड़ के दैनिक दन्तधावन से दाँत मोती की तरह सफेद हो जाते हैं। मुंह से For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy