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प्रत्यम्लदधिः
श्रत्युष्णः
व०६ । (२)मातुलुग । (३)वन मातुलुग । (४) R. Br. ( the white var. of-) अाम्रातक (Spondias mangifera) रा० नि० व० १० ।देखो-पाक । -त्रि०अत्यन्तान्ल रसयुक्र ।
अत्याग atyaga-हिं० संज्ञा पु० [सं० ] अत्यम्लदधिः atyamla-dadhib--संक्लो .
ग्रहण | स्वीकार । अत्यन्त खट्टा दही।
अत्यानन्दा atyananda-सं० स्त्री० कफजन्य
योनिरोग विशेष । वैद्यक के अनुसार योनियों का लक्षण-जिस दही से दांत हर्षित होजाए, एक भेद। वह योनि जो अत्यन्त मैथुन से भी रोम हर्ष हो और कं आदि में दाह हो सन्तुष्ट न हो। यह एक रोग है जिससे स्त्रियाँ जाए उसे अत्यम्ल दधि कहते हैं।
वंध्या होजाती हैं। इसका दूसरा नाम रतिप्रीता
भी है । भा० म० ख०४ भा०, योनिरोग। गण-यह अग्नि प्रदीपक, रविकार, वात तथा
'अत्यानन्दा न सन्तोष ग्राम्यधर्मेण विंदति' पित्त को अत्यन्त उत्पन्न करता और रोगकारक है । वृ०नि० र० ।
अन्यारता atyanrakta-सं० स्त्री. जया पुष्पवृक्ष
-सं० । अदउल का पेड़-हिं०। (Hibiscus अत्यम्लपर्णी atyamla parni--सं० स्त्री०
Rosa-Sinensis) (१) लताशूरण, सूरन । वलिशूरण लताविशेष । कड़वड़वेनि । हेग्गोलि । रा० नि० व.
प्रत्यार्त्तवः atyartavah-सं० पु. मात्रा से ३ । इसके पर्याय निम्न हैं, यथा
अधिक रजोस्राव । मेनोरेजिया Menorrha
gia-इं। ब क०। तीक्ष्णा, कर डूरा, वल्लिशूरणः, करवड़वल्ली, वयस्था;अरण्यवासिनी । (२) अम्ललोणी । गण- अत्यालः atyalah-सं० पु. रक्र चित्रक वृक्ष, अत्यम्लपर्णी रस में अम्ल, तीक्ष्ण, प्लीहा लाल चीता का पेड़ । ( Plumbago रोग व शूलको नाश करने वाली, वात एवं हृदय Rosea.)। रा० । के लिए लाभदायी, दीपक, रुचिकारक तथा
शत्युग्रम् atyugram-सं० क्ली. हींग-हिं० । गुल्म व श्लेष्म रोग को लाभदायी है। मात्रा
हिंगु-सं० । (Assafoetida) मद०व०२ । ३ मा० । रा० नि० व०३। (३) रामचना वा खटुश्रा नाम की बेल
अत्युग्रगंधा atyugra-gandha-सं० स्त्री०
हिं० संज्ञा स्त्री० १ - कृष्ण गोकर्णी (Sanseअत्यम्ला atyamla--स. स्त्री० जंगली विजौरा
vieria zeylanica)| २-कृष्णापराजिता। नीबू-हिं० । मातुलुङ्गा वृक्ष, वन बीजपूरः-सं० । Clitorea Ternatoa, (the रा०नि० व० ११। रत्ना० तिन्तिडी । श० black var. ef-) । ३-अजमोदा
(Apium involucratum.)। मद०
व० २। प्रत्ययः atyayah-सप । १-नाश, अत्तय atyaya-हिं० संज्ञा प ध्वं स, मृत्यु अत्युदणों atyudirna-सं० नी. दुष्ट व्यधन २-अतिक्रमण । हद से बाहर जाना । ३-दोप ।
विशेष । बहुत तीक्ष्ण, बड़े मुंह के शस्त्र से जो ४-कृच्छ., कष्ट । रत्ना० अ० व० । मे.
बहुत विस्तृत छेद हो जाए उसे "प्रत्युवर्णा" यत्रिकं ।
कहते हैं । सु० शा० अ०! प्रत्यक: atyarkah-स. प. श्वेत मदारका वृक्ष
- अत्युष्णः atyushnah-स०ए० ( Very -हिं० । शुक्रार्क वृक्षः -स। श्वेत प्राकन्द |
hot ) अति गर्म, अत्यन्त उपण । सु० शा० गाछ-बं। Calotropis gigantea, |
० श्लो० ४।
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