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श्रन्तियाक
का साग, बालू की भाजी - ० । ( Gise kia Pharnacioides, Linn.) स०फा०ई० । अत्तिर्या attiryaq-ऋ० विषघ्न, विपहर, प्रतिविष | (Antidote ) । फा०३० २ भा० श्रत्ति-हरणु atti-hannn कना० गूलर ( Ficus glomerata, Roxb.) रु०फा०ई० । अत्तर attic1-० सीताफल, शरीफ़ा (Anona squamosa )। इं० मे० मे० ।
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अत्तु तुम्मट्टी attutummatti-ता० इन्द्रायन ( Citrulus colocynthis ) । इं० मे० मे० ।
श्रत्तेई attei - ता० जलायुका, जोंक, जलीका - हिं० | ( Hirudo medicinalis ) इं० मे मे० । श्रत्तोर attora-लिं० दाद मर्दन, चकवेंड़, चक्रमर्द । ( Cassia alata, Lim.) स० [फा० ई० ।
अत्नः atuah-स० पु० सूर्य ( The sun ) व० निघ० ।
श्रतु atun - हिं० पु० [ स ० ] The sun सूर्य |
श्रत्वात्न atbátuna यु० एक प्रकार का मद्य जो द्राक्षारस, मधु तथा गरम श्रोषधियों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। लु० क० ।
अमूत atmúta - बर०
foliatus, Linn.) अत्मोरह् atmorah--चं० श्रत्मारा
atmora--so
अन्वान atbána- अ० (२०१०), तिच्न् (ए००) घास, तृण (Grass) । स० [फा० ई० | अवान् āatban ऋ० कक्ष, कक्षतल, बगल - हिं० । एग्ज़िल्ली Axill- ले० । श्रार्मपिट्स ( Armpits ) - इ० । म० ज० । श्रस्तूत atbúta--बर० रीठा, श्ररिष्ट । अम āatma--अ० धुना हुआ ऊन । लु० क० । श्रमात atmáta-- बर०
रीठा (Sapi
ndus tri
मरोड़ फली, श्रावर्तनी
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श्रत्यस्ल
(Helicteres Isora) फा० ई० । इ० मे० मे० ।
अत्यः atyah - सं० पु० अश्व, घोड़ा ( A horSe ) । ० श० ।
श्रत्यग्निः atyagnih - सं० पु० (१) क्षुधाधिक्य, भूख की अधिकता । च०६० श्रग्निमा० चि० । (२) भस्मक रोग विशेष। ऐसे रोगी को अत्यधिक दुधा प्रतीत होती हैं। देखो - भस्मकाग्निः । विज० २० ।
अत्यन्त कुसुमाकरः atyanta-kusumák
ajah -स ं० पु० कङ्गुनी वृत्त, मालकांगुनी । (Celastrus paniculata, Wild.) श्रत्यन्तपद्मः atyantá-padmá--सं० स्त्री० कमलिनी । (Nymphæa edulis, D. C. ) ao fo
अत्यन्त शोणितः atyanta-shonitah--संo त्रि० (१) अतिर, रक्राधिक्य । -क्ली० ( २ ) सुगैरिक । बै० निघ० ।
अत्यन्त सुकुमारः
atyanta-sukumárh--सं० पु० ( १ ) कंदली वृक्ष (Panicum italicum )। ( २ ) कङ्गणी मालकांगुनी ( Celastrus paniculatns, Willd. ) रा० नि० ० १६ ।
अत्यम्बुपानम् atyambu-panam--सं०ली०
अधिक जल पीना, परिमाण से ज़्यादा पानी पीना, इससे निम्न दोष होजाते हैं, यथा-अधिक जल पीने से तथा बिल्कुल जल न पीने से अन का विपाक नहीं होता। इस लिए मनुष्य को पाचकाग्नि वर्द्धन हेतु थोड़ी थोड़ी देर में जल पीते रहना चाहिए । इति जलपान लक्षण | रा० नि० व० १४ ।
अत्यम्लः atyamlah सं० पु० श्रत्थम्ल atyamla - हिं० संज्ञा १०
(१) श्रम्ली, इमली का पेड़ ( Tamarindus Indicus) तेंतुल- बं० । रा० नि०
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