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ण्डसंव
उत्पन्न हो सकता है । हाइपोब्रोमाइड श्रीफ़ सोडियम् शुक्रीन से नत्रजन भिन्न नहीं कर सकता । गोल्ड क्लोराइड ( स्वर्ण हरिद) और लैटिनिक कोराइड शुक्रीन के साथ तलस्थायी हो जाते हैं । उत्ताप पहुँचाने पर शुल्क शुक्रीन से श्वेत बाप उद्भूत होता है ।
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इतिहास - श्रण्ड सत्व का उपयोग नया नहीं, प्रत्युत प्रति प्राचीन है । हाँ ! निर्माण क्रम में चाहे भले ही कुछ भेद हो । वाग्भट्ट महोदय स्वलिखित "टांगहृदय संहिता" में सर्व प्रथम हमारा ध्यान इस ओर श्रकृष्ट करते हैं, यथावस्ताण्ड सिद्ध पयसि भावितान सकृत्तिलान् । यः खादेत्ससितान् गच्छेत्सस्त्री शतमपूर्ववत् ॥ ( वा० उ० ४० अ० ) अर्थ- - बकरे के लण्ड को दुग्ध में पकाकर उस दुग्ध की काले तिलों में बार-बार भावना दें । इन तिलों को जो मनुष्य शर्करा के साथ सेवन करता है उसमें शत स्त्री सम्भोग की शक्ति बढ़ जाती है, और वह प्रथम समागम का सा सुख अनुभव करता है
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पाश्चात्य अमरीकन डॉक्टर ब्राउन सीक्वार्ड ( Brown Sequard ) महोदय का बहुत काल तक यह विश्वास रहा कि वृद्ध मनुष्यों की निर्बलता के मुख्य दो कारण हैं: - ( १ ) श्रावयविक परिवर्तन का प्राकृतिक क्रम । ( २ ) शुक्र ग्रन्थियों की शक्ति का क्रमिक हास | उन्होंने विचार किया कि यदि वृद्ध मनुष्य के रक्त में शुक्र का निर्भय श्रन्तःक्षेप किया जा सके तो सम्भवतः विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों की वृद्धि प्रत्यक्ष रूप से प्रदर्शित होने लगेगी । उक्त विचार को ध्यान में रखकर आपने सन् १८७५ ई० में जीवधारियों पर अनेकों प्रयोग किए । परिणामतः प्रयोग क्रम के अनपकारकत्व एवं उन जीवधारियों पर होने वाले उत्तम प्रभाव विषयक उनके सन्देह की निवृत्ति हो गई । उस का निश्चय हो जाने पर उन्होंने स्वयं अपने ऊपर प्रयोग करने का निश्चय किया । अस्तु,
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अण्डसत्वे
थोड़े परिमाण में जल, श्राण्डीय शिरा का रक्र, शुक्र, कुक्कुर वा गिनी पिग ( guinea pig ) के प्रण्ड को कुचल कर निकाला हुआ ताजा रस इन चार वस्तुओं को एकत्रित कर आपने इसका स्वगन्तः श्रन्तः क्षेप लिया । अधिक से अधिक प्रभाव प्राप्त करने के अभिप्राय से श्रापने श्रन्तः क्षेप भर में अत्यल्प जल का उपयोग किया । प्रागुक्क न्तिम के तीनों पदार्थों में श्रापने उनके द्रव्यमान से तिगुने या चौगुने से अधिक परिसुत जल का उपयोग नहीं किया; तदनन्तर उनको कुचल कर फिल्टर पेपर ( पोतनपत्र ) द्वारा छान लिया। प्रत्येक अन्तःक्षेप में उन्होंने १ घन शतांशमीटर छाने हुए द्रव का उपयोग किया । पास्चर्स फिल्टर द्वारा छाने हुए द्रव का १५ मई से ४ जून तक अपने १० श्रन्तःक्ष ेप लिए; जिनमें से २ बाहु में और शेष समग्र अधो शाखा में ।
परिणाम निम्न प्रकार हुएप्रथम त्वगन्तः अन्तःक्ष ेप तथा दो और क्रमानुगत अन्तःक्षेपों के पश्चात् आप में एक स्वाभाविक परिवर्तन उपस्थित हुआ और उनमें वह सम्पूर्ण जो बहुत वर्षो पहिले थी श्रागई । विस्तीर्ण प्रयोगशाला विषयक कार्य कठिनता से उन्हें श्रान्त कर सकते थे । वे कई घण्टे तक खड़े होकर प्रयोग कर सकते थे और उन्हें बैठने की कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत होती थी ।
संक्षेप यह कि उन्होंने इतनी उन्नति की कि वे इतना अधिक लिखने तथा कार्य करने के योग्य हो गए जो आज २० वर्ष से भी अधिक काल तक में वे कभी न हुए थे । उन्हें मालूम हुआ कि प्रथम अन्तःक्षेप से १० दिवस पूर्व मूत्र-धार की जो औसत लम्बाई थी वह पश्चात् के २० दिवस की मूत्र - धार की लम्बाई से कम से कम 4 न्यून थी । अन्य क्रियाओं की अपेक्षा मल विसर्जन क्रिया में उन्होंने अत्यधिक उन्नति को ।
इन्द्रियव्यापारिक क्रिया- उपर्युक्त प्र योगों से यह बात सिद्ध होती है कि ग्राण्डीय द्रव के अन्तःक्षेप का हृदय एवं रक्त परिभ्रमण पर उत्तेजक प्रभाव होता है, सर्व शरीर की पुष्टि
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