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भण्डखरबूजा
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श्रण्डस्तरबूज़ा
इसको भोजन करने के एक घंटा पश्चात् सेवन ! , के अन्तर से टपकाना चाहिए। इसके उपयोग करें। इसको भोजन के साथ सेवन करने से पे- से डिप्थीरीयाजन्य भिथ्याकला धुलजाती है। उग्र पीन की उससे न्यूनतर मात्रा भी वही प्रभाव अवस्थाओं में इससे पहिले ही दिन लाभ अनुभव प्रगट करेगी।
होता है, जिससे ज्वर लुप्तप्राय होजाता तथा डॉक्टर हशिसन (Dr. Hutchison)
नाड़ी स्वास्थ्यावस्थापर आजाती है। सदा इसका अजीर्णावस्था में अण्डख़बूजा के शुष्क रस को
ताजा घोल प्रस्तुत करना चाहिए। श्रथवा पेपोअधिक उत्तम ख़्याल करते हैं। जैसे
योटीन १ भाग, जल ४ भाग तथा ग्लीसरीन अण्डखरबूज़ा का शुष्क रस १२ ग्रेन, पल्य ४ भाग, अावश्यकतानुसार इसे घंटा दो दो घंटा इपीकाक ( इपीकेक्वाना चूर्ण ) १२ ग्रेन, पश्चात् लगाएँ। पल्व र हीाई ( रेवन्दचीनी का चूर्ण) ३ ग्रन, (४) वृक्कशूल (Nepthritic colic). ग्लसरीन (मधुरीन) श्रावश्यकतानुसार इसे
वृक्काश्मरी में १ से ३ ग्रेन पेपीन को वटी रूप में चाहे चूर्ण रूप में रखें अथवा इसकी १२ वटि- सेवन करने से लाभ प्रतीत होता है ! डॉ० ई० काएँ प्रस्तुत करें।
एच० फेन्विक। इसको वे भोजनोपरांत सेवन करने का आदेश (५) कृमिघ्न (Anthelmintic)-केचुत्रा करते हैं। शुष्क पपीता स्वरस को पसन्द करने और कद्दाने के लिए भी इसका (पेपीन) का कारण यह है कि उसका औपयोगिक प्रभाव
औषधीय उपयोग किया गया। इसके पाचक किंचित् कोष्टम दुकर है और यह अधिकतर
प्रभाव के कारण इससे कभी कभी लाभ प्रदर्शित संतोषप्रद है । जैसा कि प्रागुन मात्रा (प्रत्येक
हुअा। ह्विट० मे० मे०।.. वटी में १ ग्रेन) में सेवन करने से यह अत्यन्त अण्डखरबंजा के दृधिया रस को शहद के साथ मभेदक प्रभाव करता है और किसी भी भॉति रोगी मिलाकर देने और उसके पश्चात् एक मात्रा को विरेक नहीं कराता । उक्त डॉक्टर महोदयके एरण्ड तैल का व्यवहार करानेसे केचुत्रा में अत्यन्त वर्णनानुसार पपीता वृक्ष से चतुरतापूर्वक निकाल लाभ होताहै । एक षोडशवर्षीया कन्या जो कहदान कर शुष्क किया रस या पपीतादुग्ध पेपीन के (Thenia Solium) के कारण अत्यंत पीड़ित सहित अपने संयोगी अवयवों की उपस्थिति में
थी एवं उसके उदर में तीव्र शूल हो रहा था, अनेक दशाओं में स्वयं प्रभावात्मतक सत्व पेपीन
उसको डॉक्टर हशिसन (Hutchison) ने शुष्क की अपेक्षा श्रेष्ठतर प्रमाणित होता है। भोजनो- पपीता स्वरस ३ ग्रेन में शूलशमनार्थ ४ ग्रेन परन्त होने वाली बेचैनी को वास्तविक उदरशूल डोवर्स पाउडर सम्मिलित कर सेवन कराया । में परिणत होजाने पर धापने पपीता को अफीम इससे कहृदाना टुकड़ा टुकड़ा होकर मल के साथ के साथ निम्न प्रकार योजित किया :
निकल पाया तथा रोगिणी के सम्पूर्ण विकार पपीता स्वरस १२ ग्रेन, अहिफेन चूर्ण ३ ग्रेन जाते रहे एवम् उसको अत्यन्त लाभ प्रतीत ग्लीसरीन अावश्यकतानुसार । इसको चूर्ण रूप हुग्रा। में रक्खें अथवा इसकी बटिकाएँ प्रस्तुत करें । प्रति
(६) स्तन्यजनक तथा गर्भशातकभोजनोपरान्त १ वटी सेवन करें।
प्रांतरिक रूप से उपयोग करने अथवा स्थानिक (३) कण्ठरोहिणी तथा स्वरनोकास । रूप से लगाने से यह सशक्त स्तन्यजनक प्रभाव ( Diphtheria and Croup)
करता है। हिट० मे०-मे०। पी०वी० एम०। उत रोगके निवारणार्थ पेपीनका स्थानिक प्रयोग गर्भवती स्त्री को उपयोग कराने से इसका गर्भलाभदायक होताहै । इस हेतु उसका तीक्ष्ण घोल शातक प्रभाव होता है। तैयार करना चाहिए। इसको उक्र स्थल पर . जिह्वा तथा कंठरोग-श्वीमर Schwiलगाना तथा नासिका एवं मुख में ५-५ मिनट | mmer महोदय ने जिह्वा की कर्कशता (जिह्वा
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