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अण्डम्बरबूजा
अरसुवरबूजा
है) में विशेष रूप से लाभदायक होता है। "पी० बी० एम०"।
२ से ५ ग्रेन की मात्रा में अजीर्ण, पुरातन प्रामाशयिक प्रदाह तथा प्रामायिक व्रण ( अल्सर ) वा सान या मांसावुद (कैन्सर) में शुद्ध पेपीन द्वारा उत्पन्न मूल्यवान प्रभाव से लेखक को अत्यन्त सन्तुष्टि हई । वे निम्नलिखित पेपीन मिश्रित यांग के विषय में लिखते हैं कि बहुत से प्रामाशयिक विकारों में इससे उत्तम प्रभावकारी कोई अन्य योग नहीं।
योग-पेपीन ३ ग्रेन, सोडाबाईकार्य ३० ग्रेन मैग कम् पॉण्ड (विर्णित मैग्नेशिया कार्ब) २० ग्रेन, विम्युथाई कार्य १० ग्रेन, मॉर्फीई हाइडोक्रार -प्रेन, यह वटी रूप में सोडा के साथ अथवा बिना सोडा के और किसी शक्ति के ग्लीसराइनम् पेपीन रूप में दिया जा सकता है। इसके प्रामायिक प्रभाव में क्रियोजूट से कोई साधा उपस्थिन नहीं होती है। "हिट० मे० मे."।
(क) बालकों का पुरातन आमाशयिक प्रतिश्याय-वालकों के उस पैतिक विकारमें जिसमें सुधा का नष्ट हो जाना, पालस्य, चेहरे के रंग का पीला हो जाना, रात्रि में निद्रा का न ग्राना, दिन में शीघ्र क्रोधित होना, प्रायः शिरः शूल का होना, चूना जैसा मूत्र श्राना इत्यादि लक्षण होते हैं । (जब यह दशा कुछकाल लगातार रहती है तब इससे बालक दुर्बल हो जाता है एवम् विकृतश्लेष्मा आमाशय तथा प्रांत्र की भीतरी पृष्ठ को आच्छादित करलेती है जिससे पाहार रस उचित मात्रा में अभिशोषित नहीं होता। ) ऐसी निर्बलता की दशानी में जो साधारणतः कॉडलिवर ऑइल (कोड मत्स्य यकृतैल) तथा सिरप फॉस्फॉस कम्पाउण्ड आदि औषधे व्यवहार में जाई जाती हैं, उनका श्रत्मीकरण नहीं होता। किसी किसी समय कास विकास पाता है जिससे बालक को प्रारम्भिक
यस्मा से ग्रस्त कहा जाता है । डा. हर्शेल ( Dr. Herschell) ने उन दशानों में निम्न योग से बहुत लाम होते हुए पाया
योग-पेपीन (फिकलर) प्राधा से एक ग्रेन, सैकरम् लैक्टेट १ ग्रेन, सोडा बाईकार्ब इनकी एक गोली बनाएँ। इसे प्रत्येक खाने के बाद सेवन करना चाहिए। थोड़े जल के साथ १ या दो बुद टिं० नक्स वॉमिका भोजन केक पहिले देने से भी लाभ होता है ।
बालकों को जब हरे रंग के दस्त और दूध के वमन होते हैं जैसा कि दन्तोद्भद काल में प्रा: होता है तब उन अयस्था में निम्नलिखित योग लाभदायक सिद्ध होते हैं।
पेपीन १ ग्रेन, पल्व, डोवराई (डोवर्स पाउ. डर) ४ ग्रेन, सोडा बाईकार्ब १० ग्रेन, इसकी १२ मात्रा बनाकर १-१ मात्रा प्रातः सायं सेवन कराएँ। पपीता स्वरस के किचित् कोठमृदु कर प्रभाव के कारण अतिसार की अवस्था में डॉ. हशिसन ( Dr. Hutchison ) पीन को उससे उत्तम खयाल करते हैं।
(ख) अम्लाजीणं-(Acid Dyspepsia) इस प्रकार के अजीर्ण में पंपीन अत्यन्त लाभप्रद सिद्ध होता है। चूं कि यह क्षारकी विद्यमानता में भी उतना ही उत्तमतापूर्वक प्रभाव प्रगट करता है, प्रामाशयस्थ अम्लाधिक्यता को न्युट्रलाइज ( उदासीन )करने के लिए पर्याप्त परिमाणमें बाइकाबॉनेट प्रोफ़ सोढा देना चाहिए । यह अपने ऐण्टिसेप्टिक (पचननिवारक ) प्रभाव द्वारा प्राध्मानजन्य अस्वाभाविक संधान (अभिपत्र ) को रोकता है । उक्त अवस्था में निम्न योग उत्तम प्रमाणित होते हैं।
1-पीन २ ग्रेन, सैकरम् लैक्टेट (दुग्धोज) ५ प्रेम । इसकी एक मात्रा बनाकर भानन के एक घंटा पश्चात् निम्न मिश्रण के साथ सेवन करें।
मिश्रण-सोडाबाईकार्ब १५ ग्रेन, ग्लीसरीन, एसिड कार्बोलिक मिक्सचर ८, स्पिरिट एमोनिया ऐरोम्युटिक मिक्सचर २० जल , ग्राउंस
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