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अंडूसा
अंड्सा
२१० ही में यदि इसे फोड़े पर लेप करें तो उसे बिठा | देता है और कोई कष्ट भी नहीं होता।
अडूसे के पत्ते को कूट कर गोला सा बनालें । और उस गोले पर एरण्ड के हरे पत्ते लपेट कर ऊपर से मास ( उड़द ) के आटे का लेपन कर भूदल में दबाद जब अाटा पक जाय तब उसे हटाकर अरण्ड पत्र को पृथक करके अडूसा का रस निकाल कर रखलें । अब उस निकाले हुए रस में से प्राधसेर वह रस, १ पाव खाँड़ देशी, ४ तोला पीपल का चूर्ण और चार तोला गोघृत मिलाकर पकाएँ । जब चाशनी गाढ़ी हो जाए तब उतार कर उसमें एक पाव शुद्ध शहद मिलाकर माजून बनाकर रख लें।
मात्रा-४-४ माशा शाम व सुबह । इसे क्रमशः बढ़ाते जाएँ।
गुण-राजयमा, खांसी, दमा, प्रतिश्याय, अजीर्ण और वक्षःस्थलस्थ वेदना को अत्यन्त लाभप्रद है।
भस्मीकरण __ यदि शुन्द्र ताम्रपत्र को अडसे के पत्ते के रस में सौ बार बुझाएँ । पश्चात् राई की गन्दलों की लुगदी में एक सन उपलों की अग्नि दें। इसी प्रकार तीन बार करें, भस्म तैयार होगी।
गुण-इसमें से १ रत्ती उचित रूप में उपयोग करने से सः पूर्ण वातव्याधि, कफ, खाँसी, . दमा, निर्बलता एवम् बुढ़ापा प्रमृति दूर होता
"हिन्दू मेटीरिया मेडिका' के लेखक यू० सी दत्त महोदय के कथनानुसार यह कहावत प्रसिद्ध है कि वह व्यकि जो राजयक्ष्मा से पीड़ित हो उसे उस समय तक उदास न होना चाहिए जब तक वासक वृक्ष यहाँ स्थित है। __ यह पुरातन कास, दमा और अन्य फुफ्फुसीय एवं कफ सम्बन्धी रोगों में अत्यन्त लाभदायक है । (डॉ० जैक्सन और दत्त) ___ इसका पुष्प राजयमा नाश करने वाला, पित्तघ्न और रुधिर की उष्णता का शामक है। यदि पुष्प को रात्रि में जल में भिगो दें और सवेरे मल छानकर पान करें तो मूत्र की जलन एवम् अरुणता दूर हो।
इसके शुष्क किए हुए पप्पा को कूट छान कर उससे द्विगुण बङ्गभस्म मिलाकर शीरा काह, .खुर्फा और खीरा के साथ व्यवहार में लाने से शुक्रप्रमेह नष्ट होता है।
शुष्क पुष्प चूर्ण के साथ इससे चौथाई जौहर नौसादर योजित करके २ रत्ती बताशा में रखकर खिलाने से तर खाँसी दूर होती है।
इसके एक पाव पके फूल का एक बोतल शर्बत तय्यार करें। चार मा० यह शर्बत ६ मा० रूह केवड़ा और उचित मात्रा में कुएँ का जल मिला कर सवेरे पिलाने से हृदय की धड़कन, श्वास फूलना, घबराहट और पुरातन गर्मी दूर होती है।
अडूसेका फूल १ सेर,इससे द्विगुण शर्करा डालकर गुलकन्द तैयार करें । यह कास, श्वास और यक्ष्मा में लाभप्रद है। असा पुष्प द्वारा भस्म प्रस्तुत करना
अड़ से के फूल को कूटकर रस निचोड़ें और उस रस में गोदन्ती हड़ताल को खरल कर नियमानुसार अग्नि दें। इसी प्रकार सात बार करें तो गोदन्ती भरन प्रस्तुत होगी।
गुण-यह जीर्ण ज्वरके लिए अत्यन्त लाभदायी सिद्ध होगी। खून थूकने में ५ मा० कहरवा में एक रत्ती यह भस्म रखकर शर्बत प्रजबार के साथ खिलाने से कुछ ही खुराकों में लाभ
अडसे के पुष्प अडूसे के पुष्प, पत्र और मूल, परन्तु विशेषकर पुष्प में श्राप शामक गुण होने का निश्चय किया जाता है और दमा की कई अवस्थाओं तथा विषमज्वरों की तीव्रता के पुनरावर्तन में योजित किए जाते हैं। ये किञ्चित् तिक एवं अर्ध सुगन्धियुक्त होते तथा शीत कषाय एवं अवलेह रूप से उपयोग में आते हैं। अवलेह की मात्रा लगभग चाय के चम्मच भर दिन में दो बार प्रयोग में पाती है। (डॉ० एन्सली )।
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