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अजरह
अज़रुत
प्रयोगांश जड़ ( अधिकतर जड़ की छाल, अक्षरा anjara-फा० सिरियारी, सिरवाली-हिं० । अथवा जड़के रेशे ) उपयोगमें पानी है । स्वाद- अज़रान aanzalāna. अ. आज़रबू। लु०क०। फीका । प्रकृति-३ कता में ठंडी और रूक्ष है। अञ्जरूत anzaruta-अ. सिर०,अजरूत । गूजर हानिकर्ता-शीत प्रकृति को । दपनाशक-सोंठ, -बम्ब०। यह गूज़द (फ़ा०) शब्द का अपभ्रंश शहद । प्रतिनिधि-ज़रिश्क और गिले अरमनी । है । "मरज नुल् अद्वियह.के लेखक जीर मात्रा-४ से ६ मा० तक ।
मुहम्मदहुसैन महाशय के विचार से इसके पर्याय रासायनिक संगठन-अजुबार सत्व अर्थात निम्न प्रकार हैं, यथा-कुह ल फारसी (फारसी पॉलिगोनिक एसिड ( Polygonic acid ), अञ्जन ), कुह ल किर्नानी ( किर्नानी अजन) कषायाम्ल ( Tamic acid), माज्वाम्ल -अ० । अञ्जदक, कुञ्जद, अगरधक, कुन्दरू (Gallic acid), श्वेतसार और कैल्सियम्
-फा० लाई,लाही-हिं० ऐस्ट्रागैलस सकोकोला rafidz ( Calcium oxalate )
( Astragalus sarcocolla, Dy. गुण, कर्म, प्रयोग-(१) सम्पूर्ण अवयवोंके
mock.) रुधिरका रुद्धक, फुप्फुस और विशेष करके वक्षः
लिग्युमिनोसी अर्थात् शिस्बो वर्ग स्थल के रुधिर का रुद्धक है। (२) पित्त और
(N. O.leguminosce.) रुधिर के दाह का शमनकर्ता । ( ३) बवासीर
उत्पत्तिस्थान-कारस । सम्बन्धी रुधिर, प्रवाहिका, वमन और जीर्णातिसार (पुराने दस्त) का बद्धक और नज़लाओं
इतिहास-यद्यपि पूर्वी देशों में आज भी
अज़रूत अधिकता के साथ उपयोग में प्राता का रुद्धक है। (४) इसका चूण क्षता पर बुरकने से रतस्राव रुककर वे भरने लगते हैं।
है, तो भी वर्तमान कालमें लोग युरूपमें मुश्किल (निर्विषैल).
से इसे जानते हैं । दोसकरीदूस ( Diosco.
rides ) हमें बतलाता है कि यह एक फारसी अजुबार श्लेष्मानिस्सारक, मूत्रविरजनीय,
वृक्ष का गोंद है जो चू: किए हुए लोबान के बल्य, सङ्कोचनीय और परियायज्वरनिवारक है।
सरश और सुर्तीमायल तथा कुछ कुछ तिक इसकी जड़ का काथ (१० भाग में १ भाग)
स्वाद यक्त होता है। इसमें जख़्मों के बन्द करने २॥ तो० से ५ तो० की मात्रा में जनशन
और चक्षुश्रावावरोधक गुण है । यह प्रस्तरों(पला(Gentian ) के साथ विषम ज्वर ( Mal
स्टरों ) का एक अवयव है इसमें गोंदों का alia ), पुरातन अतिसार और अश्मरी रोग
मिश्रण करते हैं। में तथा रक्रकेशिका सम्बन्धी कास, कुकुरखाँसी और अन्य फुप्फुसीय रोगों में भी व्यवहृत होता
प्लाइनो ( Plimy) उन्हीं गुणों का वर्णन है । इसका रस भी लाभदायक है। श्वेतप्रदर
करता है और इतना विशेष बतलाता है कि
चित्रकार इसकी बड़ी इज़्ज़त करते हैं । तथा व्रणों में इसका क्वाथ पिचकारी द्वारा (पाव
इटनलोना करते हैं कि यह बिना ख़राशके व्रणों धोने में) व्यवहृत होता है तथा मसूड़ो की सूजन
को पूति करता एवं अंकुर लाता है। प्रस्तर और कव्वा लटक आने पर इसकी कुल्ली करना
(प्लास्टर) रूप से उपयोग करने पर यह सर्वोत्तम है | इं० मे० मे।
समस्त प्रकार के शोथों को लयकता है। नासिका प्रभृति से रक्तस्राव को रोकने के लिए
मसीह इतना विशेष बतलाते हैं कि यह तीक्ष्ण अजुबार उपयोग में आता है । वि० डाइमॅाक
रेचक है और कफ एवं विकृत दोषों को निकाइसकी सूखी जड़ का वेदनाशमन हेतु वाह्य लने के लिए उत्तम है। हाजी जैनुल अत्तार प्रयोग होता है । (स्टुवर्ट ).
कहते हैं कि इसका फारसी नाम गूज.५ है और अक्षरह anjarah-फा०, अ० देखा-अञ्जरह । । जिस वृक्ष से यह निकलता है वह शीराज़ के
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