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अञ्जनाधिका
१८६
प्रजनी
रसौत, इलायची, मुलहठी प्रभृति द्रव्य विष |
और अन्तर्दाह तथा पित्तनाशक हैं । वासू० १५ १० । सुर्मा, फूल प्रियंगु, जटामांसी, सफेद कमल, नीलकमल, रसांजन, इलायची, मुलहठी, नागकेसर'। यह गण विष अन्तर्दाह तथा पित्त- |
शामक है। बं० सं० द्रव्यगणाधिकारे । अञ्जनाधिका anjanādhika-सं० स्त्री० (1) ___ काली कपास का सुप। देखो-कालाअनो।
(२) अञ्जनी, लेपकारिणी । अाजनाइ-बं०।
हारा० । हे० च० ४ का। क्षुद्रमूषिका। अञ्जनाम्भः anjanambhah-सं० लो० अञ्जन
जल, लोशन, चक्षु प्रसाधनार्थ औषधीय द्रव । . लिक्विड कॉलीरिश्रम् ( Liquid colly
rium ), ug TICT ( Eye water )
-ई० । वै० श.। अञ्जनिकः anjanikah-6. पु. गंधरास्ना।
वै० श० । अनिका anjanika-सं० स्त्री० देखो-अञ्ज
नाधिका। डाँगरी । लु० क.। अजनी anjani-सं०स्त्री० (१) कटुका (-की)-60
कुटकी-हिं । पिक्रोहाइजा करॊश्रा ( PicTorrhiza kuroa)-ले०। (२) काली कपास । देखो-कालाअनी । रा०नि०व०४।। (३ )-हि. संज्ञा स्त्री० अञ्जननामिका । अञ्जन, याहिक, कुर्प, लोखण्डी ( फा० ई० २ भा०), लिम्ब (ई० मे० प्लां.)- मह । काशमरम (फा० इ०२ भा० ', कायमपूवूचेड्डि, केसरी-चेड्डि (इं० मे० प्लां.)-ता० । अल्लिचेड्डु-(चेटु) ते० । सुर्प (फा० इं० २ भा०), लिम्ब-तोलि-कना० । वारी-काह, सेरू काय । -सिं० । काशवा-मल | अंजन, याल्कि, लोखण्डी
-बम्ब०। कालो कुडो-कों० । मेटिङ्कटोरियम् ' M. Tinctorium, मेमीसीलोन ईडशुली . (Memecylon Edule, Road.)-ले०।
प्रायन वुड ट्री (lion wood tree)-इं०। मे० कमेस्टिवल ( Memecylon Comestible)- फ्रां० ।
मेलास्टोमेसोई वर्ग (.1.0. Melastomaceue.) उत्पत्ति स्थान-पूर्वी व पश्चिमी प्रायद्वीप और लङ्का।
वानस्पतिक विवरण-अञ्जनी के लघु वृक्ष अथना झाड़ियाँ होती हैं, जो पर्वती भूमि में उत्पन्न होती हैं । "फ्लोरा अॉफ ब्रिटिश इण्डिया" में इसके द्वादश भेदों का वर्णन किया गया है। यह एक बृहत् झाड़ी है जिसमें चमकीली हरित वर्ण की पत्रावली और निम्न शाखाओं में नीला. भायुक्त बैंगनी रंग के पुष्प-गुच्छ लगते हैं। चौथाई इंच व्यास के फल लगते हैं। इसके सिरे पर चार पंखड़ी युक्र पुष्प-वाह-कोष ( Calyx ) लगा होता है। फल खाद्य है । किन्तु कषेला होता है । पत्ते १॥ से ३॥ इं० लम्बे, १ से ११ ई० चौड़े, सम्पूर्ण (अखण्ड), दृढ़, चमोपम, पत्र-डंडी लयु, अत्यन्त अस्पष्ट पार्श्विक शिरायुक्र होते हैं। ये सूखने पर पीताभायुक्र हरितवर्ण के हो जाते हैं । स्वाद-अम्ल, तिक्त और कसैला।
रसायनिक संगठन-पत्रमें लोरोफिल (हरिन्मूरि) के अतिरिक पीत ग्ल्यकोसाइड, राल (Resin), रञ्जक पदार्थ, निर्यास,श्येतसार, सेब का तेज़ाब, बेडौल रेशे (Crude fibre)
और शैलिका ( silica)युक अनैन्द्रियक द्रव्य विद्यमान होते हैं।
प्रयोगांश-मूल और पत्र ।।
प्रभाव व प्रयोग-भारतवर्ष और लङ्का में इसके पत्र रङ्ग के लिए प्रयुक्त होते हैं। इसका विशेष प्रभाव रंग को पक्का करना है। इसलिए मदरास में चटाई बनाने वाले हड़, पता और मजीठ के साथ इसे विशेष रूप से उपयोग में लाते हैं । गम्भीर रकवर्ण उत्पन्न करने में वे इसे फिटकिरी से उत्तम ख़याल करते हैं।
अञ्जनी शीतल और संकोचक है । इसके पत्ते का शीत कषाय (२० भाग में १ भाग ) आँख पाने में संकोचक लोशन रूप से व्यवहार में आते हैं और सूज़ाक एवं श्वेत प्रदर में इसका
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