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'अग्नि-दीप्ता
अग्नि-प्रस्तरः
जवाखार समभाग ले मर्दन कर चने प्रमाण गोली सेंधा नमक, हर्ड, पीपल, चित्रक इन का चूण वैमाएँ । मात्रा-१ गोली।
बनाय उण जल के साथ खाने से नष्टाग्नि उत्ते'गुण - यह जठराग्नि को प्रदीप्त करती है। जित होती है तथा नवीन अन्न, मांस, घृत भक्षण अग्नि-दीप्ता agni-dipta-स. स्त्री० महाज्यो- ।। किया हुआ शीघ्र भस्म हो जाता है।।
तिष्मती लता, मालकांगनी, ज्योतिष्मती-हि०। सेंधा लवण, हींग, हर्ड, बहेड़ा, श्रामला, लताफटकी-० । थोर माल कांगनी-म० । अजवाइन, सोंठ, मिर्च, पीपल इन्हें बरावर ले ( Calastrus paniculatii, IVilld.) और सबके बराबर गुड़ मिला गोलियां बनाएँ, रा०नि०व०२ भा० पू०१ भा० ।
इसके सेवन से मन्दाग्नि वाला तृप्त होता है और अग्नि-दीप्ति agmi-dipti .हि. संज्ञा स्त्री० अधिक भोजन करता है।
[ ] Iniproved digestion, । वायविडंग, भिलावाँ, चित्रक, गिलोय, सोंठ good appetite ) क्षुधा वृद्धि, पाचन शक्ति । बराबर ले इनके समान गुड़ और घृत मिला गोका बड़ जाना।
लियां बनाएँ इसके सेवन से मन्दाग्नि दूर अग्नि-धमनः agni-lhamanah-स० पु.
होती है । गुड़ के साथ सांड अथवा पीपल, या Melia azadirachta, him.) कटु । हई अथवा अनार को श्राम रोग में, अजीण में, निम्ब-हि०, म० | कटु निम, घोड़ा निम-बं०। गुदा के रोगों में, मल के विबन्ध में नित्य प्रति देखो-महानिम्ब, बकाइन ।
सेवन करें। अग्नि-निर्यासः agni-miryasah-स. पु. ___ भोजन के प्रथम नमक और अदरख का खाना
अंग्निजार वृक्ष । ग. नि. व. ६ । See ! हृदय को हितकारक तथा दीपन है ! चक. द. -agni-jara.....
अग्नि० मा० प्रा०
. अग्नि-पत्रो agni-patri स० स्त्रा० अग्नि वती, , अग्निप्रदोरसः agni-pralo-asah संपु०
श्रगिया प्रसिद्ध-हिं० ( Andropogon पारद, गंधक, सीसा, वच्छनाग, प्रत्येक १-१ Sehoeranthus, Linn.)
तो. कजली कर प्रातिशी शीशी में रख वालुका अग्नि पर्णी agni-palni--स० स्त्रो० वानरी, ! यन्त्र द्वारा = प्रहर की अग्नि से पकाएँ । इसमें २
कौंच, केवाँच । ( Mucuna pruriens, तो. त्रिकुटा मिलाकर बारीक पीस ईख के रस में D. C.)
मर्दन कर १-१ रत्ती प्रमाणकी गोलियां बनाएँ । अग्नि-परिताप agni-paritapu-हिं० पु. गुण-इसके सेवन से मन्दाग्नि, क्षय, सन्निपात
भाग की जलन ( Scorching heat और वात रोग दूर होते हैं। र० प्र० सु० (-of fire)
अग्नि०मा० अ० र० प्र० स०अ०८। अग्नि-परीक्षा apnipariksha-हिं० संज्ञा स्त्री०. अग्नि प्रभा वटी agmiprabha-vati-स. [स' ] सोना चाँदी अादि धातुओं की भाग श्री० सेंधा नमक, नौसादर, जवाम्बार, विड़ में तपाकर परख ।
नमक, सिंदूर, प्रत्येक समान भाग ले । पुनः अग्नि पा (मा) लो ugni-pa (m) ii सं. पटोल की जड़ के रस से भावना देकर उड़द
ato (The white lead-wort) 1978, प्रमाण गोलियां बनाएँ । इसे तालमखाने के
सुफेद चीता-हि। चिते-बं० । मद० २ व०।। पंचांग के क्वाथ से दें तो घोर यकृत, दारुणअग्नि प्रदोपकानि agni-pradipakani प्लीहा, वातीला, मन्दाग्नि और गुल्म का नाश
स. क्ली० सोंड अथवा गुड़ के साथ भक्षण | होता है । २० यो० सा. ......... को हुई अथवा सेंधालवण के संग भक्षण की
अग्नि प्रस्तर agnipastaraहिं० संज्ञा पु.) हई हरीतकी निरंतर अग्नि को प्रकाशित करती।
अग्नि प्रस्तर: twiprastarah-सा. ४०)
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