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मालिक श्रीहरिहर औषधालयचिकित्सक पं० विश्वेश्वरदयालु वैद्यराज
बरालोकपुर इटावा यू० पी०
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सादर समर्पणम्
जगजननि जगदम्बे
किन शब्दों से तुम्हारी पूजा करे' ! किन शब्दों से तुम्हें धन्यवाद दे। मातः ! तुमने , इस अपने अकिंचन पुत्र को किस चाव से इतना अपनाया है कि जो इच्छा स्वप्न में भी - इसने की तुमने वही पूर्ति कर इसे सुखी किया । इसी के उपलक्ष में यह तुच्छ भेंट तम्हारे
चरणों में समर्पित है। इसे अपनाने की दया करना और ऐसी ही कृपा करना कि जिससे यह आयुर्वेद का उद्धार करता हुआ अपना नाम अमर करने में समर्थ हो।
समर्पक:
तुम्हारा स्नेहा पुत्र विश्वेश्वर XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX*********
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