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अतिमुक्तक
चरित्रम् ॥
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विद्वान थे वैसे ही प्रचंड प्रभावक भी थे। उन्होंने आशापल्लि (गुजरात) में आचार्यश्री प्रद्युम्नसूरिजीके साथ शास्त्रार्थ किया था जिसमें विजयलक्ष्मी आपही को प्राप्त हुई, (चै० कु. वृ०) हिन्दसम्राटकुलतिलक श्रीमहाराजा पृथ्वीराज चौहाणकी राजसभामें उ० पद्मप्रभको शास्त्रार्थ में पराजित किया था, (ख० गु०) उस समय भारतमें पृथ्वीराज की सभा विद्वानों के लिये प्रसिद्ध थी, आचार्यमहाराजने वि. सं. १२३३ वर्षे कल्याणनगरमें महावीरस्वामी की प्रतिष्ठा की (तीर्थकल्प) एवं “घटस्थानकवृत्तिका" संशोधन किया | साथहि साथ "प्रबोधोदय वाद स्थल,” "संघपदकबृहबृति, पंचलिंगी" विवरणादि अन्य निर्माणकर धार्मिक साहित्यमें अभिवृद्धि की| आपका सारा समुदाय विद्वानों से ओतप्रोत था, प्रस्तुत ग्रन्थ रचयिता पूर्णभद्रगणि भी उच्चश्रेणीके विद्वान थे। पर आपका विस्तृतजीवन अनुपलब्ध है, मात्र इतना ही लिखा जा सकता है कि आपने प्रस्तुत अतिमुक्तकचरित्र वि. सं. १२८२ प्रल्हादनपुर में और धन्यशालिभद्रचरित्र वि. सं. १२८५ जैसलमेर में निर्माण किये । अति विस्तृत परंपरा प्रशस्तिमें दीहुई है पाठक देखले, प्रस्तुत ग्रन्थ समग्र भारतवर्ष मात्र जैसलमेरके ज्ञानभंडार में सुरक्षित है, जो ताडवोपरि आलेखित है, वहींपर से प्रेसकॉपी करवाकर मंगाया गया है, अतः एक ही प्रति पर से इसका प्रकाशन हो रहा है, इसका संशोधन पूज्य गुरुवर्य श्रीमान् उपाध्यायजी महाराज मुनि सुखसागरजी म. एवं जेठालालभाई शास्त्रीजीने कुशलतापूर्वक किया है, तथापि दृष्टिदोषसे स्खलनारह गई हो तो पाठक सुधारके पढ़ें । प्रस्तुत ग्रन्थरत्नको प्रकाशन कराने में रायपुरनिवासी शेठ सूरजमल भंवरलाल पुगलियाने आर्थिक सहायता की है अतः वे श्रुतभक्ति करने कारण धन्यवाद के पात्र है। नवापारा : सं. २००१ : अक्षय तृतीया.
मुनि मंगलसागर
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