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नि वेदन
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भारतीय साहित्य में जैन साहित्यको जो उच्चस्थान प्राप्त है, इससे विद्वजन सुपरिचित है, जैन साहित्य चार विभागोंमें विभाजित है, जिनमें चरितानुवाद भी है।
पुरातन साहित्यपर दृष्टिपात करनेसे स्पष्ट विदित होता है कि पुरातन भव्य आदर्श पुरुषो-मुनियों के जीवनचरित्रों की कमी नहीं है, हो भी कैसे सकति, महापुरुषों का जीवन मानवोंको अति शीघ्र धार्मिकादि प्रवृतिमें प्रवृत्त करने को प्रोत्साहित करते है, समस्त संसारका इतिहास आदर्श महापुरुषोंका इतिहास है। ऐसे विषय पर जैनाचार्यो-मुनियोंने लेखिनी चलाकर मानव-समाजका महान् उपकार किया है,ऐसे भव्य पुरुषोंके जीवन सदृश प्रस्तुत "अतिमुक्तकं चरित्र" है जो आपके करकमलोंमे समर्पित है । प्रकृत चरित्र में बालमुनि अतिमुक्त मुनिका आदर्शचरित्र वर्णन अत्यन्त सुंदरतापूर्ण लिखा गया है। उक्त बाल मुनि मात्र ६ वर्षकी अल्प वयमें परम तारक चरमतीर्थकर श्रमणभगवान् श्रीमहावीर देवके करकमलसे दीक्षित होकर एकादशांग अध्ययन करके, महान् उप्रतपश्चर्या करके केवलज्ञान प्राप्तकर मोक्षगति को प्राप्त हुए । प्रस्तुत ग्रन्थ मात्र धार्मिक दृष्टिसे ही महत्त्वका नहीं है अपितु भाषाशास्त्र एवं अलंकारादि दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व उच्च कोटिका है । दिखने अवश्य लघु है पर गुणोंकी अपेक्षा उतना ही गरीष्ठ व आकर्षक है, रचनाशैलि अत्यंत चित्ताकर्षक है. एकएक श्लोकपर कवित्वका चमत्कार पाया जाता है। प्रस्तुत ग्रन्थनिर्माता खरतरगच्छेश्वर श्रीजिनपतिसूरिजीके शिष्य थे जो उस समय के विद्वानों में सर्वोत्कृष्ट गिनेजाते जो, और वे वि. सं. १२१०-७७ तक विद्यमान थे। वे जैसे
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