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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८९८) अष्टांगहृदय । म. ३१ वो चैतेषु सेव्यमानेषु । समान वर्णवाली, गांठदार, वेदनारहित और अगतिरिव नश्यति गति मुंगके समान होती हैं। चपला चपलेषु भूतिरिव ॥ ४० ॥" ___ यवपख्या अर्थ-खारी नमक, काला नमक, सेंधा । यवप्रख्यायवप्रख्या ताभ्यां मांसाश्रिताघना नमक,पकी हुई सुपारी,घरका धूआं,अवाडा, | अर्थ-जो फुसियां वातकफ के प्रकोप से खैर के पत्ते, हलदी, दारुहलदी, और हरड | मांसका आश्रय लेकर जौके समान पैदा इन सब द्रव्यों का कल्क, अभ्यंग, चूर्ण होती हैं और सघन भी होती हैं, उन्हें यवः और वर्ति रूप से प्रयोग करने पर गति प्रख्या कहते हैं। रोग ऐसे नष्ट हो जाता है मानो कभी हुआ कच्छपी पिटिका। ही नहीं था । जैसे चपल मनुष्यों की अवका चालजीवृत्तास्तोकपूया घनोन्नता: चपलता धनका शीघ्र नाश कर देती है, | ग्रंथयःपंच वा षड्वा कच्छपी कच्छपोन्नता तैसे ही उक्त औषध गति का शीघ्र नाश | अर्थ-जो पिडिका बिनामुखवाली,अल जी कर देती है। | के समान, गोलाकार, थोडी राध से युक्त, धन और ऊंचे को उठी हुई होती है और हात अष्टांगहृदयसहितायां भाषाटीका- पांच छ: इकटठी पैदा होकर कछुए की पीठ न्वितायांउत्तरस्थाने ग्रन्थ्यदश्ली की तरह ऊंची होजाती है उन्हें कच्छपी पदापची नाड़ीप्रतिषधो नाम कहते हैं । त्रिंशोऽध्यायः ॥ ३० ॥ पनसिका के लक्षण । कर्णस्योर्ध्व समंताद्वा पिटिका कठिनोग्ररुक् एकत्रिंशोऽध्यायः। शालूकाभा पनसिका ___ अर्थ-कानके ऊपर अथवा चारों ओर कठोर और अत्यन्त वेदना से युक्त शालूक अथाऽतः क्षुद्ररोगविज्ञानं व्याख्यास्यामः। के सदृश जो पिटिका होती हैं,वे पनसिका अर्थ-अब हम यहां से क्षुदरोग विज्ञानीय कहलाती है। भध्याय की व्याख्या करेंगे। पाषाणगर्दभ । शोफस्त्वल्परुजः स्थिरः। अजगल्लिका के लक्षण । हनुसंधिसमुद्भतास्ताभ्यांपाषाणगर्दभः "स्निग्धासवर्णाग्रथिता नीरुजामुद्संमिता अर्थ-वातकफके प्रकोप से हनुकी पिटिका कफवाताभ्यां बालानामजगल्लिका संधियोंमें जो अल्पवेदनायुक्त स्थिर सूजन अर्थ-वातकफ के प्रकोप से बालकों के पैदा होजाती है उसे पाषाणगर्दभ कहते हैं एक प्रकार की पिटका होती हैं उन्हें अज- मखदापिका के लक्षण । गल्लिका कहते हैं । ये स्निग्ध, त्वचा के शाल्मलीकंटकाकाराःपिटिकाः सरजोधनाः For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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