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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. ३१ उत्तरस्थान भाषाटोकासमेत । मेहोगर्भा मुखे यूनां ताभ्यां च मुखक्षिकाः । विद्या के लक्षण । अर्थ-सेंगर के कांटोंके आकारवाली या पनकर्णिकाकारा पिटिका पिटिका चिता वेदनान्वित ठोस फुसियां जो युवापुरुषों के | सा विद्धा वातपित्ताभ्यां मुखपर वातकफके कारण मेदोगर्भवाली हो अर्थ-जो फुसियां कमल की कर्णिका के जाती है,उन्हें मुखदूषिका वा मुहांसे कहते हैं। सदृश बहुत सी अन्य फंसियों से व्याप्त पद्मकंटका के लक्षण । होती हैं उनको वातपित्त से विद्ध समझनी ते पाकंटका शेया यैः पद्ममिव कंटकैः। चाहिये । चीयते नीरुजैःश्वेतैः शरीरं कफवातजैः । गर्दभी पिटिका। अर्थ-जो श्वेतवर्ण और वेदनारहित ताभ्यामेव च गर्दभी। फुसियां कफवात से उत्पन्न होकर कमल के मंडला विपुलोत्सन्ना सरागपिटिकाविता। कांटों की तरह शरीर में व्याप्त होजाती हैं, ___अर्थ-इन्हीं वातपित्त के प्रयोगसे गर्दभी उन्हें पद्मकंटका कहते हैं। नामक कुंसियां होती हैं। ये मंडलाकार, विवृता पिटिका। विपुल, उत्सन्न और लोहितवर्ण पिटिकाओं पित्तेन पिटिका वृत्ता पक्कोदुवरसन्निभा। से व्याप्त होती हैं । महादाहज्वरकरी विवृता विवृतानना ॥ ७ ॥ गर्दभी कक्षा। __ अर्थ-जो फुसियां पित्तसे उत्पन्न होकर गोलाकार, पकेहुए गूलर की आकृतिवाली | कक्षेति कक्षासन्नेषु प्रायो देशेषु सानिलात् | अर्थ-कक्षा अर्थात् बगल के निकट जो अत्यन्त जलन और ज्वरवाली और खुले | गर्दभीकक्षां नामक कुंसियां होती हैं, उन्हें हुए मुखवाली होती हैं, उन्हें विवृता कहते हैं। | कक्षा कहते हैं, ये वातसे उत्पन्न हुआ करती मसूरिका के लक्षण । | हैं । इसे लोकमें कखराई कहते हैं । गात्रेष्वंतश्च वक्त्रस्य दाहज्वररुजान्विताः मसूरमात्रास्तद्वर्णास्सत्संज्ञाः पिटिका घनाः पित्तज कक्षा। अर्थ-शरीर में और मुखके भीतर जो | पित्ताद्भवंतिपिटिकाःसूक्ष्मा काजोपमा घना दाह, ज्वर और वेदनासे अन्वित मसूर के ____ अर्थ-बगल में जो छोटी छोटी कुंसियां तुल्य और वैसेही आकार की जो फुसियां | धानकी खीलके सदृश और कठोर होती हैं होती हैं, उन्हें मसूरिका कहते हैं । ये पित्तज पिटिका कहलाती हैं। विस्फोटा के लक्षण ।। गंधनामा पिटिका। ततः कष्टतरा स्फोटा विस्फोटाख्या तादृशी महती स्वेका गधनामति कीर्तिता। महारुजाः। ___अर्थ-ऊपर के लक्षणों से युक्त बडी अर्थ-नो फुसियां मसूरका से अधिक | पिटिकाओं को मंधनामा कहते हैं। कष्टदायक होती हैं और जिनमें अत्यन्त बेदनावाले फोडे पैदा हो जाते हैं, उन्हें वि-धर्मस्वेदपरीतेऽगे पिटिकाः सजो घनाः । राजिका के लक्षण । स्फोटक कहते हैं। | राजिकावर्णसं स्थानप्रमाणाराजिकाव्हया। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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