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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. २६ उत्तरस्थान भाषाठीकासमेत । (८७६) ढंग का स्राव होने से वायुक्रुद्ध होकर रोगी । आमाशयस्थरुधिर में कर्तव्य । को मार डालेगी । घावके भर जाने पर एक | आमाशयस्थे रुधिरे रुधिरं छर्दयत्यपि। एक करके धीरे धीरे बालों को निकाल डालना माध्मानेनाऽतिमात्रेण शूलन व विशस्यते। चाहिये । मज्जानामक मस्तुलुंग के निकल - अर्थ-शल्यके द्वारा विधकर यदि आमाजाने पर अन्य जीवों के मस्तक का मस्तु. शय में रुधिर भरजाय तो रक्तकी वमन, अत्यन्त अफरा और शूल उत्पन्न होकर लंग खाने को देना चाहिये । ... शल्य निकलने पर स्नेहवति । आइतव्यक्ति का मारडालता है। शल्ये हृतंगाइन्यस्मात्नेहवति निधापयेत् । पकाशयस्थ रूधिर । अर्थ-मस्तक के सिवाय और किसी पक्काशयस्थे रुधिरे सशूलं गौरवं भवेत् । | नाभेरधस्ताच्छीतत्वंखेभ्यो रक्तस्य चागमा अंग में शल्य लगाना हो तो उसको निकाल ____ अर्थ-रुधिरके पक्वाशय में भरजाने पर कर स्नेहवर्ति लगाना चाहिये ।। शूल, देहमें भारापन, नाभिके नीचे के भाग गहरे घावोंका उपाय । में शीतलता, तथा रोमकूपों में होकर रुधिर दूरावगाढाःसूक्ष्मास्यायेत्रणास्रतशोणिताः। | कानिकलना ये सब लक्षण उपस्थित होतेहैं। सेवयचक्रतैलेन सूक्ष्मनेत्रार्षितेन तान् ॥ अर्थ--जो घाव बहुत गहरे हों, जिनके ___ अभिन्नाशयका रुधिरसे भरना । मुख छोटे हों और जिनसे रक्त झरसा हो अभिन्नोग्याशयः सूक्ष्मः स्रोतोभिरभिपूर्यते। असृजास्यंदमानेन पार्श्व मुत्रेण बस्तिवत् उनमें छोटे नेत्रवाले नालिका यंत्र द्वारा चक्र ___ अर्थ-जैसे मूत्र पसलियों के स्रोतों से तेल ( पानी का तेल ) भरना चाहिये । झरझर कर वस्तिको भरदेता है, वैसेही कोई भिन्नकोछ में उपाय । आशय शल्य द्वारा भिन्न होने पर भी छोटे भिन्ने कोष्ठेऽ सुजापूणे मूर्छाहत्पार्श्ववेदनाः।। छोटे स्रोतों द्वारा रक्त झरझर कर भभिन्न ज्वरो दाहस्तृडाध्मानं भक्तस्थानभिनंदनम्। संगो विषमूत्रमरुतां श्वासः स्वदोक्षिरक्तता। आशय को भरदेता है। लोहगंधित्वमास्यस्यस्यादगारेचविगंधता। ___ अंतलोहितादि का वर्जन । . अर्थ-शल्यद्वार। कोष्ठ के विदीर्ण हो | तत्रांतोहितं शीतपादोच्छवासकराननम् जाने पर यदि वह रुधिरसे भरजाय तो रक्ताक्षं पांडुवदनमानद्धं च विवर्जयेत् ३७ ___ अर्थ-ऐसा रोगी जिसके भीतर रुधिर मुर्छा,हृदय और पसली में वेदना,ज्वर,दाह भरजाने से हाथ पांव श्वास और मुख ठंडे तृषा और असाध्य, भोजनमें अरुचि,मलमूत्र होगये हों, आंखों में ललाई, देहमें पांडुगऔर अधोवायु का अबरोध,श्वास, पसीना, र्णता और अफरा भी हो तो उसकी चिकिनेत्रों में ललाई, मुखमें रक्तकी सी गंध और | त्सा न करे । देहमें विकृत गंध ये सब लक्षण उपस्थित आमाशयस्थरक्त में बमनादि । होते हैं। | भामशयस्थे वमनं हितं पक्काशयाश्रये । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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