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मांगहृदय ।
जौ का कल्क | तिलबद्यवल्कं तु विदिच्छंति तद्विदः । अर्थ-कुशल वैद्यों का यह मत है कि तिल के कल्क के समान ही जौका कल्क होता है। घाव में घृत का प्रयोग | साम्रपित्तविषां गंभीरान्सोमणो ब्रणान् क्षीररोपण भैषज्य शृतेनाज्येन रोपयेत् । रोपणपधसिद्धेन तैलेन कफवातजान् ५७
अर्थ- दूध और रोपण करने वाली औबधोंके साथ पकाया हुआ घी रक्तपित्त और विष उत्पन्न हुए गरमी से युक्त गंभीर धात्र का रोपण कर देता है, तथा रोपण औषधा के साथ सिद्ध किया हुआ तेल कफवातजन्य घावों को भर देता है ।
रोपण तैल ||
काक्षीरोधाभ्यास र्ज सिंदूरांजनतुत्थकम् । चूर्णितं तैलमदनैर्युकं रोपणमुत्तमम् ५४ ॥
अर्थ- गुंजा, लोध, हरड, राल, सिंदूर, रसात, नीला थोथा और मेनफल इन सब द्रव्यों के चूर्ण के साथ पकाया हुआ तेल घात्र के भरने में बहुत उत्तम है ।
घाव में चूर्ण | लमानां स्थिर मांसानां त्वक्स्थानां चूर्ण
इष्यते अर्थ- समान आकृतिवाले और स्थिर मांसकी त्वचावाले घात्रों में चूर्ण हितकारी होता है ।
अम्य चूर्ण । ककुभोदुंबराश्वत्थ जंबूक ट्फलरोधजैः ५९ ॥ स्वचमाशु निगृह्णाति त्वक्रूचूर्णैश्चूर्णिता
यणाः ।
अर्थ - अर्जुन, गूलर, पीपल, जामन,
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म० २५
कायफल और लोधकी छाल इनका चूर्ण पीसकर बुरकने से घाव में शीघ्र अंकुर जाते हैं ।
त्वचाको शुद्ध करनेवाला लेप | लाक्षागोवामंजिष्ठा हरितालनिशाद्वयः ॥ प्रलेपः सघनक्षौद्रस्त्वग्विशुद्धिकरः परम् ।
अर्थ - लाख, मनसिल, मजीठ, हरताल, दोनों हलदी, इनको पीसकर घी और शहत मिलाकर लेप करने से त्वचा अत्यन्त शुद हो जाती है ।
सवर्णकारक लेप |
कालीयकलताम्रास्थिहम कालारसोत्तमैः ॥ लेपः सगोमयरसः सवर्णकरणः परम् । अर्थ - कालीयकलता आम की गुठली, हेमकाल, रसोत्तम इनके चूर्ण को गोवर के रस में मिलाकर लेप करने से त्वचा के सदृश घाव का स्थान हो जाता है । रोमोद्भव लेप |
दग्धो वारणदतोतधूमं तैलं रसांजनम् ६२ ॥ रोमसंजननो लेपस्तद्वत्तैलपरिप्लुता । चतुष्पान्नखरोमास्थित्वकुशृंगखुरजा मषी
अर्थ - अंतर्धूम से जलाई हुई हाथी के दांतकी राख, तेल, रसौत, इनका लेप करने से रोम उत्पन्न होते हैं। इसी तरह चौपाये जानवरों के नख, रोम, अस्थि, त्वचा, सींग, और खुर इनकी राख भी तेल में सानकर लगाने से रोम जम जाते हैं । घावमें पथ्य ।
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प्रणिनः शस्त्रकर्मोक्तं पथ्यापथ्यान्नमादिशेत् अर्थ - घाववाले रोगी को शस्त्रकर्म में कहे हुए पथ्यापथ्य का विचार करना चाहिये