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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ( १२) अष्टांगहृदय । अ० २१ करालरोग । पलूनका लक्षण । कराला सुकरामानां दशनानां समुद्भवः । समूळ दंतमाश्रित्य दोषैरुल्वणमारतः। अर्थ-जिस रोगमें दांतों की विकट शोषिते मन्क्षि सुषिरे दंतेऽनमकपूरिते ॥ सरस होजाती है । उसे कराल रोग कहते हैं। | का पूतित्वात्कृमय सूक्ष्मा मायते जायते ततः। भहेतुतीघ्रातिशमाससंरभो सितश्चलः ॥ अघिदंत के लक्षण । प्रभूतपूयरक्तस्तु स बोकाकृमिदंतकः । दंताधिकोऽधिदंताख्यास चोक्तखलुवर्धनः अर्थ-याताधिक्य संपूर्ण दोष दांतोंकी. जायते जायमानेऽतिरुग् जाते तत्रशाम्यति जड समेत आश्रयलेकर दांतों की मज्जा को. अर्थ-जिस रोगमें दांतके ऊपर दांत शोषित करदेता है और दांतों में छिद्र करके निकल आता है, उसे अधिदंत रोग कहते उनको अन्नके मल से भरदेते हैं । उस है।इसका दूसरानाम वर्द्धन भी है, इस दांतके अन्नके मलके सड़ने पर छोटे छोटे कीडे पैदा होने के समय बडा कष्ट हुआ करता पैदा होजाते हैं । इस रोगमें दांत सचल, है। पैदा होने के पीछे वेदना शांत होजाती है। काले और सूजन से युक्त होजाते हैं । इस पनि रोगका लक्षण में बिनाकारण ही कभी वेदना होने लगती. अधावनान्मलो दंते कफोघा वातशोषितः है और कभी मिट जाती है । इसमें राध पूतिगंधः स्थिरीभूतःशर्करासोऽप्युपेक्षितः | | लोह अधिकता से निकलता है । इसरोग ___ अर्थ--दंतधावन न करने से दांतों का को कृमिदत भी कहते हैं ये दस प्रकार के दंतरोग हैं। मैल वा कफ वायुद्वारा शोषित होकर पूति शीताद के लक्षण । गंधयुक्त और स्थिर होजाता है। इसकी ठीक श्लष्मरक्तेन पूतीनि वहंत्यनमहेतुकम् ॥ समय पर चिकित्सा न किये जाने से यह शीर्यते दंतमांसामि मृदाक्लिन्नासितानि च । शीतादोऽसौ शर्करारोग में बदल जाता है । ___ अर्थ -दूषितहुए कफ और रक्तद्वारा दांतों कपालिका के लक्षण । का मांस दुर्गंधित, रक्तस्त्रावी, अकारण, शांतयत्यणुशो दंताकपालानि कपालिका। | वेदनायुक्त, शीर्ण, मृदु, क्लिन, और काला ___ अर्थ-जिस रागमें दांतों से छोटे छोटे होजाता है। इसे शीतादरोग कहते हैं। टुकड़े झड पड़ते हैं, उसे कपालिकारोग उपकुश के लक्षण । कहते हैं। उपकुशः पाकः पित्तासगुद्भवः । दंतमांसानि दह्यते रक्तान्युत्सेधवत्यतः। श्याव के लक्षण । कंडूमति नबत्यसमाध्मायतेऽसजि स्थित ॥ चला मंदरुजो दंताः पूतिषकं च जायते। श्यावाश्यावत्वमायातारक्तपित्तानिलैर्द्विजाः। ___ अर्थ- दूषित रक्तपित्त के कारण दंतमास अर्थ-रक्तपित्त और वायुके कारण संपूर्ण | पकजाता है, इसको उपकुशरोग कहते हैं । दांत काले रंगके होजाते हैं । इस रोगको उपकुशरोग में दंतमास दाहयुक्त छाल रंगका, श्यावदंत कहते हैं। | सूजन और खुजलीसे युक्त तथा रक्तस्त्रावी होता For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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