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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. २१ उत्तरस्थान भाषांटीकासमेत । ( ८३१) प्रकोपमें दोनों ओष्ठ अनेक वर्णकी फुसियों । गंडालजी के लक्षण । से व्याप्त, दुर्गेधित स्रावयुक्त और पिच्छिल, | गंडालजी स्थिर-शोफो गंडे दाहस्वराम्वितः अकस्मात म्लान, अकस्मात् स्फीत, अक- अर्थ-डिस्थल में जो दांह और ज्वर स्मात् वेदनान्वित और विषमपाकी होते हैं। से युक्त स्थिर सूजन पैदा होती है, उसे __ रक्कोपसृष्ठ ओष्ठके लक्षण । | गंडालजी कहते हैं। ये ग्यारह प्रकार के रक्तोपसौ रुधिरं नवतः शोणितप्रभो ७ ओष्ठरोग कहे गये हैं | अब दांत के रोगों खर्जरसदृशं चाऽत्र क्षीणे रक्तेऽर्बुदं भवेत्।। का वर्णन करते हैं ॥ - अर्थ -रक्तद्वारा उपसृष्ट दोष रक्तस्त्रावी शीतरोग । और रुधिर के समान होता है । रक्तके क्षीण ! वातादुष्णसहा दंताःशीतस्पर्शाधिकव्यथाः होने पर ओष्ठौ खिजूर के समान अर्बुद दाल्यत इव शूलेन शीताख्यो दालनश्च सः पैदा हो जाता है। अर्थ -वायुके प्रकोपसे दांत उष्णता को मांसोपसृष्ट ओष्ठके लक्षण । सह सकते हैं । ठंडी वस्तु के स्पर्श से उनमें मांसपिरोपमौमांसात्स्यातांमूर्छत्कृमीक्रमात् अधिक पीडा हुआ करती है । शूल के कारण - अर्थ-मांससे दुषित ओष्ठ मांसपिंड के | दांत दले हुए से हो जाते हैं। इसरोग को. सेमान हो जाता है। इनमें धीरे धीरे कीडे | शीतदंत वा दालन कहते हैं । पैदा होजाते है। दंतहर्ष के लक्षण । मेदोदुष्ट ओष्ठके लक्षण । दंतहर्षे प्रवासाम्लशीतभक्ष्याक्षमा द्विजाः । तैलाभश्वयथुक्लेची सकंडूवी मेदसामृदू । भवत्यम्लाशनेनैव सरुजाश्चलिता इव । . अर्थ-मेदासे दूषित ओष्ठ तेलके सदृश | अर्थ--दंतहर्षरोग में दांत प्रचंडवायु, सूजन और लेद से युक्त होते हैं, इनमें | खटाई और शीतल पदार्थों का खाना नहीं खुजली चलती है, और मृदुता होती है। मह सकते हैं । खटाई खाने से दांतों में वे. क्षतज ओण्ठके लक्षण । दना और चलितता होजाती है ॥ क्षतजावषीर्येते पाटयेते चासकृत्पुनः ९ प्रथितौ च पुनः स्यानां कंडूलो दशनच्छदौ दंतभेदके लक्षण । ___अर्थ-क्षतज ओष्टप्रकोपमें दोनों ओष्ठ | दंतभेदे द्विजास्तोदभेदरुकम्फुटनान्विताः । मथित, खुजलीयुक्त, तथा निरंतर विदीर्ण ___अर्थ--दंत भेद रोगमें दांतों में तोद, भेद, और फटने की सी वेदना से युक्त होते है। वेदना और फटनेकी सी पीडा हुआ करती है ओष्ठमें जलावुद । . चालाख्यरोग । जलबुद्दवद्वातकफादोष्ठे जलार्बुदम् १० चालचलद्भिर्दशनैर्भक्षणाइधिकव्यथैः। . अर्थ-बात और कफके प्रयोग से पोष्ट | अर्थ -दांतोंको चलाने और उनसे किसी में चुदवुद के समान अर्बुद उपल्न होता है। वस्तु के चबाने में अधिक वेदना हुआ करती उसे जलावुद कहते है। है, इसको चाल रोग कहते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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