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म. १८
उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
(८१७)
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कष्टसाध्य है । शेष बीस रोग साध्य होतेहैं, | महामेहो द्रुत इति सुतीग्रामपि घेदनाम् । इस प्रकार से सब मिलाकर कानके पच्चीस अर्थ-वातनाशक अम्ल द्रव्यों और रोग कहे गयेहैं।
| गोमूत्र के साथ पकाया हुआ महास्नेह कान इति श्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटी में डालने से अत्यन्त तीव्र वेदना भी शीन कान्वितायो उत्तरस्थाने कर्णरोग
| शांत होजाती है । विज्ञानीयोनाम सप्तदशोऽध्यायः
अन्य प्रयोग । . महतः पंचमूलस्य काष्ठात्क्षौमेण घेष्टितात् ।
तैलसिक्तात्प्रदीप्ताग्रात् नेहःसद्यो रुजापहः । अष्टादशोऽध्यायः। अर्थ-बृहत्पंचमूल की अलग अलग
। एक एक लकडी लेकर रेशमी वस्त्रसे लपेट
दे इसको तेल में भिगोकर अग्निसे जलावे अथाऽतः कर्णरोगप्रतिषेधं ब्याख्यास्यामः ॥ और नीचे एक पात्र रखदे । इस पात्रमें जो
अर्थ- अब हम यहां से कर्णरोग प्रति-तेल टपके उसे कानमें डालनेसे वेदना शाघ्र षेधनामक अध्याय की व्याख्या करेंगे ।
| जाती रहती है। ___ वातज कर्णशूल मे कर्तव्य ।
अन्य प्रयोग। कर्णशूले पवनजे पिवेद्रात्रौ रसाशितः। योज्यश्चैवभद्रकाष्टारकुष्ठात्काष्ठाचसारलात् पातघ्नसाधितं सर्पिः कर्ण स्विन्नं च पूरयेत् अर्थ-देवदारु, कूठ और सरल इनकी पत्राणां पृथगश्वत्थबिल्वाकरंडसम्मनाम् । तैलसिंधृत्यदिग्धानां विनाना पटकन लकड़ी को भी वस्त्रसे लपेटकर तेलमें भिगोरसैः कवोष्णस्तद्वच्च मूलकस्यारलोरपि। कर अग्निसे जलाकर ऊपर की तरह तेल
अर्थ--वातज कर्णशूल में रोगी को मांस. | टपकावे । इस तेलको कानमें लगाने से रस सहित अन्नका पथ्य देकर रात्रि के समय वेदना जाती रहती है । वातनाशक औषधियों से सिद्ध किया हुआ
अन्य प्रयोग ।
वातव्याधिप्रतिश्यायविहितं हितमत्र च। घी पान कराना चाहिये । कान में स्वेदन
वर्जयेच्छिरसानानं शीतांभापानमइयपि ॥ करके पीपल, नीम, आक वा अरंड इनमें
__ अर्थ-वातव्याधि और प्रतिस्यायसेग में से किसी एक के पत्तों पर तेल और सेंधा
जो जो औषध कही गई हैं, वे सब इस नमक लगाकर अग्नि में पुटपाक की रीति जगह उपयोग में लानी चाहिये ।। से सिद्ध करके उसके गुनगुने रसको कान ___ इसरोग में सिर से स्नान करना और में भरदे । मुली और भरलू के रससे मी दिनमें भी ठंडा पानी पीना वर्जित है। कानको इसी तरह भरना चाहिये ।
पित्तजशूल में कर्तव्य । . कर्णशूल पर महास्नेहसेल । पित्तशूले सितायुक्तं धृतमिग्धं विरेचयेत्। गणे वातहरेऽम्लेषु मूत्रेषु च विपावितः॥ द्राक्षायष्टिशृतं स्तन्यं शस्यते कर्णपूरणम् ॥
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