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(८१८)
. अष्टांगहृदय ।
म. १८
अर्थ-पित्तजशूल में घी और चीनी | कर्णपूरण प्रयोग । मिलाकर स्निग्ध विरेचन देवे । दाख और लशुनाकशिग्रणरं सुरुग्या मूलकस्य च । मुलहटी के साथ सिद्ध किया हुआ स्त्री का कदल्याः स्वरसःश्रेठः कदुष्णः कर्णपूरणे ॥ दूध कानमें भरना चाहिये।
अर्थ-लहसन, अदरख, सहजना, तुलसी शलनाशक तेल। मूली और केला इनके स्वरसको गरम करके यष्टयनंताहिमोशीरकाकोलीरोध्रर्जावकैः। सुहाता सुहाता कानमें डाले । यह कफज मृणालविसमंजिष्ठासारिवाभिश्च साधयेत् कर्णरोग की उत्तम औषध है। यष्टीमधुरसप्रस्थं क्षीरद्विप्रस्थसंयुतम् ।।
शूलनाशक रस। तैलस्य कुडवं नस्यपूरणाभ्यंजनैरिदम ॥ निहति शूलदाहोषाः केवलं क्षौद्रमेव वा।।
अर्कोकुरानम्लपिष्टस्तैलाल्लवणान्वितान् ।
संनिधाय स्नुहीकांडे कोरिते तच्छदावृतान - अर्थ-मुलहटी, अनन्तमुल, चंदन, खस
स्वेदयेत्पुटपाकेन स रसः शूलजित्परम् । काकोली, लोध, जीवक, कमलनाल, मजीठ,
__अर्थ-आकके अंकुरों को कांजीमें पीस. सारिवा इनका कल्क करले । मुलहटीका रस |
टाका रख कर तेल और सेंधेनमक से सानकर सेंहु. एक प्रस्थ, दूध दो प्रस्थ, तेल एक कुडव,
ड की पोली डंडी में भरकर उसी के पत्तों इन सब को पाकोक्त रीतिसे पकावे । इस तेलको नस्य, कर्णपूरण और अभ्यंजन द्वारा
से ढक दे और पुटपाक की रीतिसे स्वेदित प्रयोग करने से कर्णशूल, दाह और संतार
करके उसके रसको कानमें डाले । यह शुल दूर होजाते है केवल मधु द्वारा भी शूलादि
को दूर करने की परमोत्तम औषध है । शांत होजाते हैं।
विजौरे का रस 1 कर्णलेपन।
रसेन वीजपूरस्य कपित्थस्य च पूरयेत् ।। यष्टयादिभिश्च सघूतैः कर्णो दिह्यात्समंततः सूक्तेन पूरयित्वा वा फेनेनान्धवचूर्णयेत् । ___ अर्थ-उपर कहे हुए मुलहटी से आदि ।
लटी मे आदि अर्थ-विजौरे का रस वा कैथ का रस लेकर सब द्रव्यों को घी के साथ एकाकर | अथवा कांजी इनसे कानको भरदे । फिर इस घीको कानके चारों ओर लेप करे । इससे
| समुद्रफेन को पीसकर ऊपर से बुरक दे । कर्णशूल जाता रहता है।
अन्य प्रयोग। . कफजकर्णशल की चिकित्सा। अजाविमूत्रवशत्वसिद्धं तैलं च पूरणम् ॥ वामयेत् पिप्पलीसिद्धसर्पिःस्निग्धं कफोद्भवे
. सिद्धं वा सार्षपं तैलं हिंगुतुबुरुनागरैः । धूमनावनगइषस्वेदान कुर्यात्कफापहान् ॥ | अर्थ-बकरी और भेडका मूत्र, बांसकी __ अर्थ-कफज कर्णशूलमें पीपल के साथ | छाल इनसे सिद्ध किया हुआ तेल कानमें घी पकाकर इस घी से स्निग्ध पुरुष को | भरे । अथवा हींग, धनियां और सोंठ के वमन कराव तथा कफनाशक धूमपान, नस्य - साथ पकाया हुआ सरसों का तेलभी कान गंडूष, और स्वेदादि का प्रयोग भी उचित है | में भरना हित है ।
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