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उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
मिलावे तथा बला, अतिबला, नागबला, वत् प्रयोग करे, यह तिमिर को दूर करने जीवती और शतावरी प्रत्येक एक एक पल | वाली परमोत्तम औषध है । लेकर पीसकर मिलाकर पाकविधि के अनुसार तर्पण प्रयोग। पकावै । पाक होचुकने पर उसको उसी लोहे नचेदेवं शमं याति ततस्तर्पणमाचरेत् ५७ के पात्रमें एक महिने तक रक्खे । इस तेल अर्थ-उक्त रीति से तिमिर रोग की का नस्य द्वारा प्रयोग करनेसे प्रीवा से शांति न होने पर तर्पण का प्रयोग करना ऊपर होनेवाले समस्त रोग बातपैतिक दृष्टि ।
। चाहिये । गतरोग नष्ट होजाते हैं। इससे केश मख तर्पण में धुत को श्रेष्ठता। प्रीवा और कंधों की पुष्टि तथा देहमें शताहाकुष्टनलदकाकोलद्विययाष्टभिः । लावण्य और कांति बढते हैं।
प्रपौडिरीकसरलापप्पलीदेवदासभिः ५८ अन्य प्रयोग।
सर्पिरष्टगुणक्षीरं पकं तर्पणमुत्तमम् । सिनरंड जटासिंहीफलदारुघचानतैः। अर्ध--शतमूली, कूठ, बाल छड, काकोली घोषया बिल्वमूलैश्च तैलं पक्कं पयोन्वितम् क्षीरकाकोली, मुलहटी, पुंडरिया, सरलकाष्ठ, नत्यं सर्बोध जत्थयातलेमामयातिजित्
पीपल और देवदारू इन सब द्रव्यों के साथ ___अर्थ- सफेद अरंड की जड, कटेरी के
आठगुने दूधर्मे घी को पाक करके सेवन फल, देवदारु, वत्र, तगरमूल, तोरई और बेलांगरी की जड, तथा दूध इनके साथ
करे । यह परमोत्तम तर्पण है। तेल पकाकर नस्य लेने से जत्रु से ऊपर
अन्य तर्पण। होनेवाले सब प्रकार के वातकफज रोग मेदसस्तद्वदेणेयाहुग्धसिद्धात् खजाहतात् नष्ट हो जाते हैं।
उद्धृतं साधितं तेजो मधुकोशीरचंदनैः । माहीमा अर्थ-इसी तरह काले हिरण के मेद वसांजने च वैययात्री वाराही वा प्रशस्यते को दूध में पकाकर रई से मथडाले ऐसा गृध्राहि कुछटोत्था वा मधुकेनान्विता पृथक करने से जो तेजः पदार्थ निकलता है, ____ अर्थ-व्याघ्र वा शूकर की वसा अथवा उसको मुलहटी और चंदन के साथ सेवन गिद्ध, सर्प वा मुर्गे की वसा में मुलहटी करे, यह उत्तम तर्पण है। मिलाकर अंजन लगाने से बहुत लाभ
अन्य प्रयोग । होता है।
श्वाविच्छल्यकगोधानां दक्षतित्तिरियर्हिणाम् तिमिरगाशक प्रयोग।
पृथक्पृथगनेनैव विधिना कल्पयेद्वसाम् । प्रत्याने च स्रोतांज रतक्षीरघूते क्रमात् ।
. अर्थ-दोनों प्रकार की सेह, गोधा, निषितं पूर्ववद्योज्यं तिमिरघ्नमनुत्तमम् । तीतर और मोर इनमें से हर एक की चर्वी
अर्थ-प्रत्यं जन में सौवीरांजन को कम को पूर्वोक्त विधान के अनुसार कल्पना से मांसरस, दूध और घी में बुझाकर पूर्व- करे ।
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