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अष्टांगहृदय ।
प्र०१२
अर्थ-गरमी के कारण तप्त होकर | किसी अद्भुत रूपको देखताहै वा सूर्यादि झटपट शीतल पानी में निमज्जन करने से देदीप्यमान पदार्थों को देखता है, तब चकात्रिदोष और रक्त से संपृक्त ऊष्मा ऊपर चोंधी के कारण उस मनुष्यके नेत्रों में को उठकर नेत्रोंमें पहुंच जाती है । इससे | वातादि दोष आश्रय लेकर तेज को संशोनेत्रों में दाह और संताप पैदा होता है और षित करके दृष्टिको मुषितदर्शनवाली, वैदूर्य सफेद भाग में मैलापन आजाता है । इस के रंगके समान, स्तिमित और प्रकृतिस्थ रोग में दिनमें धुंधला दिखाई देने लगता | की तरह वेदनारहित करदेते हैं । इसी को है और रात्रिमें देखने की शक्ति सर्वथा नष्ट
औपसर्गिक लिंगनाशक कहते हैं । होजाती है, इसीको उष्णविदग्धा दृष्टि । दृष्टिमंडल के सत्ताईसरोग । कहते हैं।
5 वर्जयेत् ।
विना कफालिंगनाशान् गंभीरां ह्रस्वजामपि - विदग्धाम्ला दृष्टि ।
षट् काचा नकुलांधश्च याप्याः शेषांस्तु भृशमम्लाशनांदोषैः सास्त्रैर्या दृष्टिराचिता ।
__ साधयेत् । संक्लेदकंडूकलुषा विदग्धाम्लेन सा स्मृता। द्वादशति गदा दृष्टौ निर्दिष्टाः सप्तविंशतिः - अर्थ-अत्यन्त खट्टी वस्तुओं के खाने अर्थ-कफज लिंगनाशक को छोडकर से दृष्टि वातादि दोष और रक्तसे व्याप्त वातज, पित्तज, द्वन्द्वज, संनिपातज, रक्तज होजाती है । इसमें दृष्टि क्लेदयुक्त खुजलीयुक्त और औपर्गिक लिंगनाशक वर्जित हैं ।
और कलुषित होजाती है, इसे विदग्धाम्ला | गंभीरा और हस्वजा ये दोनों भी वर्जित हैं । -दृष्टि कहते हैं।
वातज, पित्तज, कफज, रक्तज, द्वन्द्वज और धूमररोग के लक्षण । त्रिदोषज ये छः प्रकार के काचरोग और शोकज्यरशिरोरोगसंतप्तस्यानिलादयः ।
सातवां नकुलान्ध ये सात प्रकार के नेत्ररोग धूमाविलां धूमदर्शी दृशं कुयुः स धूमरः। याप्य अर्थात् कष्टसाध्य हैं । तथा वातज, ___ अर्थ-शोक, ज्वर और शिरोरोग द्वारा
पित्तज, कफज, रक्तज,द्वन्दज और त्रिदोषज संतप्त मनुष्य की दृष्टि को वातादिदोष धूऐ
ये छ: प्रकार के तिमिररोग, एक कफज के समान धुंधली और धूमवत देखनेवाली कर
लिंगनाश, पित्तविदग्धा दृष्टि, देोषान्ध, उष्ण देते हैं । इस रोगको धूमर कहते हैं।
विदग्धा दृष्टि, विदग्धाम्ला दृष्टि और धूमर - औपसर्गिकलिंगनाशक ।
| ये बारह रोग साध्य होते हैं। इस तरह सहसैवाल्पसत्त्वस्य पश्यतो रूपमद्भुतम् ऊपर वाले पंद्रह सब मिलाकर सत्ताईस भास्वरं भास्करादि वा वाताद्यानयनाश्रिताः कुर्वति तेजः संशोप्य दृष्टिं मुशितदर्शनाम् |
नेत्र रोग हैं। वैडूर्यवर्णो स्तिमितांप्रकृतिस्थामिवाव्यथाम् | इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटी. औपसर्गिक इत्येष लिंगनाशो
कान्वितायां उचरस्थाने दृष्टिरोग अर्थ-जब अल्पसत्ववाला रोगी सहसा । विज्ञानीयं नाम द्वादशोऽध्यायः
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