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(७८४)
अष्टांगहृदय ।
अ० १२
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.... चतुर्थपटल के लक्षण । । . वातसे दृसिरासंकोचन। . तथाप्युपेक्षमाणस्य चतुर्थ पटलं गतः ॥७॥
पाते तु संकोचयति सिराः। लिंगनाशं मलः कुर्वन् छाइयेदू दृष्टिमंडलम् । दृग्मंडलं विशत्यंतर्गभीरा दृगसौ स्मृता ।। . ___ अर्थ--यदि ऊपर की अवस्था में चिकि- अर्थ--वायुके कारण दृष्टि और सिरा
सा नहीं की जायगी तो दोष चौथे पटलमें | सब संकुचित होजाती है, और दृष्टि का पहुंच जाते हैं और वहां दृष्टिका नाश कर• | मंडल भीतर को होजाता है, इसे गंभीर ते हुए दृष्टिमंडल को आच्छादित कर लेते हैं। | दृष्टि कहते हैं । वातज तिमिर के लक्षण ।
पित्तज तिमिर के लक्षण | तत्र पातेन तिमिरे ब्याविद्धमिव पश्यति ॥ पित्तजे तिमिरे विद्युत्खद्योतोद्योतदीपितम् । चलाविलारुणाभासं प्रसन्नं चेक्षते मुहुः। शिखितित्तिरिरिच्छाभप्रायोनलंचपश्यति ॥ जालानि केशान्मशकान्
| काचे दृक् काचनीलामा तादृगेव च पश्यति रश्मीश्चोपेक्षितेऽत्र च ॥ अर्केन्दपरिवेषाग्निमरीचींद्रधनूंषि च ॥ काचीभूते गरुणा पश्यत्यास्यमनासिकम। भृगनीला निरालोकादृक् स्निग्धा लिंगनाशतः चंद्रदीपाद्यनेकत्वं चक्रमृज्वपि मन्यते ॥ दृष्टिः पित्तेन हस्वाख्या साहस्वा हस्वदर्शिमी वृद्धः काचो हशं कुर्याद्रगोधूमावृतामिव । भवेत्पित्तविदग्धाख्या पीता पीताभदर्शना। स्पष्टारुणाभां विस्तीर्णा सूक्ष्मां वा- । अर्थ--पित्तज तिमिर में बिजली और
हतदर्शनाम् ॥ ११॥ सलिंगनाशो.
जुगनू आदि के प्रकाश से प्रकाशित मोर अर्थ--इनमें से वातिक तिमिर में रोगी और तीतर की पुच्छकी कांतिके समान प्रायः घायु की चंचल प्रकृति के कारण दृश्य नीलवर्ण दिखाई देने लगताहै । काचरोग वस्तु को चंचल, धुंए के सदृश धुंधली, अरु
में दृष्टि नील काचके सदृश होजातीहै और णाभास, प्रसन्न और व्याविद्ध की तरह वैसाही रूप भी दिखाई देने लगताहै । रोगी देखता है । कभी जल, कभी बाल, कभी को चंद्र और सूर्य का मंडल, अग्नि,किरण मच्छर और कभी किरणों को देखता है, | और इन्द्रधनुष दिखाई देने लगताहै । लिंग इसकी उपेक्षा करनेसे दृष्टि काचता को नाशसे दृष्टि भेरेि के समान नीली, निराप्राप्त होकर लाल होजाती है और रोगी मुख लोक और स्निग्ध होजाती हैं । पित्तके काको नासिकारहित, चन्द्रमा और दीपक में रण दृष्टि हस्व संज्ञक होजाती है, दृष्टि भी अनेकता और सीधी वरत को टेढा देखता छोटी होजाती है और वस्तु भी छोटी दिहै | काचता के बढ जानेपर दृष्टि धूल और खाई देने लगती है, पित्तविदग्धा दृष्टि पीली ●एकी तरह आवृत दिखाई देती है, अथवा
होजाती है और इसमें रोगीको सव वस्तु दृष्टिमें स्पष्टता, ललाई, विस्तीर्णता, सूक्ष्मता
पाली दिखाई देतीहैं। वा नष्टदर्शनता होजाती है । यह वातज
कफजतिमिर के लक्षण ।
कफेन तिमिरे प्रायः स्निग्धं श्वेतं च पश्यति लिंगनाश अर्थात् दृष्टिनाश कहलाता है । । शंखेंदुकुंदकुसुमैः कुमुदैरिव चाचितम्।
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