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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. १. पसरस्थान भाषाटीकासमेत । (७७५) mmen तथा मांस, स्नायु और सिरा से व्याप्तचर्मो उसे शद्ध शक कहते हैं, यह कफ से उत्पन्न हाल की तरह ऊंचा तथा जो दृष्टिमंडल में होता है। पहुंच जाता है, ये सब रोग त्याज्य हैं। आजका के लक्षण । भतशुक्रक का लक्षण । आताम्रपिच्छलानमृदाताम्रपिटिकातिरुकू पित्तं कृष्णेऽथवा दृष्टो शुक्र तोदानुरागवत् भजाविटूसदृशोच्छ्रायकायाछित्त्वा त्वचे जनयति तेन स्यात्कृष्णमंडलम् वासृजाजका ॥ २५ ॥ पकजंनिभं किंचिनिम्नं चक्षतशुक्रकम् ॥ अर्थ-जो शुक्र कुछ तांबेके से रंग का, तत्कृच्छ्रसाध्यं याप्यं तु द्वितीयपटलब्यधात् पिच्छिल, रक्तस्रावो, कुछ तविके से रंग की तत्र तोदाविवाहुल्यं सूचीविद्धाभकृष्णता॥ फुसियों से युक्त, अत्यन्त वेदनासहित, बकरी तृतीयपटलच्छेदाइसाध्य निचितं वणैः ।। | की मेंगनी के सदश ऊंचा और कृष्णवर्ण अर्थ--अब हम यहांसे कृष्णमंडलगत अ | होता है, उसे आजका कहते हैं, यह रक्त र्धात आंखके काले भागमें होने वाले रोग से उत्पन्न होता है और असाध्य भी है। का वर्णन करते हैं। सिराशुक्र के लक्षण । .. पित्त पहिले पर्देका भेदन करके कृष्णमंडल में वा दृष्टिमंडल में सुई छिदने की सी वे. सतोददाहताम्राभिः सिराभिरवतन्यते दना, आंसू और ललाई लिये हुए शुक्र को अनिमित्तोष्णशीताच्छघनास्त्रत्रकूच पैदा करता है। इस शुक्रके कारण संपूर्ण का तत्त्यजेत् । लामंडल जामन के फलके रंगके सदृश हो ___ अर्थ-रक्त तथा वातादि तीनों दोषों से जाता है और इसके बीचका भाग कुछ नी. सिराशुक्र उत्पन्न होता है और नेत्रके काले . चा हो जाता है यह रोग क्षतशुक्रक कह- | भागमें तोद और दाह से युक्त, ताम्रवर्ण और लाता है । क्षतशुक्रक कष्टसाध्य होता है। सिराओं से व्याप्त होता है इसमें से कभी किन्तु दूसरे परदे का भेदन करने पर तोदा. गरम, कभी ठंडा, कभी पतला, कभी गाढा दि यंत्रणा अधिकता से होती है और का रक्त निकला करता है यह सिराशुक्र असाध्य लामंडल सुई छिदने के समान होजाता है । होता है। यह याप्य होता है । जो क्षतशुक्र तीसरे पर्दे तीनवेदनायुक्त शुक्र । दोषैः सानैः सकृत्कृष्णं नीयते शुक्लरूपताम् को भेदकर उत्पन्न होता है वह व्रणों से धवलाम्रोपलिप्ताभं निष्पावार्धदलाकृति उपचित और असाध्य होता है। अतितीव्ररुजारागदाहश्वयथुपीडितम् ॥ . - शुद्धशुक्र के लक्षण । पाकात्ययेन तच्छुक्र वर्जयेत्तीनवेदनम्। . शंखशुक्लंकफात्सायनातिरकू शुद्धशुक्रकम अर्थ- रक्त तथा वातादि तीनों दोषों के अर्थ-शंख के समान सफेद वा श्यावव- कारण संपूर्ण कृष्णमंडल एक साथही सफेद र्ण और अम्लवेदनायुक्त जो शुक्र होता है, । बालों से आच्छादित आकाश की तरह For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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