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अष्टांगहृदय।
सफेद पड जाता है यह चैला के आधे एकादशोऽध्यायः । बीजकी आकृति के तुल्य होता है। इसमें
-:*OK:तीत्रवेदना, ललाई, दाह और सूजन होते हैं, । पाक का अत्यय होने पर यह तीब्रो. अथातः संधिसितासितरोगप्रतिषेधं
व्याख्यास्यामः॥ दनावाला शुक्र असाध्य होजाता है ।
__ अर्थ -अब हम यहां से संधिसितासित वय॑शुक्र ।
रोग प्रतिषध नामक अध्याय की व्याख्या यस्य वाऽऽलिंगनाशोऽतः श्यावं यद्वा
करेंगे।
सलोहितम् । भत्युत्सेधावगाढं वा सास्रनाडीव्रणावृतम्
उपनाह की चिकित्सा। पुरागं विषमंमध्ये विच्छिन्नं यच्च शुक्रकम्
उपनाहं भिषक् स्विन्नं भिन्नं ब्रीहिमुखेन च अर्थ-जिस शुक्र के बीचमें भीतर की
लेखयेन्मंडलाण ततश्च प्रतिसारयेत्
पिप्पलीक्षौद्रसिंधूत्थैर्वघ्नायात्पूर्ववत्ततः । दष्टि का नाश होजाय और श्याववर्ण हो, पटोलपत्रामलककार्थनाश्चोतयेच तम् ॥ तथा बीचमें कुछ लाल अथवा बहुत ऊंचा अर्थ-उपनाह नामक संधिग में मर
और अवगाढ हो, जो सरक्त नाडियों से | म जलेमें वस्त्र के टुकड़े को भिगो भिगोकर व्याप्त हो, जो बहुत पुराना पड़ गया हो, आंखको सेककर मंडलाय शस्त्र द्वारा उपनाजिसकी आकृति विषम हो, जिसके बीचका ह को लेखन करके और व्रीहिमुख नामक भाग छिन्नभिन्न हो, ऐसे सब शुक्र दुश्चि- अस्त्र से भेदन करके पीपल, शहत और सें. -कित्स्य होते हैं।
| धानमक इनके द्वारा प्रतिसारण करे । त. - कृष्णमंडलगतरोगों की संख्या । । त्पश्चात् पहिले की तरह मरमजल से धोना पंचेत्युक्त गदाःकृष्णे साध्यासाध्यविभागतः घी का परिषेक, घी और मधु द्वारा कानों के अर्थ -साध्यासाध्य विभाग के अनुसार |
ऊंचे और नीचे भागोंका अभ्यंजन करके कालेमंडल में होनेवाले रोग पांच प्रकार के , जौ के सत्तकी पिंडी द्वारा बांध देवे, तथा होते हैं।
पलके पत्ते और आमले के काय का आआंखकी खुजली पर जो सफेद दाग पड । श्च्योतन करै अर्थात् इस काथको आंख में जाता है उसे शुक्र वा फुली कहते हैं।
टपकावै ॥
संधिरोग लेखादि । निधी अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटीपर्वणी बडिशेनात्ता बाह्यसधित्रिभागतः । कान्वितायां उत्तरस्थाने संधिसिता- वृद्धिपत्रेण वाऽधैं स्यादश्रगतिरन्यथा सितरोग विज्ञानीयोनाम चिकित्सा चार्मवत्झौद्रसैंधवप्रतिसारिता। दशमोऽध्यायः । - अर्थ-बाहरवाली संधिक त्रिभाग में प.
वणी को बडिश नामक शस्त्रसे पकडकर
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