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उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत।
(७७३)
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स्मृतम्।
और दाहयुक्त जो सूजन होती है उसको । शुक्लार्मक के लक्षण । अलजी कहते हैं।
कफाच्छुल्ले समं श्वतं चिरवृध्यधिमांसकम् । .. कामप्रथि के लक्षण ।
शुक्लार्म
___ अर्थ-कफसे नेत्रके शुक्लभाग में जो स. भोगेबा कनीने वा कंडूषापक्षमपोटवान् ॥ पूयानावी कृमिग्रथिग्रंथिकामयुतोऽर्तिमान
फेद रंगके आकार का मांस उत्पन्न होता है, . अर्थ-अपांग ( कटाक्षस्थान) वा कनीन
उसे शुक्लार्म कहते हैं, यह दीर्घ काल में व. में खुजली,दाह और पक्ष्मपोटयुक्त पूयस्रावी,
ढता है।
बलासग्रथित के लक्षण । कृमियुक्त और वेदना सहित जो गांठ उत्पन्न
शोफस्त्वरुजः सवर्णो बहलो मृदुः ।। होती है, उसे कृमिग्रंथि कहते हैं । गुण स्निग्धांऽबुर्विद्वाभो बलासप्रथितशस्वसाध्यासाध्य रोग।
___ अर्थ-जो सूनन वेदनारहित त्वचाके बउपनाहकृमिग्रंथिपूयालसकपर्वणीः॥९॥ शस्त्रेण साधयेत्पंचसालजी नासवांस्त्यजेत् ण के सदृश, गाढी, कोमल, भारी, स्निग्ध ___ अर्थ-उपनाह, कृमिग्रंथि, प्रयालस और और जल विन्दुके सदृश होती है उसे बलापर्वणी इन चार रोगोंमें अस्त्रचिकित्सा कर
सप्रथित कहते हैं। नी चाहिये । तथा जलालप, रक्तास्त्रव, पूया
पिष्टक के लक्षण। स्रव और अलजी इन पांचों को त्याग देना
विदुभिः पिष्टधवलैरुत्सन्नैः पिष्टकं घदेत् ॥
अर्थ-नेत्रके सफेद भागमें पिट्ठी के स. चाहिये।
दृश सफेद और ऊंचे जो विन्दु उत्पन्न होते शुक्लि का रोग।
हैं उनको पिष्टकरोग कहते हैं। पित्तं कुर्यात्सिते विदूनसितश्यावपीतकान्
शिरोत्पात के लक्षण । मलाक्तादर्शतुल्यं वा सर्व शुक्लं सदाहरुकू। रोगोऽयं शुक्तिकासंज्ञःसशकद्भेदतृडूज्वरः॥
| रक्तराजीततं शुक्लमुष्यते यत्सवेदनम्। .
अशोकाश्रपदेहं व शिरोत्पातः सशोणितम् अर्थ-नेत्रसंधिगत नौ रोगों का वर्णन ____ अर्थ-रक्तके दूषित होनेके कारण नेत्र करके अब शुक्लमंडलगत रोगों का वर्णन
की सफेदी लाल रंगकी रेखाओं से व्याप्त हो करते हैं। नेत्रके सफेद भागमें पित्त काले,
तथा उसमें दाह और वेदना होती हो उसे श्याव और पीले पीले बहुत से विन्दु पैदा
शिरोत्पात रोग कहते हैं । इसमें सूजन, भ. कर देता है अथवा नेत्रके संपूर्ण श्वेत भाग श्रुपात और लिहसावट नहीं होती है । को ऐसा कर देता है जैसे मैल से लिहसा
सिराहर्ष का लक्षण। हुआ दर्पण, इन दोनों प्रकार के रोगों को
उपेक्षितः सिरोत्पातः राजीस्ता एव वर्धयन् शुक्लिका कहते हैं, इसमें दाह, वेदना, मल कुर्यात्सानं सिराहर्ष तेनायुद्धीक्षणाक्षमम् भेद, तृषा और ज्वर उपस्थित हो जाते हैं। अर्थ-शिरोत्पात की चिकित्सा में उपे,
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