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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ७७२ ) दशमोऽध्यायः । *OK* www.kobatirth.org अष्टांगहृदय | अथाऽतः संधिसितासितरोगविज्ञानमारभ्यते अर्थ - -अब हम यहां से नेत्रों की संधि, शुक्ल विभाग और कृष्णविभाग में होनेवाले रोगों के विज्ञानाध्याय का आरंभ करते हैं । संधिरोगों का वर्णन | 66 'वायुः क्रुद्धः शिराः प्राप्यजलाभेजलवाहिनीः अस्स्रु स्त्रावयते वर्त्म शुक्लसंधेः कनीनकात् तेन नेत्र सरुग्रागशोफं स्यात्स जलास्रवः । अर्थ- कुपित हुआ वायु संपूर्ण जलवा - हिनी शिराओं में पहुंचकर वर्त्म और शुक्लविभाग की संधि कनीनका से जल के सदृश आंसुओं का स्राव करता है । इस अश्रुस्त्राव से नेत्रों में दर्द, ललाई और सूजन पैदा हो जाती है । इसी को जलात्रवरोग कहते हैं । कफस्रव का लक्षण | फाकफसवे श्वेतपिच्छिलं बहलं स्रवेत् अर्थ - कफ से जो कफलवरोग होता है, उसमें सफेद रंगका पिच्छिल और गाढात्राव होता है। उपनाह के लक्षण | कफेन शोफस्तीक्ष्णाग्रः क्षारबुद्बुदकोपमः । पृथुमूलचलः स्निग्धः सवर्णमृदुपिच्छिलः । महानपाकः कंड्मानुपनाहः स नीरुजः । अर्थ - कफ के कारण से पैनीनोकवाली क्षार बुद्बुद के सदृश एक प्रकार की सूजन होती है, इसकी जड मोटी होती है तथा वेग से उठती है, यह स्निग्ध, सवर्ण, मृदु और पिच्छिल होती है, इसमें बड़ा पाक होता है, खुजली चलती है पर दर्द नहीं होता है, इसे उपनाह कहते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० १० रक्तव के लक्षण । रक्तावरनवे सानं बहुष्णं चात्र संस्रवेत् अर्थ - रक्तसे रक्तस्राव रोग होता है, इसमें तांबेके से रंग के, अधिकता से गरम आंसू निकलते हैं । पर्व्वणी के लक्षण | व संध्याश्रया शुक्ले पिटिका दाहशूलिनी । तानामुद्रोपमा भिन्ना रक्तं स्रवति पर्वर्ण अर्थ - की संधिमें नेत्र के शुक्लमंडल में एक फुंसी पैदा होती है जिसमें दाह और शूल होता है । यह तामूत्रण की मूंग के समान होती है, इसे फणी कहते हैं, जब यह फूट जाती है, तब इसमें से रक्तस्राव होता है । पूयास्राव के लक्षण | पूयात्रा मलाःसास्त्रावर्त्मसंधेः कनीनका स्रावयंति मुहुःपूयं सास्रत्वमांसपाकतः -- अर्थ - पूयावाख्य रोग रक्तसहित त्वचा और मांस के पकजाने के कारण रक्तसहित दोपत्र संधि के कनिक से बार बार यत्राव होता है । पालस के लक्षण | कनीनसंधावाध्यायी पूयास्रावी सवेदनः पूयालसो ब्रणः सूक्ष्मः शोफसंरंभपूर्वकः । अर्थ- प्रथम सूजन और वेदना होती है पीछे कनीनिक की संधि में एक छोटा सा व्रण होता है जिसमें फुलापन, वेदना और पूयस्त्राव होता है, इसे पूयालस कहते हैं । For Private And Personal Use Only अलजी के लक्षण | कनीनस्यांतरलजी शोफो रुकूतोददाहवान् । अर्थ - कनीन के बीच में वेदना, तोद
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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