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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७७०) अष्टांगहृदय । अ० ९. से शांति न होने पर अग्नि से दग्ध करदेना बा जोक द्वारा रक्त निकाल कर मामला, चाहिये । अश्मंतक और जामनके पत्तों के क्वाथ का कुकूणक का उपाय । परिषेक करै । कुकूणे खदिरश्रेष्ठानिंबपत्रैःशृतं घूतम् ॥ यमनको श्रेष्टत्व । पीत्वा धात्री वमेकृष्णायष्टीसर्षपसेंधवैः। प्रायःक्षीरघृताशित्वाद् वालानां श्लेष्मजा. । अर्थ-कुकूणक रोग में खैर, त्रिफला, गदाः ॥ २८॥ नीमके पत्ते इनके साथ में पकाया हुआ घी तस्माद्वमनमेवाने सर्वव्याधिषु पूजितम् । पालक को स्तनपान करानेवाली धाय पीकर अर्थ-आधिक घी और दूध खाने के पीपल, मुलहटी, सरसों और सेंधा नमक कारण बालकों के कफजरोग होजाया करते | हैं, इसलिये सब रोगों में ही बालक को व. देकर धमन करदेवे । मन कराना श्रेष्ठहै। उक्तरोग में विरेचन । . वमन की विधि। अभयापिप्पलीद्राक्षाकाथेनैनां विरेचयेत् ॥ सिंधूत्थकृष्णापामार्ग घीजाज्यस्त ___ अर्थ-हरड, पीपल और दाख इनका न्यमाक्षिकम् ॥ २९ ॥ काढा पान कराके उक्त रोग में धायको चूर्णा वचायाः सक्षौद्रो मदनमधुकान्वितम् विरेचन करादेवे । क्षीरं क्षीरानमन्नं च भजतःक्रमशः शिशोः वमनं सर्वरोगेषु विशेषेण कुकूणके। कुचों का लेप । मुस्ताद्विरजनीकृष्णाकल्केनालेपयेत्स्तनौ । ___ अर्थ-सेंधानमक, पीपल, औंगा के वीज धूपयत्सर्षपैः साज्यैः घी, स्तनोंका दूध और शहत इनके द्वारा अर्थ-नागरमोथा, दोनों हलदी और | दूध पीने वाले बालक को वमन करावाशहत पीपल इनको पीसकर धायके कुचों पर और बच मिलाकर इसके द्वारा दूध और लेप करदे और. सरसों और घी मिलाकर अन्न खानेवाले बालक को वमन करावे, तथा धूनी दे देवै । अन्न खानेवाले बालक को मैनफल और क्वाथपान । मुलहटी द्वारा वमन करावै । तथा कुकूणक शुद्धां क्वार्थ च पाययेत् ॥ रोगमें विशेष करके वमन देना हितकारी है । पटोलमुस्तमृद्वीकागुडूचीत्रिफलोद्भवम् । वमनविरेचन । - अर्थ वमनविरेचनादि से धायको शुद्ध | सप्तलारससिद्धाज्यं योज्यंचोभयशोधनम् करके पर्वल, नागरमोथा, दाख, गिलोय अर्थ-सातलाके रसमें सिद्ध किया हुआ और त्रिफला इनके काथका पान करावै । । घी देकर वमन और विरेचन दोनों करावै । लिखितवर्ममें परिषेक। ___ अन्य प्रयोग। शिशोस्तुलिखितवमनतासृग्वांधुजन्मभिः दिनिशारोध्रयष्टयाहूवरोहिणानिवपल्लवैः । थाध्यमंतकबूथपत्रक्वाथेन सेचयेत्। कुकणके हिता वतिः पिष्टैस्ताम्ररजोन्वितैः अर्थ-बालक के वर्म में से लेखनद्वारा क्षीरक्षौद्रघृतोपेतं दग्धं वा लोहितं रजः । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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