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अ० ९.
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उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
अर्थ - कठोर और ऊंची फुंसी को व्रीहिमुख शस्त्रद्वारा भेदन करके निष्पीडित करे। तदनंतर प्रलेप, बंधन, क्षालन, सेचन आदि पहिले की तरह करै ।
उक्त क्रम का विधान |
लेखने भेदने चायं क्रमः सर्वत्र वर्त्मनि । अर्थ-सव प्रकार के वर्मरोगों में लेखन और भेदन की चिकित्सा का यही कम है ।
पित्तरक्तोत्क्लिष्ट में कर्तव्य | पित्तास्रोत्क्लिष्टयोःस्वादुस्कंधसिद्धेन सर्पिषा सिराविमोक्षःस्निग्धस्यत्रिवृच्छ्रेष्टं विरेचनम् लिखिते स्रुतरते च वर्त्मनि क्षालनं हितम् यष्ठीकषायः सेकस्तु क्षीरं चंदनसाधितम्
अर्थ - पित्तोत्क्लिष्ट और रक्तोक्लिष्ट रोगों में मधुरगणोक्त द्रव्यों से सिद्ध किया हुआ घी सेवन कराके रोगी को स्निग्ध करे फिर उसकी सिराको खोले । तदनंतर निसोध और त्रिफला का विरेचन देवै । जिस वर्त्म का लेखन और रक्त मोक्षण कर चुके हो उसको मुलहटी के काढ़े से धोना चा हिये और चन्दन डालकर औटाये हुए दूध से परिषेक करना हित है ।
पक्ष्मसात की चिकित्सा | पक्ष्मणां सदने सूच्या रोमकूपान् विकुट्टयेत् ग्राहयेद्वा जलौकोभिः पयसेक्षुरसेन वा । घमनं नावनं सर्पिः शृतं मधुरशीतलैः ॥
अर्थ - पक्ष्पसदन रोग में रोमकूपों का सुई से छेदन करे अथवा जोकों द्वारा पकडवावे दूध वा ईख का रस देकर बमनकराव और मधुर तथा शीतल औषधों के साथ सिद्ध किये हुए घी की नस्य देवे !
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( ७६९ )
पदमशात में अंजन | सचूर्ण्य पुष्पकासीस भावयेत्सुरसारसैः । ताम्रे दशाहं परमं पक्ष्मशाते तदंजनम्
अर्थ - हीराकसीस को पीसकर किसी तांबे के पात्र में रखकर दस दिन तक तुलसी के पत्तों के रसकी भावना देता रहें, फिर इस अंजन के लगाने से पक्षमशात रोग
दूर होजाता है ।
पोथकी की चिकित्सा |
पोथकलिखिताः शुठी सैंधवप्रतिसारिताः । उष्णांवुक्षालिताः सिंचत्स्वदिराढकि शिशुभिः अप्सिद्वैर्द्विनिशाश्रेष्ठामधुकैर्वा समाक्षिकैः । अर्थ - पोथकी को वृद्धिपत्रादि शस्त्रद्वारा लिखित, सोंठ और सेंधे नमक द्वारा प्रतिसारित करके गरम जल से धोवै तदनंतर खैर, अडहर, और सहने के काढ़े से अथवा हलदी, स्थलपद्मनी और मुलहटी के काढे में मधु मिलाकर परिषेक करे ।
कफोक्लिष्ट का उपाय । कफोक्लिष्टे विलिखिते सक्षौद्रैः प्रतिसारणम् सूक्ष्मैः सैंधव कासखिम नोहाकण तार्क्ष्यजैः । वमनांजननस्यादि सबै च फफजिद्धितम् ॥
अर्थ-कफोक्लिष्ट में लेखन करके सेंधा नमक, कसीस, मनसिल, पीपल और रसौत इनको महीन पीसकर शहत मिलाकर प्रतिसारण करे, इस में चमन, अंजन, नस्यादि सव प्रकार के कफ को दूर करने वाली क्रिया हितकारी है ।
लगण का उपाय | कर्तव्यं लगणेप्येतदशांतावग्निना दहेत् ।
अर्थ-लगण रोग में ऊपर कही हुई सब क्रिया हितकारी होती हैं । इन सब
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