SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 865
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७६८) अष्टांगहृदय । m स्थान में रखकर वमन विरेचनादि द्वारा | अर्थ-वर्मका अतिलेखन होने से वेदना शुद्ध करके चित्त लिटा देवै, फिर गरम जल तथा पलक और वर्ममें शिथिलता होती है। में वस्त्र को भिगोकर उसके वर्मको स्वेदित | आतलेखनमें स्नेहस्वेदादि वातनाशक चिकिकरके तथा बांये हाथ के अंगूठे और तर्जनी त्सा करनी चाहिये । उंगली द्वारा टेढा करके पकडले जिससे अतिलेखन में उपाय । वर्त्म ढीला होकर इधर उधर चलायमान अभ्यज्य नवनीतेमश्वेतरोधं प्रलेपयेत् ११ नहो । तदनंतर इस वर्म में मंडलास्त्र को एरंडमूलकल्केन पुटपाके पचेत्ततः । स्विनं प्रक्षालितं शुष्कंचूर्णितंपोटलीकृतम् तिरछा लगाकर शाक वा शांफाल कादि पत्रद्वारा । स्त्रियाः क्षीरेछगल्या वा मृदितनेत्रसेचनम् अथवा समुद्रफेन द्वारा उस शस्त्रांकित वर्मको अर्थ-सफेदलोध पर नौनी घी चुपडकर विलेखन करना चाहिये । और रुईके फोयेसे | अरंड की जडका कल्क उसके चारों ओर रुधिर को पोंछ डाले और रुधिर के बन्द होजा लगादे और फिर पुटपाक की रीति से ने पर वर्मको अच्छी तरह खुरचा हुआ जा पकावै । सीजने पर घोडाले और धूप में न कर शहत और सेंधेनमक से प्रतिसा. सुखाकर पीसकर चूर्ण करले, तदनंतर इस रण करे । फिर गरमजल से धोकर घी चु. चूर्ण को कपडे की पोटली बनाकर स्त्री के पडकर शहत और घी से अभ्यक्त करके जौ दूध वा बकरी के दूध भिगो भिगोकर आंके सत्तू का पिंडा लगाकर दोनों कानों के ख में निचोडे । ऊपर नीचे पट्टी से बांध देवे । दूसरे दिन अन्य उपाय। खोलकर यथायोग्य औषधियों के काथ से शालितंडुलकल्केन लिप्तं तद्वत्परिष्कृतम् धोकर फिर बांध देवे । चौथे दिन नस्यादि कुन्नेत्र तिलिखितं मृदितं दधिमस्तुना का प्रयोग करे और पांचवें दिन विलकुल केवलेनाऽपि वा सेकंमस्तुना जांगलाशिनः अर्थ-त्रके अतिलिखित होनेपर सफेद खोटेदेवै । लोध पर नवनीत लगाकर ऊपर से शाली सुलिखितवमके लक्षण ॥ चावलों का कल्क लपेट देवै और पुटपाक समं नखनिभं शोफकंडूघर्षाद्यपीडितम् ॥ विद्यात्सुलिखिंत वर्म लिखेद भूयो विपर्यये की रीति से पकाकर धोडाले, फिर धूप में - अर्थ-सूजन खुजली और रिगड से पी- सुखाकर चूर्ण करके पोटली बांधकर दही के डित वर्म यदि नखके सदृश हो तो उसको पानी में भिगो भिगोकर अथवा केवल दही सुलिखित समझना चाहिये । इससे विपरीत के पानी को ही आंखमें निचोडे । इस पर टोने पवर्म को दवारा लेखन करना चाहिये। जांगल मांस का पथ्य है। अतिलेखन के उपद्रव ॥ कठोरपिटिका की चिकित्सा । रुपक्षमवर्त्मसदनं नसनादतिलेखनात् ॥ | पिटिकानीहिवक्त्रेण भित्वा तुकठिनोन्नताः स्नेहस्त्रेदादिकस्तस्मिन्निष्टो वातहरः ऋमः। निष्पीडयेदनु विधिः परिशेषस्तु पूर्ववत् For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy