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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थान भाषाटीकासभेत । . (७६७१ कृच्छ्रोन्मीलन औषधियों द्वारा साध्य होता कृच्छ्रोन्मीलन की चिकित्सा । तत्पश्चात् निमेष, वातहत और अर्श ये " कृच्छ्रोन्मीले पुराणाज्यं द्राक्षाकल्कातीनों असाध्य हैं, पक्ष्मोपरोध याप्य है,शेष . बुसाधितम् । ससितं योजयेत्स्निग्धं नस्यधूमांजनादि च सब शस्त्रसाध्य हैं। . अर्थ-कृच्छोन्मील नामक नेत्ररोग में पक्ष्मसदन का उपाय । पुराना घी दाख के कल्क और काढे के कुट्टयेत्पक्ष्मसदमं छिंद्यात्तेष्वपि चार्बुदम् | साथ सिद्ध करके शर्करा मिलाकर सेवन भिंद्यालगणकुंभीकाबिसोत्संगांजनालजीः । पोथकीश्यावसिकताश्लिष्टोक्लिष्टचतुष्टयम् । करावै । इस में स्निग्ध नस्य धूम और अं. सकर्दम सपहलं विलिखेत्सकुकूणकम् , जनादि का प्रयोग करना चाहिये । अर्थ-शस्त्रसाध्य इक्कीस नेत्ररोगों से कुंभीकावत्म का उपाय । पक्षमसदननामक रोगको सूची और कर्च ! कुंभीकावत्मलिखितं सैंधवप्रतिसारितम् । यष्ठीधात्रीपटोलीनां क्वाथेन परिषेचयेत् । द्वारा कुट्टित करे । नेत्रावुद को वृद्धिपत्रादि ___ अर्थ-कुंभीकाबर्म को वृद्धिपत्रादि शस्त्र शस्त्रद्वारा छिन्न करै । लगण, कुंभीका, वि द्वारा लिखित करके सेधेनमक से प्रतिसवम, उत्संग, अंजन और अलजी इनको सारण करके मुलहटी, आमला और पर्वल व्रीहिमुख अस्त्रद्वारा भेदन करे । तथा पो. इनके काढे से परिषेक करै । थकी, श्याववर्म, सिकता, श्लिष्ट, पित्तो. क्लिष्ट, कफोक्लिष्ट,रक्तोक्लिष्ट, और उक्लिष्ट वर्म के विलेखन की रीति । निवातेऽधिष्ठितस्याप्तैःशुद्धस्योत्तानशायिनः धर्म तथा कर्दम, बहल और कुकूणक ये वहिःकोष्णांबुतप्तेन स्वेदितं वम वाससा ग्यारह रोग लेख्य अर्थात् छीलने के योग्यहैं। | निर्भुज्य वस्त्रांतरितं वामांगुष्टांगुलीधृतम् । न स्रंसते चलति वा वमवं सर्वतस्ततः । इतिश्री अष्टांगहृदय संहितायां भाषा- मंडलाग्रेग तत्तिर्यक् कृत्वा शस्त्रपदांकितम् टीकान्वितायांउत्तरस्थाने वर्त्मगंग लिखेत्तेनेव पत्री शाकशोफालिकादिजैः। विज्ञानीयो नामाऽष्टमोऽध्यायः। फेनेन तोयराशेर्वा पिचुना प्रमृजन्नसृक् । स्थिते रक्त सुलिखितं सक्षौदै प्रतिसारयेत् यथास्वमुक्तैरनु च प्रक्षाल्योष्णेन वारिणा घृतेनासिक्तमभ्यक्तं बध्नीथान्मधुसर्पित नवमोऽध्यायः। ऊर्धाधः कर्णयोर्दत्वा पिडि च यवसक्ताभिः | द्वितीयेऽहनि मुक्तस्य परिषेकं यथायथम् KARE कुर्यात् चतुर्थे नस्यादीन्मुंचेदेवाहि पंचमे। अथाऽतोवर्मरोगप्रतिषेधं व्याख्यास्यामः। अर्थ-अब हम यहां से नेत्र के वर्म के अर्थ-अब हम यहां से वर्मरोग प्रतिषेध विलेखन की रीति लिखते हैं । जिसके वर्म नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे। का विखन करना हो उसको वातरहित - For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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